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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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कविता : दे कोई दुहाई

कविता :  दे कोई दुहाई
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जयति जैन 'नूतन'

नयनों की पुकार है
उस आंख वाले को
जो नासमझ बना है
जो नि:शब्द आगे बढ़ा है।
 
नजर ना आया जिसे
नयनों का गर्म नीर
नजरअंदाज की जिसने
चोट खाती हुई पीर।
 
वेदना के क्षण भूला
आंखों का सपना टूटा
ढलती शाम-सा जीवन में
अंधेरे का पुष्प खिला।
 
दे कोई उसे दुहाई
कोई तो एहसास जगे
पायल की झंकार सुने वो
जीवन में श्रृंगार भरे।

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