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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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एक अनूठी विद्या है स्वर ध्यान, जानें दैनिक जीवन में कैसे करें इसका प्रयोग एवं महत्व

एक अनूठी विद्या है स्वर ध्यान, जानें दैनिक जीवन में कैसे करें इसका प्रयोग एवं महत्व
शरीर की मुख्य जरूरत है प्राणवायु। इसका आवागमन शरीर की विभिन्न दस नाड़ियों द्वारा संचालित होता है। इनमें प्रमुख तीन नाड़ियां हैं- इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना। इड़ा चंद्रप्रधान है, जो बाएं नथुने से चलती है। पिंगला सूर्य प्रधान होती है, जो दाएं नथुने से चलती है।

दोनों के मध्य या सम स्थिति सुषुम्ना कहलाती है, यह वायु प्रधान होती है। इन नाड़ियों का नासिका द्वारों द्वारा श्वास लेना स्वर चलना कहलाता है। बाएं नथुने का चलना बायां या चंद्रस्वर, दाएं नथुने का चलना दायां या सूर्य स्वर तथा दोनों के बीच सम स्थिति को संधि स्वर कहा जाता है।
 
क्या हैं स्वर ध्यान का महत्व- दैनिक जीवन के विभिन्न कार्यों में स्वरों की स्थिति का बहुत महत्व देखा जाता है। स्वर ज्ञाता ज्योतिषियों की भांति इसका प्रयोग करते हैं। विभिन्न कार्यों की सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ, तेजी-मंदी, प्रश्नों के जवाब के लिए इस विद्या की सहायता ली जाती है।
 
दैनिक कार्य करते समय निम्नानुसार स्वर ध्यान किया जाना चाहिए- 
 
* गंभीर, शुभ, विवेकपूर्ण, स्थायी कार्य, दान, निर्माण, वस्त्र धारण, आभूषण पहनना, दवा लेना, मैत्री, व्यापार, यात्रा, विद्याभ्यास इत्यादि कार्य चंद्र स्वर में किए जाने चाहिए।
 
* उत्तेजना, जोश के कार्य जैसे युद्ध, मद्यपान, खेल, व्यायाम इत्यादि सूर्य स्वर में करें। 
 
* सुषुम्ना स्वर संधि अवस्था होती है। इसमें उदासीनता बनी रहती है। इस स्वर में चिंतन, ईश्वर आराधना जैसे कार्य किए जाना चाहिए। अन्य कार्य इस स्वर के दौरान हो तो परिणाम अच्छे नहीं होते। असफल होते हैं। 
 
* सूर्य स्वर में पाचन शक्ति बढ़ती है। भोजन के पश्चात यह स्वर चलना चाहिए।
 
* सोते समय चित होकर नहीं लेटना चाहिए। इसमें सुषुम्ना स्वर चलता है जिससे नींद में बाधा पड़ती है। अशुभ, डरावने स्वप्न आते हैं।
 
* कहीं प्रस्थान के समय चलित स्वर वाले कदम को पहले बढ़ाकर जाना चाहिए।
 
* किसी क्रोधी व्यक्ति से मिलने जाते समय अचलित स्वर वाला कदम पहले बढ़ाकर जाना चाहिए।
 
* गुरु, मित्र आदि मामलों में वाम स्वर के दौरान कार्य शुरू करें।
 
स्वर बदलना हो तो क्या करें- 
 
कई बार उपर्युक्त कार्य करने के दौरान विपरीत स्वर चलता रहता है, तब निम्न प्रयोगों से उस कार्य के अनुरूप स्वर को चलाया जा सकता है- 
 
* अचलित स्वर वाले नथुने को अंगूठे से दबाकर चलित स्वर से श्वास खींचें व अचलित स्वर से छोड़ें। कुछ समय ऐसा करने से स्वर की चाल बदल जाएगी।
 
* जिस ओर का स्वर चल रहा हो, उस करवट लेट जाएं। 
 
* चलित स्वर वाले बगल में सख्त चीज दबाकर रखें।
 
* घी खाने से बायां तथा शहद खाने से दायां स्वर चलता है। 
 
* चलित स्वर में रुई का फाहा रखें।

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