दरअसल, सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों में फर्क है। सोमरस देवताओं को चढ़ाया जाता था। प्राचीन मान्यता के अनुसार जो मनुष्य सोमरस का सेवन उचित समय और उचित मात्रा में करता था वह अनंतकाल तक जीवित रहता था। आओ जानते हैं सोमरस के बारे में 10 तथ्य।
1.सोम नाम की लता : ऋग्वेद की ऋचाओं के अनुसार सोम नाम की एक लता होती है जिसमें दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है।
2.पंचामृत के समान : सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इन्द्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है, जैसे वर्तमान में पंचामृत अर्पण किया जाता है।
3. हरी पत्तियां बादामी रंग : मान्यता है कि सोम नाम की लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, हिमाचल की पहाड़ियों, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने का उल्लेख मिलता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है।
4. स्वर्ग और पार्थिव पर्वत : सोम को 1. स्वर्गीय लता का रस और 2. आकाशीय चन्द्रमा का रस भी माना जाता है। सोम की उत्पत्ति के दो स्थान हैं- ऋग्वेद अनुसार सोम की उत्पत्ति के दो प्रमुख स्थान हैं- 1.स्वर्ग और 2.पार्थिव पर्वत। सोम की उत्पत्ति का पार्थिव स्थान मूजवंत पर्वत (गांधार-कम्बोज प्रदेश) है'। -(ऋग्वेद अध्याय सोम मंडल- 4, 5, 6)। स्वर्ग अर्थात हिमालय के केंद्र में।
5. अमरत्व : वेदों के अनुसार सोम का संबंध अमरत्व से भी है। वह पितरों से मिलता है और उनको अमर बनाता है।... कण्व ऋषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- 'यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है। इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है, उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है'। सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है। सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है।
6. इफेड्रा : माना जाता है कि सोमपान की प्रथा केवल ईरान और भारत के वह इलाके जिन्हें अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है यहीं के लोगों में ही प्रचलित थी। कुछ वर्ष पहले ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हलांकि लोग इसका इस्तेमाल यौन वर्धक दवाई के रूप में करते हैं।
7. संजीवनी बूटी : कुछ विद्वान इसे ही 'संजीवनी बूटी' कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर 'सोम' की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।
यदि हम ऋग्वेद के नौवें 'सोम मंडल' में वर्णित सोम के गुणों को पढ़ें तो यह संजीवनी बूटी के गुणों से मिलते हैं इससे यह सिद्ध होता है कि सोम ही संजीवनी बूटी रही होगी। ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।
8.सोमरस बनाने की विधि : ।।उच्छिष्टं चम्वोर्भर सोमं पवित्र आ सृज। नि धेहि गोरधि त्वचि।। (ऋग्वेद सूक्त 28 श्लोक 9) अर्थात : उलूखल और मूसल द्वारा निष्पादित सोम को पात्र से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और अवशिष्ट को छानने के लिए पवित्र चर्म पर रखें। ।।औषधि: सोम: सुनोते: पदेनमभिशुण्वन्ति।- निरुक्त शास्त्र (11-2-2) अर्थात : सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं।
सोम को गाय के दूध में मिलाने पर 'गवशिरम्' दही में 'दध्यशिरम्' बनता है। शहद अथवा घी के साथ भी मिश्रण किया जाता था। सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट-पीसकर तथा भेड़ के ऊन की छलनी से छानकर प्राप्त किए जाने वाले सोमरस के लिए इंद्र, अग्नि ही नहीं और भी वैदिक देवता लालायित रहते हैं, तभी तो पूरे विधान से होम (सोम) अनुष्ठान में पुरोहित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे।
9. वैदिक ऋषियों का चमत्कारी आविष्कार : सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है। शास्त्रों में सोमरस लौकिक अर्थ में एक बलवर्धक पेय माना गया है, परंतु इसका एक पारलौकिक अर्थ भी देखने को मिलता है। साधना की ऊंची अवस्था में व्यक्ति के भीतर एक प्रकार का रस उत्पन्न होता है जिसको केवल ज्ञानीजन ही जान सकते हैं।
10. क्या मशरूम का रस था सोमरस : एक यूरोपीय शोधकर्ता के अनुसार प्राचीन भारतीय साहित्य में देवताओं का पसंदीदा पेय 'सोमरस' क्या मशरूम का रस था। गार्डन वास्सन ने वेदों पर शोध के बाद लिखा है कि सोमरस में सोम और कुछ नहीं, बल्कि खास मशरूम था। सोम डिवाइन मशरूम ऑफ इमार्टेलिटी नामक पुस्तक में उन्होंने लिखा है सोम एक मशरूम था, जिसे लगभग 4000 वर्ष पहले यानी 2000 ईसा पूर्व उन लोगों द्वारा धार्मिक कर्मकांडों में प्रयोग में लाया जाता था, जो खुद को आर्य कहते थे।
वास्सन का निष्कर्ष है कि इस मशरूम में पाया जाने वाला हेलिसोजेनिक तत्व मस्तिष्क के ग्वेद में उल्लिखित परमोल्लास का कारक था। महाराष्ट्र के अमरावती विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी विषय की शोधकर्ता अल्का करवा ने कहा कि मशरूम का सेवन स्वास्थ्य के लिए बड़ा गुणकारी है। इसमें अद्भुत चिकित्सकीय गुण मौजूद हैं। यह एड्स, कैंसर, रक्तचाप और ह्रदयरोग जैसी गंभीर बीमारियों में काफी लाभदायी है, क्योंकि यह रोगी की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है। इसी कारण से इसे अंग्रेजी में 'एम्यूनो बूस्टर' भी कहा जाता है।
करवा जैसे कुछ मशरूम विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और चीन जैसे कुछ देशों में इसका सेवन अच्छे स्वास्थ्य, अच्छे सौभाग्य और अमरत्व का प्रतीक माना जाता रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों का यह विश्वास इस बात पर आधारित है कि मशरूम का सेवन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाला तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाला माना जाता रहा है। मशरूम में पोटाशियम, सोडियम, मैगनेशियम, कैल्शियम और कुछ लौह तत्व जैसे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में हैं। इसमें विटामिन ए, डी, के, ई और बी काम्प्लैक्स के सारे विटामिन पाए जाते हैं। मशरूम में फैटी एसिड की कमी होती है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा लगभग पत्ता गोभी के मात्रा के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त इसमें फाइबर पदार्थ होते हैं। यह कम कैलोरी वाला भोज्य पदार्थ है, जिसमें कोई कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता। जो अनसेचुरेटेड फैट की मात्रा अलसी में पाई जाती है, वह मशरूम में भी उपलब्ध है।