जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और हिंदुओं के प्रथम देव भगवान शंकर में अद्भुत समानता है। आओ हम यहां जानते हैं कि कैसे और किस तरह ऋषभदेव और भगवान शंकर में समानता है।
1.दोनों ही प्रथम कहे गए हैं अर्थात आदिदेव।
2.दोनों ही जटाधारी और दिगंबर है। भार्तुहरी ने 'वैराग्य शतक' में शिव को दिगंबर लिखा है। वेदों में भी वे दिगंबर कहे गए हैं।
3.दोनों के लिए 'हर' शब्द का प्रयोग किया जाता है। आचार्य जिनसेन ने 'हर' शब्द का प्रयोग ऋषभदेव के लिए किया है।
4.दोनों को ही नाथों का नाथ आदिनाथ कहा जाता है।
5.दोनों ही कैलाशवासी है। ऋषभदेव ने कैलाश पर ही तपस्या कर कैवल्य प्राप्त किया था।
6.दोनों के ही दो प्रमुख पुत्र थे।
7.दोनों का ही संबंध नंदी बैल से है। ऋषभदेव का चरण चिन्ह बैल है।
8.शिव, पार्वती के संग है तो ऋषभ भी पार्वत्य वृत्ती के हैं।
9.दोनों मयुर पिच्छिकाधारी है।
10.दोनों की मान्यताओं में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी और चतुर्दशी का महत्व है।
11.शिव चंद्रांकित है तो ऋषभ भी चंद्र जैसे मुखमंडल से सुशोभित है।
हालांकि यहां यह सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया जा रहा है कि ऋषभदेव और भगवान शिव एक ही है। यहां उनकी समानता के बारे में कुछ बिंदू दिए गए हैं जिन पर विचार किए जाने की जरूरत है।