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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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उत्तराखंड में एक नहीं पांच केदारनाथ मंदिर हैं, जानिए पंचकेदार का रहस्य

उत्तराखंड में एक नहीं पांच केदारनाथ मंदिर हैं, जानिए पंचकेदार का रहस्य

WD Feature Desk

उत्तराखंड पंचबद्री के अलावा पंचकेदार और पंचप्रयाग की महिमा का वर्णन मिलता है। मुख्‍य केदारनाथ मंदिर के अलावा भी चार ऐसा मंदिर है जिन्हें केदारनाथ ही माना जाता है। आओ जानते हैं इन मंदिरों के नाम और ये कहां स्थित है।
 
 
1. श्री केदारनाथ मंदिर : इस मंदिर के बारे में तो आप जानते ही है कि यह मुख्य मंदिर है जहां पर ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग के रूप में शिवजी की पूजा होती है। ऋषिकेश से 229 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 16 किलोमीटर पैदल चलना होता है। यह समुद्र तल से 11746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस तीर्थ में गंगा, मधुवर्णा, क्षीरवर्णा, श्वेतवर्णा, सुचिवर्णा धाराओं में प्रवाहमान होती रही है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में यह स्थान आता है। कहते हैं कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का आधा भाग यहां केदारनाथ में है और आधा नेपाल के पशुपतिनाथ में है।
 
 
2. मदमहेश्वर : पंचकेदारों में मदमहेश्वर दूसरा केदार है। शिव के मध्यभाग के दर्शन के कारण इसे मदमहेश्वर नाम मिला। यहां मौजूद शिवलिंग की आकृति नाभि के समान ही है। यहां जाने के लिए रुद्रप्रयाग से केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग से ऊखीमठ पहुंचना होता है। ऊखीमठ से उनियाणा गांव तक मोटर मार्ग से पहुंचा जाता है। इसके बाद रांसी गौंडार गांव से 10 किलोमीटर की चढ़ाई पार कर भगवान मदमहेश्वर के मंदिर तक पहुंचना होता है। यहां के लिए दूसरा मार्ग गुप्तकाशी से भी है, जहां से कालीमठ तक वाहन से जाने के बाद आगे पैदल चढ़ाई करनी होती है।
 
 
3. तुंगनाथ : पांच केदारों में तुंगनाथ तृतीय केदार माना जाता है। महिष रूप में शिव का यहां नाभि से ऊपर और सिर से नीचे का भाग यानि धड़ प्रतिष्ठित माना जाता है। ग्रीष्मकाल में ही तुंगनाथ की पूजा होती है। शीतकाल में यहां की चल विग्रह मूर्ति मुक्कूमठ ले जाई जाती है। जहां शीतकाल में पूजा होती है। तुंगनाथ को जाने के लिए दो मार्ग हैं, एक ऊखीमठ से चोपताधार तक मोटर मार्ग से जाकर वहां से तीन किलोमीटर की चढ़ाई तय कर जाया जाता है, तो दूसरा गोपेश्वर मण्डल होते हुए चोपताधार तक जाता है। वहां से फिर चढ़ाई चढ़नी होती है।
 
 
4. रुद्रनाथ : पंचकेदारों में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ है जहां भगवान शिव के मुखाकृति के दर्शन होते हैं। इसे पितरों का तारण करने वाला श्रेष्ठ तीर्थ माना जाता है। कहा जाता है कि रुद्रनाथ तीर्थ में ही देवर्षि नारद ने भगवान शंकर को कनखल (हरिद्वार) में दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ कराने के दौरान देवी सती के दाह की सूचना दी थी। भगवान रुद्रनाथ यहां गुफा में विराजते हैं। रुद्रनाथ पहुंचने के लिए पहला मार्ग गोपेश्वर के ग्राम ग्वाड़-देवलधार, किन्नखोली-किन महादेव होते हुए, दूसरा मार्ग मण्डल चट्टी-अत्रि अनुसूइया आश्रम होते हुए, तीसरा मार्ग गोपेश्वर सगर ज्यूरागली-पण्डार होते हुए, चौथा मार्ग ग्राम देवर मौनाख्य- नौलाख्य पर्वत पंडार खर्क होते हुए जाता है।
 
 
5. कल्पेश्वर : पंचकेदारों में पंचवां केदार कल्पेश्वर है जहां महर्षि रूप में भगवान शिव का यहां जटाजूट प्रतिष्ठित हुआ। यह तीर्थ उर्गम गांव में हिरण्यावती नदी के पास है। यहां पहुंचने के लिए हेलंग चट्टी से पैदल जाना होता है। अलकनंदा पुल पार कर लगभग 7 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय कर यहां पहुंचा जाता है। इस तीर्थ की उत्पत्ति देवराज इन्द्र को ऋषि दुर्वासा के श्राप से मुक्ति के लिए कल्पवृक्ष की प्राप्ति से जुड़ी है। शिव तप के बाद इंद्र को भगवान ने कल्पवृक्ष दे दिया, इसीलिए इसका नाम कल्पेश्वर पड़ा।

- अनिरुद्ध जोशी

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