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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Water & Women : 'जल' के लिए 'जतन' करने वाली 'जननी' है जरूरी

Water & Women : 'जल' के लिए 'जतन' करने वाली 'जननी' है जरूरी
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संदीपसिंह सिसोदिया

वेबदुनिया की आवाज, जो जरूरी है कल के लिए, आइए जुटते हैं इस महिला दिवस पर 'जल' के लिए...      
 
सृष्टि का संचालन बहुत से तत्वों पर निर्भर है लेकिन जीवन के लिए जिन दो की जरूरत सबसे ज्यादा है वह है 'जल' और 'जननी'.... इंसान खाने के बिना जीवित रह सकता है लेकिन जल के बिना नहीं उसी तरह अगर जननी यानी स्त्री, औरत, महिला, नारी ही नहीं होगी तो जीवन कैसे धरा पर आएगा? 
 
जल और जननी या स्त्री, दोनों की प्रकृति और नियती हमेशा से एक सी है लेकिन दोनों को एक दूसरे के सहयोग से बचाया जा सकता है। 8 मार्च को महिला दिवस के अवसर पर वेबदुनिया अपनी थीम Water & Women रखते हुए 'पानी की परेशानी' को महिला से जोड़कर हर उस मुद्दे पर अपनी बात रख रहा है जो 'जीवन और जननी' के लिए जरूरी है। 
 
जन, जीवन, जल, जंगल, ज़मीन के साथ अब जननी को जोड़ना जरूरी हो गया है। एक स्त्री ही पानी की समस्या को बेहतर ढंग से समझ सकती है और वही निराकरण की दिशा में सार्थक पहल कर सकती है। पर स्त्री क्यों? इस सवाल का जवाब हमें अपनी नजर और नजरिए में बदलाव लाकर मिल सकता है। 
 
खुली आंखों से और गंभीरता से मनन करेंगे तो पाएंगे कि संवेदनशीलता के स्तर पर एक स्त्री ही पानी के उपयोग, सदुपयोग और दुरुपयोग का बेहतर विश्लेषण कर सकती है। वही स्त्री जो हमारे आपके घरों में पानी को एकत्र करने से लेकर उसे बचाने और उसका पुन: इस्तेमाल करने की कवायद में हैरान हो रही है। वह स्त्री जो पानी की बूंद बूंद को सहेजने में हजारों बूंद पसीना बहाती रही है।  
 
नीर और नारी का संबंध सदियों पुराना है। ग्रामीण स्तर पर पनघट, कुंओं और नदियों से जल भरकर घर तक लाने वाली स्त्रियां हैं वहीं शहर में भी एक ग्लास पीने का शुद्ध पानी जुटाने के लिए संघर्षरत है महिला...पानी की जरूरत को लेकर एक स्त्री क्या सोचती है, क्या करती है, कैसे समस्या से निपटती है, कैसे बूंद बूंद सहेजती है, कितना बच बच कर बहाती है लेकिन वास्तव में कितना बचा पाती है....हमने इस समस्या को 'लोकल से ग्लोबल' परिवेश की मौजूदा स्थिति पर नजर डालकर समेटा है। 
 
पानी क्या है? कहां से आया? कहां जाएगा? क्यों है कमी, कैसे करें पूरी, जल के लिए स्त्री क्यों है जरूरी? क्या पानी भरने से लेकर हाथ में देने तक की जिम्मेदारी बस स्त्री की है... गांव से लेकर महानगर तक पानी की क्या है परेशानी, पानी का इतिहास, स्त्रोत नदी से लेकर बोतल तक हर बात की पड़ताल, पानी और भारतीय स्त्री का मिलता जुलता इतिहास/ पानी को लेकर विदेशों में क्या हैं स्थिति, पानी और परंपराएं, पानी को समर्पित तीज-त्योहार से लेकर जल सहेजने की आदिवासी परंपराओं तक, हमने बात की है हर सवाल पर ...
 
पानी को लेकर गांव से लेकर महानगर तक क्या कहते हैं आंकड़े, तथ्यात्मक रिपोर्ट, जल संकट से जूझ रहे इलाकों से ग्राऊंड स्टोरी, भावनात्मक आंकलन, वैचारिक आंदोलन, मंथन, साक्षात्कार, जल के लिए समर्पित हस्तियों से मुलाकात, ग्रामीण से लेकर शहरी इलाकों में पानी को लेकर क्या सोचती हैं महिलाएं और कैसा है उनका संघर्ष, क्या बच्चों को दिए जा रहे हैं पानी सहेजने के संस्कार? इस विशेष सीरीज को करते समय महसूस हुआ है अब भी वक्त है संभल जाइए वरना बूंद-बूंद और बेटी-बेटी को तरसेंगे हम.... 
 
इस सीरीज का लोगो भी इसी बात का प्रतीक है कि इसी जब तक पानी हमारे जीवन में है सब कुछ सुंदर है, ताजातरीन है, हरा भरा है...स्त्री का संसार में होना भी वैसा ही है... पर हमारी लापरवाही और उदासीनता के कारण पानी और स्त्री दोनों अपने मूल स्वरूप खो रहे हैं... इन्हें सहेजा जाना है, बचाना है.. कद्र करना है, कीमत समझनी है, सम्मान करना है...नहीं तो दोनों हमारे जीवन से बह जाएंगे और हमारे पास बचेगा नीरस, शुष्क और रंगहीन जीवन... यही हमारा प्रतिनिधि प्रतीक चित्र कहता है।  
 
आइए आप भी शामिल हो जाइए 'जल' पर 'ज्वलंत' सवालों के 'जवाब' तलाशने के लिए.... इस महा-अभियान में....जो जरूरी है कल के लिए, आइए जुटते हैं इस 'महिला दिवस' पर जल के लिए...
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