Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

10 हफ़्तों में ख़ाली हो जाएगा पाकिस्तान का ख़ज़ाना!

10 हफ़्तों में ख़ाली हो जाएगा पाकिस्तान का ख़ज़ाना!
, मंगलवार, 29 मई 2018 (12:11 IST)
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ महीनों से भारी संकट में जाती दिख रही है, लेकिन वहां की राजनीति में सेना बनाम सरकार की लड़ाई थम नहीं रही है। पाकिस्तानी मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपना मूल्य लगातार खो रही है। एक अमेरिकी डॉलर की तुलना में पाकिस्तानी रुपए की क़ीमत 120 रुपए तक चली गई। इसके साथ ही पाकिस्तान विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार हो रही कमी से भी जूझ रहा है।
 
 
पाकिस्तान के पास अब 10.3 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार है, जो पिछले साल मई में 16.4 अरब डॉलर था। पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार डॉन का कहना है कि पाकिस्तान भुगतान संकट से निपटने के लिए एक बार फिर चीन की शरण में जा रहा है और एक से दो अरब डॉलर का क़र्ज़ ले सकता है। पाकिस्तान में जुलाई महीने में आम चुनाव होने वाले हैं और चुनाव के बाद पाकिस्तान आईएमएफ़ की शरण में भी जा सकता है। इससे पहले पाकिस्तान ने 2013 में आईएमएफ़ का दरवाज़ा खटखटाया था।
 
 
10 हफ़्तों तक ही आयात के लिए विदेशी मुद्रा
फ़ाइनैंशल टाइम्स का कहना है कि पाकिस्तान के पास जितानी विदेशी मुद्रा है वो 10 हफ़्तों की आयात के ही बराबर है। फ़ाइनैंशल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार विदेशों में नौकरी कर रहे पाकिस्तानी देश में जो पैसे भेजते थे उसमें गिरावट आई है। इसके साथ ही पाकिस्तान का आयात बढ़ा है और चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर में लगी कंपनियों को भारी भुगतान के कारण भी विदेशी मुद्रा भंडार ख़ाली हो रहा है। चाइना पाकिस्तान कॉरिडोर 60 अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी परियोजना है।
 
 
विश्व बैंक ने अक्टूबर महीने में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि उसे क़र्ज़ भुगतान और करेंट अकाउंट घाटे को पाटने के लिए इस साल 17 अरब डॉलर की ज़रूरत पड़ेगी। पाकिस्तान का तर्क था कि विदेशों में बसे अमीर पाकिस्तानियों को अगर अच्छे लाभ का लालच दिया जाए तो वो अपने देश की मदद कर सकते हैं। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के एक अधिकारी ने फाइनैंशल टाइम्स से कहा था कि अगर प्रवासी पाकिस्तानियों को अच्छे लाभ का ऑफर दिया जाएगा तो देश में पैसे भेजेंगे।
 
 
संकट में पाकिस्तान
उस अधिकारी ने कहा था कि प्रवासियों से पाकिस्तान को एक अरब डॉलर की ज़रूरत है। चीन का पकिस्तान पर क़र्ज़ लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार जून में ख़त्म हो रहे इस वित्तीय वर्ष तक पाकिस्तान चीन से पांच अरब डॉलर का क़र्ज़ ले चुका है।
 
 
अमेरिका की कमान डोनल्ड ट्रंप के हाथों में आने के बाद से पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद में अमेरिका ने भारी कटौती की है। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा है कि पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्ते पूरी तरह से पटरी से उतर गए हैं। उन्होंने कहा कि अगले साल तक पाकिस्तान की मिलने वाली आर्थिक मदद में और कटौती होगी।
 
 
पाकिस्तान और अमेरिका के ख़राब हुए संबंधों के कारण चीन की अहमियत बढ़ गई है। मतलब पाकिस्तान की निर्भरता चीन पर लगातार बढ़ रही है। आईएमएफ़ के अनुसार पाकिस्तान पर क़र्ज़ का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। 2009 से 2018 के बीच पाकिस्तान पर विदेशी क़र्ज़ 50 फ़ीसदी बढ़ा है। 2013 में पाकिस्तान को आईएमएफ़ ने 6.7 अरब डॉलर का पैकेज दिया था।
 
 
चीन से कर्ज़ लेकर उसी से सामान ख़रीदारी
पाकिस्तान में चीन के लिए उसकी सीपीइसी परियोजना काफ़ी अहम है। चीन नहीं चाहता है कि पाकिस्तान में किसी ऐसे आर्थिक दुष्चक्र में फंसे जिससे उसकी परियोजना को धक्का लगे। इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटा दिया था। आईएमएफ़ ने कहा है कि अगले वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान की वृद्धि दर 4.7 फ़ीसदी रहेगी जबकि पाकिस्तान 6 फ़ीसदी से ज़्यादा मानकर चल रहा है।
 
 
पाकिस्तान के आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि वो केवल चीन की मदद से आर्थिक संकट से नहीं उबर सकता है। पाकिस्तान इस संकट से निपटने के लिए सऊदी अरब की तरफ़ भी देख रहा है।
 
 
डॉन अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान को सीपीइसी परियोजना के कारण चीनी मशीनों का आयात करना पड़ रहा है और उसमें भारी रक़म लग रही है और इस वजह से करेंट अकाउंट घाटा और बढ़ रहा है। दूसरी तरफ़ कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमत से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को और भारी पड़ रहा है।
 
 
अप्रत्याशित व्यापार घाटा
पाकिस्तान का व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ा रहा है। मतलब आयात बढ़ रहा है और निर्यात लगातार कम हो रहा है। पिछले साल पाकिस्तान का व्यापार घाटा 33 अरब डॉलर का रहा था। यह घाटा पाकिस्तान के लिए अप्रत्याशित था। व्यापार घाटा बढ़ने का मतलब यह है कि पाकिस्तानी उत्पादों की मांग दुनिया में लगातार गिर रही है या दूसरे विदेशी उत्पादों के समक्ष टिक नहीं पा रहे हैं। यहां तक कि पाकिस्तान में भी पाकिस्तानी इंडस्ट्रीज अपने उपभोक्ताओं के सामने पिछड़ती दिख रही हैं।
 
 
पाकिस्तान में आय कर देने वालों की संख्या भी काफ़ी सीमित है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार 2007 में पाकिस्तान में आय कर भरने वालों की संख्या महज 21 लाख थी जो 2017 में घटकर 12 लाख 60 हज़ार हो गई। कहा जा रहा है कि इस साल इस संख्या में और कमी आएगी।
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

अंकों के भारी बोझ तले डगमगा रही है स्कूली शिक्षा