Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

मन से बनें सुन्दर

मन से बनें सुन्दर
webdunia

प्रज्ञा पाठक

- प्रज्ञा पाठक 
सदियों से हम कहते-सुनते आये कि रूप-रंग ईश्वर की नेमत है। ये किसी व्यक्ति के हाथ में नहीं होता कि वो सुन्दर होगा अथवा असुंदर। सुन्दर दिखने की चाह होना स्वाभाविक है और उसके प्रयास करना भी गलत नहीं है। गलत है उसके लिए जुनूनी हो जाना। इतना जुनूनी हो जाना कि स्वयं का अहित कर बैठना। भोपाल में एक गोद लिए सांवले बच्चे को उसकी माँ ने गोरा करने के लिए पत्थर और कवेलू से इतना घिसा कि उसके हाथों में गहरे जख़्म हो गए। बच्चा अब चाइल्ड लाइन के पास है और अभिभावकों पर थाने में प्रकरण दर्ज किया गया है। विचारणीय मुद्दा यह है कि जो प्रकृति प्रदत्त है, हम उसे बदलने के लिए सीमायें क्यों लाँघ जाते हैं? उसे क्यों नहीं जस का तस स्वीकार कर लेते हैं? हाँ, ये जरूर है कि हम उसमें कुछ ऐसा जोड़ें, जो सार्थक हो और जो भीतर से आया हुआ लगे अर्थात् वास्तविक न कि नकली या थोपा हुआ लगे।
 
मेरा आशय यह है कि यदि स्वयं हमारा या हमारे बच्चों का रूप-रंग औसत है, तो इसे कतई चिंता का विषय ना बनाएं। कोशिश करें अपना 'भीतर' सँवारने की, उसे घीसिये, रगड़िये सुसंस्कारों और सद्विचारों के पाषाणों से। धोइये सदाचरण के जल से। फिर पोंछिये सद्भावों के तौलिये से। ज़रा अब देखिये अपने व्यक्तित्व को, कैसा स्वर्ण के समान निखर आया है। 
 
आप अपने आसपास ऐसे कई चेहरे देख सकते हैं, जो अति साधारण होने के बावजूद एक निराले तेज से संपन्न होते हैं। ये तेज कहाँ से आता है, जानते हैं? ये आंतरिक सदवृत्तियों की देन है, सुसंस्कारों की उपज है। इसके विपरीत कई बार अपार दैहिक सौंदर्य भी कुवृत्तियों और कुसंस्कारों के कारण आभाहीन हो जाता है। बेहतर होगा कि ईश्वर की देन को यथावत् रहने दें, बस, उसे निर्मल मन और तदनुकूल आचरण से आभूषित कर दें। फिर देखिये, दुनिया आप पर कैसे स्नेह-पुष्प लुटाती है।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

आपकी आंख की रोशनी छीन सकता है स्मार्टफोन, हो जाएं सावधान