Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

Lata Mangeshkar: कंठ भी साधना का स्थान है

lata mangeshkar
webdunia

नवीन रांगियाल

इंदौर में एक इलाका है 'तोपखाना'। अब इस नाम को ज़्यादा इस्तेमाल नहीं किया जाता। सुबह का वक्त है। तोपखाने की गलियों और सड़कों में हल्की आवाजाही है। कुछ लोग साइकिल पर टिफिन लटकाकर गुजर रहे हैं। एकआध साइकिल रिक्शा यहाँ से गुजर जाती है। यहां ज़्यादातर आवाजाही 'मिल' में काम करने वाले लोगों की है। एक वक्त में इंदौर में 'मिल' व्यवसाय जीवन-यापन का बड़ा जरिया रहा है।

तोपखाने में सुबह की इसी गहमागहमी के बीच लकड़ी और मिट्टी के परंपरागत तरीके से बने इंदौर के कई घरों में से एक घर की छत है। इंदौर के इस पुराने घर की छत पर एक सावली सी लड़की अपने लंबे बाल धूप में सुखा रही है। वो केश झटक रही हैं और उसकी आभा के आसपास तमाम बुलबुले उड़ रहे, बिखर रहे हैं।

यह किसी भी शहर में जीवन का आम दृश्य है। किसी भी शहर में लोग ठीक इसी तरह चलते और जीते और आवाजाही करते हैं। लड़कियां अपने घर की छतों पर इसी तरह धूप सेकतीं हैं, लेकिन इस घर की छत पर जो लड़की अपने बाल धूप में झटक रही थीं उसका नाम लता मंगेशकर था।

यही वो नाम है जो भारत में संगीत को या हिंदी सिनेमा के संगीत के इतिहास को दो सिरों में या दो एरा में बांटता है-- प्री लता मंगेशकर और पोस्ट लता मंगेशकर।

जीवन की तमाम आवाजाही और गहमागहमी के इस कोरस के बीच लता एक पक्के स्वर की तरह खड़ी थीं, लेकिन किसी को पता नहीं था वो एक मिथक बनेगी, एक ऐसी ध्वनि होगी जो 130 करोड़ से ज़्यादा दिलों में कंपन करेगी।

स्वर का प्रारंभ सा रे ग म प ध नि से होता है, यह षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद के प्रारंभिक रूप हैं। तथ्य है कि ये स्वर जितनी बार कंपन करेंगे, वे उतना ऊंचा उठते हैं, उतना ही दूर जाते हैं। उतना ही विस्तार पाते हैं। विस्तार की कोई सीमा नहीं।

स्वर के विस्तार का विस्तार असीमित संभावना है। लता मंगेशकर यही विस्तार हैं, यही संभावना, जो स्वर के इस नियत क्रम को भी पार कर के सप्तक बन गईं-- सप्तक को भी पार कर, उससे आगे जाकर अपने कंठ में वो स्थान स्थापित किया जहां किसी ग्रामर, किसी शास्त्र की जरूरत ख़त्म हो जाती है।

कई बार कंठ भी समाधि का स्थान हो सकता है।

एक लंबी साधनागत यात्रा के बाद की अनपेक्षित, अचंभित करने वाली प्राप्ति। सिद्धि। (संगीत की एक शाश्वत काया में इस अवस्था को देखने वाले हम इस दौर के सबसे समृद्ध लोग हैं।)

जहां शास्त्र खत्म हो जाते हैं, वहां भाव है, जहां शब्द खत्म हो जाते हैं वहां स्वर है, आलाप है। अंततः सिद्धि।

ठीक इसी स्थान पर लता मंगेशकर खड़ी थीं। जहां बस कुछ होता है। वो बस थीं। वो बस गा रहीं थीं। अपने होने की तरह। वो कुछ नहीं कर रहीं रहीं, बस घट रहीं थीं, हो रही थीं। करना होने जाने से ज़्यादा 'पार' की घटना है। होने में स्वयं घटने वाले को भी नहीं पता होता है कि वो है, या वो घट रहा है। यह बस एक बुलबुला होता है, जीवन का एक बुलबुला।

बेलौस, अपरिचित, अनजान और अबोध बुलबुला। कहां से आया, कहाँ गया। कुछ नहीं पता। उसकी आवाज़ में जीवन के उड़ते हुए तमाम बुलबुले शामिल हैं। उसी एक आवाज़ में प्रेम भी है, करुणा भी। रंज भी है, कसक भी। पीर भी है, हर्ष भी।

आवाज़ के इतने रेशे, इतनी परतें और इतने आयाम कि उनकी कोई संख्या नहीं। असंख्य लोगों, जीवन के लिए असंख्य आयाम। बस, एक आवाज़ है और हम अपनी अवस्थाओं के मुताबिक अपने- अपने रेशे अपनी- अपनी परतें चुन लेते हैं।

कोई ट्रक और बस में चलता हुआ लता की आवाज़ से सफ़र का रेशा चुन लेता है, कोई रात के अंधेरे में अपने पीर, अपने दुःख को चुन लेता है। कोई किसी दरिया किनारे किसी का हाथ पकड़कर चलते हुए प्रेम की परत अपने लिए चुन लेता है। कहीं भक्ति के पवित्र छींटे हैं।

लता की आवाज़ यहाँ मौजूद हर आदमी का राग है, हर आदमी का आलाप--- और तमाम ज़िन्दगियों का कोरस भी। यह करने में नहीं होता, यह बस हो जाने में होता है। अनजाने में, अबोध में।

ठीक उसी तरह जैसे किसी दिन तोपखाने में एक घर की छत पर लता मंगेशकर अपने बाल झटक रहीं थीं। उन्हें नहीं पता था कि वो लता मंगेशकर हैं। उन्हें नहीं पता था कि उनके केश से पानी के बुलबुले उड़ रहें हैं। वो बस किसी अबोध लड़की की तरह अपनी ज़िंदगी से प्यार कर रही थी।

जीवन चलता रहेगा, जैसे अब तक चलता रहा है। सड़कों, गलियों से लोग गुजरते रहेंगे। साइकिल पर टिफिन बांधकर। पैदल और रिक्शों में ज़िंदगी की आवाजाही, उकताहट, जारी रहेगी। लेकिन इस बार उनके पास एक आवाज़ रह गई, जो कहीं से नहीं आई थी और कहीं नहीं गई-- वो बस है.

बसंत पंचमी की इस जा‍ती हुई बेला में जिंदगी के इस चक्र को पार करने में आनी वाली इन तमाम तकलीफों के बीच हम बहुत कृतज्ञ हैं कि हमारे पास एक लता मंगेशकर हैं। इस एक आवाज़ के सहारे हम गाते रहेंगे... मेरा जीवन भी सवारों, बहारों...!

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

रोज डे स्पेशल : मोहब्बत के इज़हार के लिए गुलाब ही क्यों?