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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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‍कविता : अभी तलक बाकी है...

‍कविता : अभी तलक बाकी है...

सलिल सरोज

तुम समझ चुके हो या समझना अभी बाकी है, 
तुम्हारा मेरे अंदर मरना, अभी तलक बाकी है।
 
उस आग को बुझे एक ज़माना हो गया,
राख में दबी चिंगारी का बुझना, अभी तलक बाकी है।
 
कदम उठाए नहीं उठते, उस गली में अब,
जो कदम तेरे दर तक जा पहुंचे थे, उनका लौटना अभी तलक बाकी है।
 
सांस बुत की तरह थम गई थी तेरी रुसवाई पे,
मेरी लहू में तेरी गर्मी का थमना, अभी तलक बाकी है।
 
छोड़ दिए सारे तलब मैंने जहां के बारहां,
रूह से तेरी यादों का छूटना, अभी तलक बाकी है।
 
जिस्म को मनाही है तेरी सनासाई की,
ख्वाबों में तेरा आना-जाना, अभी तलक बाकी है।
 
जो पलकें उठीं मेरी, तेरे दीदार को उठी,
मसीहाई उन पलकों का झुकना, अभी तलक बाकी है।
 
जो ज़ख्म रूहानी थे, वो सब सूख गए,
सिसकियों और आहों का रुकना, अभी तलक बाकी है।

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