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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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World Environment Day 2020 : इको फ्रेंडली बन प्रकृति का प्रबंधन समझें

World Environment Day 2020 : इको फ्रेंडली बन प्रकृति का प्रबंधन समझें

डॉ. साधना सुनील विवरेकर

World Environment Day 2020
 
* पर्यावरणीय नैतिकता हमारा सर्वोपरि कर्तव्य
 
पृथ्वी व प्रकृति का घेरा या आवरण पर्यावरण कहलाता है। जो वायु, जल, भूमि, गगन, सूर्य का प्रकाश एवं समस्त प्राणियों (मनुष्य सहित) से मिलकर बनता है। इस पर्यावरण को समस्त जीव प्रभावित भी करते हैं व उससे प्रभावित भी होते हैं। इस सृष्टि को चलायमान रखने के लिए ईश्वर ने इसके जैविक व अजैविक घटकों के बीच लेन-देन का एक सुचक्र बनाया, एक-दूसरे के बीच खाद्य श्रृंखला व खाद्य जाल निश्चित किया जिससे हर प्राणी की भोजन की व्यवस्था बनाई तथा इन सबके लिए ऊर्जा के सतत स्त्रोत के रूप में सूर्य साक्षात ईश्वर का प्रतिरूप है। 
 
प्राकृतिक संपदा के रूप में कभी न खत्म होने वाले जल स्त्रोत बनाए, अनेक प्रजाति के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, वृक्ष-लताएं बनाई जिनसे हमारे जीवन की हर मूलभूत आवश्यकता हवा, पानी, भोजन का इंतजाम किया तो साथ ही अनेक सुमधुर व खट्‌टे-मीठे फलों का, स्वादिष्ट सब्जियों को, सुगंधित फूलों का निर्माण किया। जन्म से लेकर मृत्यु तक लगने वाली हर वस्तु पेड़-पौधों या वृक्षों से आती है। मांसाहारी जीवों का भोजन भी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पौधों से ही बनता है। 
 
ये पौधे न हो तो जीवन के लिए ऊर्जा का आधार ही खत्म हो जाएगा क्योंकि पशु-पक्षी या इंसान सूर्य के प्रकाश की सहायता से भोजन बनाने की क्षमता नहीं रखते। हरे पौधों में यह क्षमता क्लोरोफिल के कारण होती है व ईश्वर ने यह सृजन का वरदान व दायित्व केवल और केवल पेड़-पौधों को ही दिया है। हम सब अपने भोजन के लिए शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) के लिए एवं जल का प्रचुर भंडार सदा बना रहे इसके लिए पौधों पर ही आश्रित है। बदले में ये मूक बाशिंदे केवल थोड़ी सी जगह व अपना अस्तित्व भर चाहते हैं। हमारी संवेदनशीलता व अपनत्व ही इन्हें बचा सकता है।
 
 
विकास व प्रगतिशीलता के साथ आधुनिक होने के दंभ में हम इनका महत्व अनदेखा कर रहे हैं और अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। पृथ्वी की, वसुधा मां की सहृदयता व सहनशीलता की परीक्षा हम अति दोहन व हर जगह पर सीमेंट, कांक्रीट, लोहे के अतिक्रमण व अति स्वार्थ की वजह से ले रहे हैं।


यह ममतामयी मां अपने ही बच्चों के हाथों अपना हरा-भरा आंचल क्षत-विक्षत होने हर दो कदम पर बोरिंग के लिए अपना सीना छलनी होने व अपने सुरक्षा कवच छाते ओजोन परत के क्षय होने व उसमें छेद होने की यातना छेल रही है। अपार प्राकृतिक संपदा, खूबसूरत फूल, स्वादिष्ट फल, पौष्टिक भोजन, सोना, चांदी, हीरे जैसी बहुमूल्य धातु हो या बेशकीमती पेट्रोल, डीजल सब कुछ लुटाते हुए भी इंसान के लालच व स्वार्थ से आहत मां अब गुस्से से लाल हो रही है।
 
प्रकृति व पर्यावरण के अतिदोहन व प्रदूषण के निम्न प्रकोप झेलने पड़ रहे हैं।
 
1. जलवायु परिवर्तन(Climate change)- वनों की अंधाधुंध कटाई से प्रकृति का जल चक्र बिगड़ा है। साथ ही जलवायु में अचानक परिवर्तन हो रहा है जिससे तापमान बढ़ा है, वर्षा की कमी हो रही है, भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़, सूखा, बेमौसम बरसात होती है जनहानि, संक्रामक रोगों में वृद्धि, पेड़ों की जातियों का लुप्त होना इसी के दुष्परिणाम है।
 
 
2. भूमंडलीय तापन (Global warming)- पृथ्वी के आवरण में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड व मिथेन गैस उपस्थित होती है जिनके आपस में निश्चित अनुपात में होने से पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न परंतु निश्चित तापमान होता है। वहां की वनस्पति, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, इंसान उस तापमान पर अपनी जैविक क्रियाओं को आसानी से करते हैं। परंतु बढ़ते औद्योगिकीकरण से, भौतिकवाद से उपजी सुख-सुविधाओं के अति उपयोग से वातावरण में CO2 व CH4 (मिथेन) के साथ CFC (क्लोरो फ्लोरो कार्बन, फ्रिज में उपयोग में लाई जाने वाली गैस) की मात्रा में वृद्धि हुई है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी है। अतिवृष्टि या सूखा, समुद्री तूफान, मृदा क्षरण जैसी विपदाओं के लिए आखिर हम ही जिम्मेदार हैं।
 
3. अम्लीय वर्षा- वायु प्रदूषण के फलस्वरूप शुद्ध वर्षा का जल जो अमृत बरसाता था विभिन्न अम्लों जैसे सल्फूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड, कार्बोनिक एसिड द्वारा प्रदूषित हो अम्लीय वर्षा लाता है जिससे भूमि बंजर होती है व त्वचा का केंसर इत्यादि होता है।
 
4. जल संकट- पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से वृक्षों की संख्या, जंगल लुप्त हो गए जिनके कारण वृक्षों से बाष्पीकृत होने वाला जल न होने से अवर्षा की स्थिति उत्पन्न हो रही है। हम महानगरों में तमाम भौतिक सुविधाएं जुटाने को सुखी होने का पर्याय समझते हैं और मूलभूत आवश्यकता शुद्ध जल के लिए तरसने को मजबूर।
 
 
5. बिजली संकट- महानगरों में हमारे पास अत्याधुनिक यंत्र हैं जो हमारे कामों को आसान बनाते हैं लेकिन बिजली की कटौती से वे यंत्र बेमाने हो रहे हैं।
 
6. ओजोन स्तर का क्षरण- धरती का छाता सुरक्षा कवच ओजोन स्तर है क्योंकि उसकी बदौलत सूर्य के प्रकाश की हानिकारक पराबैंगनी (अल्ट्रा वाइलेट) किरणों के दुष्परिणाम से हम सब जीव बचे रहते हैं। CFC (क्लोरा फ्लोरो कार्बन) की वृद्धि से ओजोन स्तर पतली हो रही है या कई स्थानों पर उसमें छेद हो रहे है जिससे त्वचा का केंसर होता है। कई आनुवंशिक विकृतियाँ उत्पन्न होती है। खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है जिससे वनस्पतियों व सूक्ष्म जीवों पर विपरीत प्रभाव होता है।
 
 
7. प्रकृति के अति दोहन से जंगलों में कमी हुई है जिससे पक्षियों व वन्य जीवों के आवास स्थल के खत्म होने से उनकी प्रजातियां खत्म होने की कगार पर है।
 
8. भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा पेड़ों व वृक्षों की कटाई का परिणाम है क्योंकि वृक्ष जमीन व चट्‌टानों को बांधकर रखते हैं।
 
9. भूकंप हो या बाढ़ या सूखा ये प्राकृतिक आपदाएं पृथ्वी के अंदर का आक्रोश है जो अनेक वैज्ञानिक घटनाओं के कारण घटित होता है। अंततः ये विपदाएं मनुष्य के जीवन, आवास, स्वास्थ्य, परिवहन, ऊर्जा स्त्रोत सब कुछ तहस-नहस कर देती है।

 
10. लू, गर्मी की आवृत्ति व तीव्रता अनेक भयंकर बीमारियों का कारण बनती है।
 
11. मिट्‌टी की उर्वरकता में कमी से कृषि उत्पादन में कमी होती है जो आर्थिक ढांचे को तहस-नहस करती है।
 
12. मरुस्थलीय क्षेत्रों का विकास अधिक हो रहा है।
 
13. भूमंडलीय तापमान की वृद्धि से उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों की बर्फ पिघली तो सृष्टि जलमग्न होते देर नहीं लगेगी।
 
14. बढ़ते वायु, जल प्रदूषण से जैव विविधता खतरे में पड़ रही है।
 
 
15. नाभिकीय दुर्घटनाओं से सर्वनाश होने की प्रबल संभावनाएं हैं।
 
केवल पर्यावरण दिवस मनाने की नहीं प्रकृति के प्रबंधन को स्वहित में समझ उसका संरक्षण करने की, इको फ्रेंडली बनाने की आवश्यकता है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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