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चातुर्मास में क्या है कल्पवास करने का महत्व, क्यों करते हैं?

चातुर्मास में क्या है कल्पवास करने का महत्व, क्यों करते हैं?

WD Feature Desk

, सोमवार, 8 जुलाई 2024 (12:26 IST)
Kalpavas in chaturmas:  कल्पवास के लिए माघ माह, कुंभ का समय और चातुर्मास का समय महत्वपूर्ण माना जाता है। 17 जुलाई 2024 से चातुर्मास प्रारंभ होंगे। इस माह में संन्यासी लोग अपनी यात्रा बंद करके किसी भी एक जगह रुककर ध्यान, साधना, व्रत, तप या प्रवचन करते हैं। इसी दौरान कुछ संतों के आश्रम में गृहस्थ लोग कल्पवास करके सत्संग एवं धर्म का लाभ उठाते हैं।ALSO READ: चातुर्मास में क्या करें और क्या नहीं करें ?
 
इस दौरान कल्पवास या तीर्थ वास, तीर्थ प्रवास या तीर्थाटन आदि की दृष्टि के साथ ही गुरु दीक्षा, गुरु परंपरा, संस्कृति, सभ्यता व सनातन धर्म की ओर बढ़ने के लिए श्रेष्ठ समय रहता है।
 
कल्पवास क्यों और कब से : प्राचीनकाल में तीर्थराज प्रयागराज में घना जंगल हुआ करता था। यहां सिर्फ भारद्वाज ऋषि का आश्रम ही हुआ करता था। भगवान ब्रह्मा ने यहां यज्ञ किया था। उस काल से लेकर अब तक ऋषियों की इस तपोभूमि पर कुंभ, माघ माह या विशेष दिनों में साधुओं सहित गृहस्थों के लिए कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। ऋषि और मुनियों का तो संपूर्ण वर्ष ही कल्पवास रहता है, लेकिन उन्होंने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा। उनके अनुसार इस दौरान गृहस्थों को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी।
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कल्पवास के नियम और धार्मिक मान्यता : इस दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है ऋषियों की या खुद की बनाई पर्ण कुटी में रहता है। इस दौरान दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभावपूर्ण रहा जाता है। पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। ALSO READ: कब से कब तक रहेगा चातुर्मास का समय, क्या हैं इसके नियम?
 
कल्पवासी के मुख्य कार्य है:- 1.तप, 2.होम और 3.दान।
 
यहां झोपड़ियों (पर्ण कुटी) में रहने वालों की दिनचर्या सुबह गंगा-स्नान के बाद संध्यावंदन से प्रारंभ होती है और देर रात तक प्रवचन और भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है। लाभ- ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है।-मत्स्यपु 106/40
 
कल्पवास के लाभ : कल्पवास के दौरान भोर में उठना, पूजा-पाठ करना। दिन में दो बार स्नान और सिर्फ एक बार सात्विक भोजन के साथ बीच में फलाहार करना शरीर के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। इससे शरीर के भीतर जमा गंदगी बाहर निकल जाती है और फिर से नवजीवन प्राप्त होता हैं। चिकित्सकों की नजर में कल्पवास से न सिर्फ मनुष्य के शरीर का पाचन तंत्र अनुशासित होता है बल्कि खुद को स्वस्थ रखने का भी यह सबसे बेहतर माध्यम है।ALSO READ: शुरू हो रहा है चातुर्मास, 4 माह में कर लें ये 4 काम तो हो जाएंगे स्वस्थ
 
कई बीमारियों से मु‍क्ति : आयुर्वेद, यूनानी, और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में कल्पवास का खास महत्व है। चिकित्सकों का मानना है कि कल्पवास के दौरान की दिनचर्या व सात्विक खानपान से शरीर को कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है। आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में  कल्पवास का बड़ा महत्व है। आयुर्वेद के पंचकर्मों के विधि में कल्पवास भी शामिल है। प्राकतिक चिकित्सा में भी व्रत और उपवास का महत्व बताया गया है। इसे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। सारी चिंताएं दूर हो जाती हैं। एलोपैथ चिकित्सक भी यही सलाह देते हैं कि संयम और संतुलन, नियमित व सीमित खानपान, व्रत और उपवास आदि से पेट की बीमारी और मोटापा जैसे रोग को भगाया जा सकता है। इससे शरीर फुर्तीला होता है।  

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