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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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बछ बारस / वत्स द्वादशी पर होगा गौ माता का पूजन, जानें महत्व

बछ बारस / वत्स द्वादशी पर होगा गौ माता का पूजन, जानें महत्व
भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस का पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2020 में यह पर्व मत-मतांतर के चलते कई स्थानों पर 15 अगस्त को तो कई जगहों पर 16 अगस्त को मनाया जाएगा।

भाद्रपद मास में पड़ने वाले इस उत्सव को ‘वत्स द्वादशी’ या ‘बछ बारस’ के नाम से भी जाना जाता हैं। ऐसा माना जाता है वर्ष में कि दूसरी बार यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। 
 
भारतीय धार्मिक पुराणों में गौ माता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है। पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौ माता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
 
पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन और पूजन किया था। जिस गौ माता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। ऐसे गौमाता की रक्षा करना और उनका पूजन करना हर भारतवंशी का धर्म है। 
 
शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौ माता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकें। गौ माता के रोम-रोम में देवी-देवता एवं समस्त तीर्थों का वास है। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौ भक्ति-गौ सेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। गौमाता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है।  
 
हमारे शास्त्रों में इसका महात्म्य बताते हुए कहा गया है कि बछ बारस के दिन जिस घर की महिलाएं गौ माता का पूजन-अर्चन करके उसे रोटी और हरा चारा खिलाकर उसे तृप्त करती है, उस घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और उस परिवार में कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है।  
 
भविष्य पुराण के अनुसार गौ माता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चंद्र विराजित हैं।
 
इसीलिए बछ बारस, गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है। इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी जिसे सोगरा भी कहा जाता है और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है। इस दिन गाय की दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है।


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