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श्रीकृष्ण ने इस दिन गैया चराना शुरू किया था, जानिए गोपाष्टमी 2022 शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय और कथा...

श्रीकृष्ण ने इस दिन गैया चराना शुरू किया था, जानिए गोपाष्टमी 2022 शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय और कथा...
Gopashtami 2022
 
वर्ष 2022 में 1 नवंबर, मंगलवार को गोपाष्टमी पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता है। इसी दिन से भगवान कृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी। पुराणों में गाय को गौ माता भी कहा जाता है। 
 
पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को गौ/गैया चराने के लिए जंगल भेजा था। गोपाष्टमी पर गौ, ग्वाल और श्री कृष्ण को पूजने का महत्व है। शास्त्रों में कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, उनकी सेवा करता है तथा सायंकाल में गायों का पंचोपचार विधि से पूजन करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। आज के दिन अगर श्यामा गाय को भोजन कराएं तो और भी अच्छा होता है। 
 
गोपाष्टमी पूजन के शुभ मुहूर्त-Gopashtami 2022 Shubh Muhurat 
 
गोपाष्टमी पर्व- 1 नवंबर 2022, मंगलवार
कार्तिक शुक्ल अष्टमी प्रारंभ- 1 नवंबर 2022 को 01.11 ए एम से शुरू
अष्टमी तिथि का समापन- 1 नवंबर 2022 को 11.04 पी एम पर। 
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11.47 से दोपहर 12.31 मिनट तक। 
 
नोट : इस बार कार्तिक शुक्ल अष्टमी पर पूजन के लिए सर्वोत्तम अभिजीत मुहूर्त बन रहा है। अत: इस मुहूर्त में गौ माता का पूजन करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। 
 
गोपाष्टमी पूजा का चौघड़ियानुसार समय- 
चर (सामान्य)- 09.19 ए एम से 10.42 ए एम तक।
लाभ (उन्नति)- 10.42 ए एम से 12.04 पी एम तथा 07.13 पी एम से 08.50 पी एम तक।
अमृत (सर्वोत्तम)- 12.04 पी एम से 01.27 पी एम तक। 
शुभ (उत्तम)- 02.50 पी एम से 04.13 पी एम तथा 10.28 पी एम से 2 नवंबर 12.05 ए एम तक। 
 
पूजा विधि-Gopashtami puja vidhi
 
- कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन प्रात: जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके नए या स्वच्छ धुले वस्त्र धारण करें।  
 
- गौ माता/गायों को भी स्नान आदि कराकर गौ माता के अंग में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे आदि लगाकर उन्हें सजाएं।
 
- इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। 
 
- इस दिन गौ माता का पूजन करते समय गंगा जल, अक्षत, रोली, पुष्‍प चढ़ाएं, गुड़, हरा चारा खिलाएं, उन्हें वस्त्र ओढ़ाए तथा धूप-दीप से आरती उतारें। 
 
- गायों को सजाएं तथा चारा आदि डालकर परिक्रमा करके कुछ दूर तक गायों के साथ चलें। 
 
- पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन गौ माता के पूजन के बाद उनके पैरों के बीच से निकलने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
 
- संध्याकाल में गायों के जंगल से वापस लौटने पर उनके चरणों को धोकर तिलक करके उनकी आरती करें। 
 
- इस दिन कई लोग ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं। 
 
- गोपाष्‍टमी के दिन गौ माता को रोटी, मिठाई, चारा अवश्य ही खिलाएं। 
 
उपाय-Gopashtami ke upay  
 
1. गोपाष्टमी पर गाय-बछड़े का श्रृंगार करने से श्री विष्‍णु की कृपा प्राप्त होती है। 
 
2. गाय को सजाने के बाद गौ माता की पूजा और परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद गाय और उसके बछड़े को घर से बाहर लेकर जाएं और कुछ दूर तक उनके साथ चलें।
 
3. इस दिन ग्वालों या गौ पालनकर्ता को कुछ न कुछ दान अवश्य करें। 
 
4. इस दिन गाय को हरा चारा, हरे मटर एवं गुड़ खिलाने से भाग्य चमकता है।
 
5. गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो संवर्धन हेतु गौ पूजन करते समय यथाशक्ति दान दक्षिणा, भोजन और अन्य वस्तुएं भेंट करें। 
 
6. शास्त्रानुसार गौ माता में तैंतीस करोड़ देवताओं का वास होता है, अत: गोपाष्टमी के गौ पूजन करने से सभी देवता प्रसन्न होकर शुभाशीष देते हैं। 
 
7. गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने बड़ा पुण्य मिलता है, अत: संभव हो तो यह अवश्‍य करें। 
 
8. जिनके घर में गाय या आसपास गाय उपलब्ध नहीं हैं वे गौशाला जाकर गाय का पूजन करके उन्हें चारा तथा रोटी खिलाएं। 
 
गोपाष्टमी कथा- Gopashtami Katha
 
गोपाष्टमी पर्व (Gopashtami Katha 2022) की कथा के अनुसार बाल कृष्‍ण ने माता यशोदा से इसी दिन गाय चराने की जिद की थी। यशोदा मइया ने कृष्‍ण के पिता नंद बाबा से इसकी अनुमति मांगी थी। नंद महाराज मुहूर्त के लिए एक ब्राह्मण से मिले। 
 
ब्राह्मण ने कहा कि गाय चराने की शुरुआत करने के लिए यह दिन अच्‍छा और शुभ है। इसलिए अष्‍टमी पर कृष्‍ण ग्‍वाला बन गए और उन्‍हें गोविंदा के नाम से लोग पुकारने लगे। 
 
माता यशोदा ने अपने लल्ला का श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी, तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो… और भगवान जब तक वृंदावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। 
 
आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान, उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान ने उस वन में प्रवेश किया, तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ और वह शुभ तिथि गोपाष्टमी कहलाईं।
 
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