Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

हिन्दी कविता : मेरे कृष्ण-कन्हैया, बंशी बजैया

हिन्दी कविता : मेरे कृष्ण-कन्हैया, बंशी बजैया

पुष्पा परजिया

Poem on Krishna
 
चल पड़े थे कई विचारों के मंथन संग,
बह गए थे अनजान एक बहाव से हम।
 
न आसमां दिख रहा, न जमीं दिख रही थी,
न ही एहसास कोई, न ही मन में कमी थी।
 
एक सूनापन छा गया सब ओर था,
तब यारों थे किंकर्तव्यविमूढ़ से हम।
 
क्या होता होगा सबके संग ऐसा कभी,
सोच-सोच अब भी घबरा-से गए हम।
 
फिर भी कैसी थी शक्ति व कैसी पिपासा, 
ज्ञान के चक्षुओं में आस की एक लौ थी।
 
वो सपने सुनहरे भविष्य के हमने,
किस आस पर किस सहारे पे देखे।
 
वो शक्ति वो प्रेरणा आपकी थी,
एक हारे हुए मन का बल आपसे था।
 
ओ कान्हा! जब-जब मानव मन हारा,
तब-तब तुमने भरा जोश व दिया सहारा।
 
इन चक्षुओं की प्यास बन तुम आ गए,
गम के मारों के गम सभी पिघला गए।
 
टूटा था मन मेरा जोड़ दिया कान्हा,
आशा की इक ज्योत जला दी न।
 
किया मानव मन को कभी निराश,
तुमने काटा जीवन से नैराश्य वैराग्य।
 
रक्षण करते भक्तों का बंशी बजैया,
सकल विश्व में पूर्ण पुरुषोत्तम,
इक तुम ही तो हो मेरे कृष्ण-कन्हैया!

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

जन्माष्टमी भोग : इन 5 तरह की खास पंजीरी भोग से करें श्री कृष्ण को प्रसन्न, नोट करें रेसिपी