वेबदुनिया की पहल 'मैं कौन हूं' वीडियो को देखने के बाद किसी न किसी अत्याचार से पीड़ित महिलाओं ने संपंर्क करना आरंभ किया है। हालांकि इनकी संख्या काफी कम है पर हमारा मानना है कि कोई एक भी अपनी आवाज उठाने का हौसला दिखाती है तो यह सार्थकता की दिशा में दो अनमोल बूंद है समंदर इन्हीं छोटी-छोटी बूंदों से मिलकर बनता है। नाम को गुप्त रखते हुए आज इस कड़ी में पहली पीड़ा प्रकाशित कर रहे हैं। यह सच्ची व्यथा-कथा मध्यप्रदेश के एक कस्बे से 30 वर्षीया महिला ने भेजी है। पढ़ें उन्हीं के शब्दों में...
हैलो वेबदुनिया,
आपका वीडियो देखा। बहुत सोचने के बाद थोड़ी हिम्मत जुटा रही हूं। मैं पिछले 13 वर्षों से मैं एक ऐसे आदमी के साथ रह रही हूं जो समाज में तो अत्यंत प्रतिष्ठित है लेकिन वास्तव में बेहद घिनौना है। दुनिया के सामने इस आदमी का चेहरा कुछ और है जबकि व्यक्तिगत रूप से उसका स्वभाव अजीबोगरीब है। वह हर तरह का नशा करता है, भांग, गांजा, शराब, सिगरेट... और रात होते ही बेकाबू हो जाता है। गुस्से से पागल हो जाता है। मुझ पर और 10 साल के बेटे पर अपनी कुंठा निकालता है। मुझे बुरी तरह से मारने के बाद सुबह माफी मांगता है। ढेर सारे उपहार लाकर देता है। सोने के गहने लाकर देता है। पर हर रात मेरी नर्क की तरह गुजरती है। सब से ज्यादा चिंता मुझे अपने बेटे की होती है। वह भी लगभग हर रात मेरे दरिंदे पति के हाथों मार खाता है। हम दोनों को अधमरे कर वह चैन की नींद सोता है। सारी दुनिया को यही पता है कि वह मुझे बहुत ज्यादा प्यार करता है लेकिन उसकी हकीकत सिर्फ हम मां बेटे जानते हैं। मुझे क्या करना चाहिए?
क्या कहता है मनोविज्ञान
इस पूरे प्रकरण पर मनोवैज्ञानिकों की सलाह है कि पुरुषों में अधिकार और वर्चस्व बनाने की भावना अधिक होती है। लेकिन अत्याचार को सहन करते रहने से अत्याचारी की हिम्मत बढ़ती जाती है। चुंकि इस केस में अत्याचार करने वाला कई तरह के नशे का आदी है अत: उसे बैठाकर परामर्श देने की जरूरत है। कई बार आदमी को अपने अहम की संतुष्टि कमजोर वर्ग पर आक्रमण करने से ही मिलती है। पहली सलाह तो यह कि स्वयं को कमजोर न मानें। दोनों परिवार के बड़े-बुजुर्गों को सच्चाई बताना जरूरी है। व्यवहार की विचित्रता की वजह से मनोवैज्ञानिक से भी व्यक्तिगत रूप से मिलना भी जरूरी है। कई बार व्यक्ति सामाजिक दबाव में आकर व्यवहार सुधारने की बात कर सकता है ऐसे में कानूनी जानकारी हासिल कर उससे स्पष्ट बात करना चाहिए।
क्या कहता है कानून, क्या है घरेलू हिंसा अधिनियम?
घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे लागू किया गया। यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा ही संचालित किया जाता है। शहर में महिला बाल विकास द्वारा जोन के अनुसार आठ संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनते हैं और पूरी जांच पड़ताल करने के बाद प्रकरण को न्यायालय भेजा जाता है।
ऐसी महिलाओं के लिए है जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी किस्म की हिंसा से पीड़ित हैं। इसमें अपशब्द कहे जाने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मारपीट करना आदि प्रता़ड़ना के प्रकार शामिल हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी व महिलाओं के हर रूप और किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को शामिल किया जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।