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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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ग़ज़ल: सर झुकाना आ जाये

ग़ज़ल: सर झुकाना आ जाये
डॉ. रूपेश जैन 'राहत'
 
नज़ाकत-ए-जानाँ1 देखकर सुकून-ए-बे-कराँ2 आ जाये
चाहता हूँ बेबाक इश्क़ मिरे बे-सोज़3 ज़माना आ जाये
 
मुज़्मर4 तेरी अच्छाई हम-नफ़्स मुझमे, क़िस्मत मिरी
लिखे जब तारीख़े-मुहब्बत5 तो हमारा फ़साना आ जाये
 
माना हरहाल मुस्कुराते रहना है रिवायत-ए-जवानी6
जुस्तजू इतनी दौर-ए-ग़म7 में रिश्ते निभाना आ जाये
 
बे-लिहाज़8 बस्ती में हो चला मतलब-आश्ना9 हर कोई
भरोसा रखने से बेहतर दर्द-ए-बेकसी10 भुलाना आ जाये
 
इबादत-गुज़ार11 हूँ मिरे मालिक़ इनायत बख्शते रहना
दुआ 'राहत' नाम तिरा आये तो सर झुकाना आ जाये


 
शब्दार्थ:
 
१ नज़ाकत-ए-जानाँ -: प्रिय की सादगी
२ सुकून-ए-बे-कराँ -:  अशांत की शांति/ असीम शांति
३ बे-सोज़ -: जिसमें जलन न हो
४ मुज़्मर -: छुपी हुई
५ तारीख़े-मुहब्बत -: प्रेम का इतिहास
६ रिवायत-ए-जवानी -: युवा होने के नाते, युवाओं की परंपरा
७ दौर-ए-ग़म -: पीड़ा का समय
८ बे-लिहाज़ -:बेशर्म
९ मतलब-आश्ना -: मतलब से प्यार करने वाला
१० दर्द-ए-बेकसी - असहाय होनें की पीड़ा
११ इबादत-गुज़ार - भक्त, प्रार्थना करने वाला

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