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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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दीपावली पर कविता : मंगलदीप जलाओ...

दीपावली पर कविता : मंगलदीप जलाओ...
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राकेशधर द्विवेदी

मंगलदीप जलाओ
अंतस में जो फैले अंधियारे
उसको दूर हटाओ
मंगलदीप जलाओ। 
 
हर साल है मरता रावण
फिर भी सीता है बिलखती
लूट, अत्याचार में डूबा शासक
है जनता सोती रहती
मंगलदीप जलाओ। 
 
जनता-जनार्दन को उसकी
कुंभकर्णी नींद से जगाओ
हे शासक तुम प्रजा के बन जाओ
सुख-शांति-समृद्धि लाओ
मंगलदीप जलाओ। 
 
मन वीणा के तार जो टूटे
उनको फिर से जोड़ना है
न्याय, धर्म और सहिष्णुता के
बीज नए फिर से बोने हैं
मंगलदीप जलाओ। 
 
हर घर में हो उजियारा
हर घर में हो आतिशबाजी
भूख-प्यास से न हो क्रंदन
खुशियों का जग हो कानन
मंगलदीप जलाओ।
 
सत्य हर बार ही जीते बाजी
असत्य, अशिक्षा, अज्ञानता के रावण को
अबकी बार जलाओ
रामराज्य के सपनों को पूरा कर दिखलाओ
मंगलदीप जलाओ। 


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