मज़हब ज़िंदा है, तो वजह अच्छाई है...
'हमसाज़' इंदौर रिलीजन कॉन्क्लेव 11 और 12 अप्रैल को
मज़हब ज़िंदा है, तो वजह अच्छाई है, इसलिए न सिर्फ खड़े हैं, लाखों-करोड़ों को साथ लिए हुए हैं, उनकी रहनुमाई कर रहे हैं, इंसानियत को ताक़त दे रहे हैं। उसके डीएनए में नफरत नहीं है। इसी के मद्देनजर 11 और 12 अप्रैल को शहर के अंबर कन्वेंशन सेंटर (बेस्ट प्राइस के पास, बायपास रोड) पर रिलीजन कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया है।
हिंदू मजहब अगर 'वसुधैव कुटुंबकम' की बात करता है, तो इस्लाम का मतलब ही शांति है। ईसाइयत भी सफेद झंडा लिए खड़ी है। बौद्ध, जैन और सिख भी जुदा नहीं हैं। बावजूद इसके गलतफहमियों ने दीवार बना दी है, जिसे ज़मींदोज़ किए बिना नफरत को खत्म नहीं किया जा सकता है और न ही मोहब्बत को आम किया जा सकता है। इन दीवारों को गिराने का अच्छा तरीका एक-दूसरे के मज़हब की इज्जत करना, उसको समझना है।
इसीलिए 'हमसाज़' की ज़रूरत महसूस हुई है। जहां सभी मज़हब के जानकार, आलिम और विद्वान साथ होंगे। अवधेशानंद जी महाराज, भय्यूजी महाराज, लोकेश मुनि, शांति स्वरूपानंद जी, पद्मभूषण डॉ. विजय भटकर, डॉ. विश्वनाथ कराड़, संत ज्ञानी सबरतसिंह जी अमृतसर साहिब, डॉ. अभय बंग, मौलाना तौकीर रजा साहब, सैयद अली मोहम्मद रिज़वी, अल्लामा तारिक़ अब्दुल्लाह, कार्डिनल ऑफ इंडिया, नीलाभ त्रिपाठी, मौलाना वस्तानवी, महामंडलेश्वर स्वामी केशवदास जी के आने की उम्मीद है।
आयोजकों के मुताबिक, कुछ विद्वानों की रज़ामंदी आ गई है, कुछ से बात चल रही है। कॉन्क्लेव में मजहब क्या है, उनकी तालीम क्या है, वो क्या सीख देते हैं और इंसानियत को ज़िंदा रखने में उनका क्या किरदार है, जैसे विषय पर बात होगी। आपसे इल्तिजा है, इंसानियत को ताक़त देने की इस कोशिश को आपका साथ चाहिए। बताएं मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।