वर्ष 2022 में भगवान दत्तात्रेय प्रकटोत्सव यानी दत्तात्रेय जयंती दिन बुधवार, 7 दिसंबर 2022 (Dattatreya Jayanti 2022 Date) को मनाई जा रही है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष का महीना विवाह पंचमी, गीता जयंती आदि विशेष पर्वों के कारण खासा महत्व रखता है। साथ ही प्रतिवर्ष इस महीने में मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय भगवान का जन्म उत्सव मनाया जाता है।
आइए जानते हैं खास जानकारी-
भगवान दत्तात्रेय के मंत्र-
- 'श्री गुरुदेव दत्त'।
- 'ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात'
- मानसिक जाप मंत्र- ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां ॐ द्रां।
- 'दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा'
- 'ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:'
- 'श्री दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा'।
- 'ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा।'
दत्तात्रेय जयंती पूजन के मुहूर्त-
दत्तात्रेय जयंती : 7 दिसंबर 2022, बुधवार
मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ- 7 दिसंबर 2022 को 08.01 ए एम से शुरू।
पूर्णिमा तिथि का समापन- 8 दिसंबर, 2022 को 09.37 ए एम पर।
चौघड़िया मुहूर्त-
लाभ- 07.01 ए एम से 08.19 ए एम
अमृत- 08.19 ए एम से 09.37 ए एम
शुभ- 10.55 ए एम से 12.12 पी एम
लाभ- 04.06 पी एम से 05.24 पी एम
रात का चौघड़िया-
शुभ- 07.06 पी एम से 08.49 पी एम
अमृत- 08.49 पी एम से 10.31 पी एम
लाभ- 03.37 ए एम से 8 दिसंबर को 05.19 ए एम तक।
महत्व-
महायोगीश्वर दत्तात्रेय भगवान श्री विष्णु के ही अवतार हैं। तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित भगवान दत्तात्रेय सर्वव्यापी हैं। इनका अवतरण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ, अतः इस दिन बड़े समारोहपूर्वक दत्त जयंती का उत्सव मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार दत्तात्रेय जयंती से 7 पहले यानी एकादशी से उनका जन्म उत्सव शुरू होता है जो कि पूर्णिमा तक निरंतर जारी रहता है। तथा इन दिनों श्री गुरुचरित्र का पाठ अनुष्ठान किया जाता है।
श्रीमद्भभागवत के अनुसार, पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महर्षि अत्रि के व्रत करने पर 'दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्तः' मैंने अपने-आपको तुम्हें दे दिया- विष्णु के ऐसा कहने से भगवान विष्णु ही अत्रि के पुत्र रूप में अवतरित हुए और दत्त कहलाए। अत्रिपुत्र होने से ये आत्रेय कहलाते हैं। दत्त और आत्रेय के संयोग से इनका दत्तात्रेय नाम प्रसिद्ध हो गया। इनकी माता का नाम अनसूया है, उनका पतिव्रता धर्म संसार में प्रसिद्ध है।
मान्यतानुसार दत्त भगवान अपने भक्तों पर आने वाले संकटों को तुरंत दूर करते हैं। अत: गुरुवार, पूर्णिमा अथवा दत्तात्रेय जयंती के दिन स्फटिक की माला से उनके खास मंत्रों का जाप करने मात्र से जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। उनके मंत्रों में इतनी चमत्कारिक शक्ति हैं कि इनके जप से पितृ देव की कृपा प्राप्त होने लगती है तथा जीवन सुखमय हो जाता है। इतना ही नहीं उनकी उपासना करने वाले व्यक्ति को बुद्धि, ज्ञान तथा बल की प्राप्ति होती है तथा शत्रु बाधा दूर करने में भी यह मंत्र कारगर है।
पूजा विधि-
- मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन सुबह दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर पूजा स्थान को साफ कर लें व्रत का संकल्प लें।
- भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या चित्र मंदिर में स्थापित करके उन्हें अनामिका उंगली द्वारा तिलक लगाएं।
- फूल, जाई एवं निशीगंधा के फूल 7 अथवा 7 की गुणा में अर्पित करें।
- तत्पश्चात धूप, चंदन, केवडा, चमेली, जाई अथवा अंबर इन सुगंधित अगरबत्तियां जगाएं।
- फिर भगवान दत्तात्रेय को सुगंधित इत्र चढ़ाएं।
- संभव हो तो भगवान दत्तात्रेय की 7 प्रदक्षिणा करें।
- यदि घर पर यह संभव नहीं हैं तो उनके मंदिर में जाकर 7 प्रदक्षिणा करें।
- मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने तथा उनके पूजन एवं दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
कथा-
पुराणों में कथा आती है- ब्रह्माणी, रुद्राणी और लक्ष्मी को अपने पतिव्रत धर्म पर गर्व हो गया। भगवान को अपने भक्त का अभिमान सहन नहीं होता तब उन्होंने एक अद्भुत लीला करने की सोची। भक्त वत्सल भगवान ने देवर्षि नारद के मन में प्रेरणा उत्पन्न की। नारद घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों के पास बारी-बारी जाकर कहा- अत्रिपत्नी अनसूया के समक्ष आपको सतीत्व नगण्य है।
तीनों देवियों ने अपने स्वामियों- विष्णु, महेश और ब्रह्मा से देवर्षि नारद की यह बात बताई और उनसे अनसूया के पातिव्रत्य की परीक्षा करने को कहा। देवताओं ने बहुत समझाया परंतु उन देवियों के हठ के सामने उनकी एक न चली। अंततः साधुवेश बनाकर वे तीनों देव अत्रिमुनि के आश्रम में पहुंचे।
महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। अतिथियों को आया देख देवी अनसूया ने उन्हें प्रणाम कर अर्घ्य, कंदमूलादि अर्पित किए किंतु वे बोले- हम लोग तब तक आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक आप हमें अपने गोद में बिठाकर भोजन नहीं कराती।
यह बात सुनकर प्रथम तो देवी अनसूया अवाक् रह गईं किंतु आतिथ्य धर्म की महिमा का लोप न जाए, इस दृष्टि से उन्होंने नारायण का ध्यान किया। अपने पतिदेव का स्मरण किया और इसे भगवान की लीला समझकर वे बोलीं- यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो यह तीनों साधु छह-छह मास के शिशु हो जाएं। इतना कहना ही था कि तीनों देव छह मास के शिशु हो रुदन करने लगे।
तब माता ने उन्हें गोद में लेकर दुग्ध पान कराया फिर पालने में झुलाने लगीं। ऐसे ही कुछ समय व्यतीत हो गया। इधर देवलोक में जब तीनों देव वापस न आए तो तीनों देवियां अत्यंत व्याकुल हो गईं। फलतः नारद आए और उन्होंने संपूर्ण हाल कह सुनाया। तीनों देवियां अनसूया के पास आईं और उन्होंने उनसे क्षमा मांगी।
देवी अनसूया ने अपने पातिव्रत्य से तीनों देवों को पूर्वरूप में कर दिया। इस प्रकार प्रसन्न होकर तीनों देवों ने अनसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोलीं- आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों। तथास्तु- कहकर तीनों देव और देवियां अपने-अपने लोक को चले गए। कालांतर में यही तीनों देव अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए।
कालांतर में यही तीनों देव अनसूया के गर्भ से प्रकट हुए। ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय श्रीविष्णु भगवान के ही अवतार हैं और इन्हीं के आविर्भाव की तिथि दत्तात्रेय जयंती के नाम से प्रसिद्ध है।
RK.
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