हमेशा से महिलाओं के वाचाल होने की प्रवृति, और वाक चातुर्य की सारी दुनिया कायल रही है। ऐसा ही एक मनोहारी वर्णन इस श्लोक में किया गया है जो बड़ा आनंददायक है। शिव-पार्वती का ये संवाद मन को गुदगुदाता है-
कस्त्वं?शूली, मृगय भिषजं, नीलकंठ: प्रियेऽहं केकोमेकां वद, पशुपतिर्नेव दृष्ये विषाणे।
मुग्धे स्थाणु:, स चरति कथं? जीवितेश: शिवाया गच्छाटव्यामिति हतवचा पातु वश्चन्द्रचूड: ।।
शंकर जी ने अपने घर का द्वार खोलने हेतु आवाज दी।
पार्वती जी ने पूछा - तुम कौन हो?
शिव जी ने कहा - मैं शूली (त्रिशूल धारी) हूं।
पार्वती जी ने कहा - शूली (शूल रोग से पीड़ित) हो तो वैद्य को खोजो।
शिव जी ने कहा - प्रिये! मैं नीलकंठ हूं।
पार्वती जी ने कहा (मयूर अर्थ में ) - तो एक बार केका ध्वनि करो।
शंकर जी ने कहा - मैं पशुपति हूं।
पार्वती जी ने कहा - पशुपति (बैल) हो? तुम्हारे सिंग तो दिखाई नहीं देते?
शिव जी ने कहा - मुग्धे! मैं स्थाणु हूं।
गौरा बोलीं - स्थाणु (ठूंठ) चलता कैसे है?
भोले ने कहा - मैं शिवा (पार्वती) का पति हूं।
शिवा बोलीं - शिवा ( भिन्न अर्थ में लोमड़ी) के पति हो तो जंगल में जाओ।
इस प्रकार निरुत्तर हुए शिव आप सबकी रक्षा करें।