मुंशी प्रेमचंद का हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है, आइए जानते हैं उनके विचार
1. आत्मसम्मान की रक्षा हमारा सबसे पहला धर्म और अधिकार है।
2. सत्य की एक चिंगारी, असत्य के पहाड़ को भस्म कर सकती है।
3. अंधी प्रशंसा अपने पात्र को घमंडी और अंधी भक्ति धूर्त बनाती हैं।
4. अधिकार में स्वयं एक आनंद है, जो उपयोगिता की परवाह नहीं करता।
5. माँ की ममता और पिता की क्षमता का अंदाज़ा लगा पाना असंभव है।
6. सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य-पथ पर अडिग रहते हैं।
7. जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
8. प्रेम एक बीज है, जो एक बार जमकर फिर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है।
9. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती है, नचाती है।
10. मन एक डरपोक शत्रु है जो हमेशा पीठ के पीछे से वार करता है।
प्रस्तुति : अनुभूति निगम