गरुड़ पुराण के अनुसार नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है। राहु को सर्प का मुख और केतु को उसकी पूंछ माना जाता है। जब भी समस्त ग्रह इन दोनों ग्रहों के मध्य में आते हैं तो वह कालसर्प योग कहलाता है। कालसर्प योग शुभ व अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं। इसकी शुभता और अशुभता अन्य ग्रहों के योगों पर निर्भर करती है।
वेबदुनिया ज्योतिष टीम के अनुसार जब भी कालसर्प योग में पंच महापुरुष योग, रुचक, भद्र, मालव्य व शश योग, गज केसरी, राज सम्मान योग महाधनपति योग बनें तो व्यक्ति उन्नति करता है। जब कालसर्प योग के साथ अशुभ योग बने जैसे-ग्रहण, चाण्डाल, अशांरक, जड़त्व, नंदा, अंभोत्कम, कपर, क्रोध, पिशाच हो तो वह अनिष्टकारी होता है।
वेबदुनिया ज्योतिष टीम के अनुसार ज्योतिष में 576 प्रकार के कालसर्प योग बताए गए हैं जिनमें लग्न से द्वादश स्थान तक मुख्यत: 12 प्रकार के सर्प योगों में अनंत, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पदम, महापदम, तक्षक, कर्कोटक, शंखनाद, पातक, विशांत तथा शेषनाग शामिल है। कालसर्प योग दोष निवारण के लिए नागपंचमी के दिन सर्प की पूजा करना सर्वाधिक अच्छा रहता है।