Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

प्रदोष व्रत की कथा : चंद्र को मस्तक पर क्यों धारण किया भगवान शिव ने

प्रदोष व्रत की कथा : चंद्र को मस्तक पर क्यों धारण किया भगवान शिव ने
, शनिवार, 11 जून 2022 (15:02 IST)
Pradosh Vrat Katha : प्रतिमाह त्रयोदशी के दिन प्रदोष का व्रत रखा जाता है। ज्येष्ठ माह की त्रयोदशी यानी 12 जून 2022 रविवार को शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत रखा जाएगा। ज्येष्ठ माह की त्रयोदशी के प्रदोष को पचमढ़ी में बड़ा महादेव पूजन दिवस मनाया जाता है। आओ जानते हैं प्रदोष व्रत कथा, क्यों शिवजी ने चंद्र को किया मस्तक पर धारण।
 
व्रत कथा : पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार चंद्रदेव जब अपनी 27 पत्नियों में से सिर्फ एक रोहिणी से ही सबसे ज्यादा प्यार करते थे और बाकी 26 को उपेक्षित रखते थे जिसके चलते उन्हें उनके ससुर जी राजा दक्ष ने श्राप दे दिया था। शाप के चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। ऐसे में अन्य देवताओं की सलाह पर उन्होंने शिवजी की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया।
 
 
शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर दिया। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इस स्थान का नाम 'सोमनाथ' हो गया।
 
कहते हैं कि व्रत रखने से चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) तभी भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए।
 
 
'प्रदोष में दोष' यही था कि चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे। 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

नंदीदेव के सींगों के बीच (आड़) में से क्यों करते हैं शिवजी के दर्शन