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शेरनी : फिल्म समीक्षा

शेरनी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 18 जून 2021 (20:37 IST)
शेरनी न डॉक्टूमेंट्री बन पाई है और न फीचर फिल्म, लिहाजा न इधर की रही और न उधर की। न तो फिल्म ऐसी है जो जंगल, शिकार, वन विभाग के कार्य करने की शैली, जंगल में रहने वाले ग्रामीणों और जानवरों के बारे में ज्ञान में कोई इजाफा करे और न ही ऐसी फिल्म है ‍जिससे मनोरंजन हो। ऐसे में फिल्म में बोरियत के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होता है। आश्चर्य की बात तो ये है कि इसे अमित वी. मसूरकर ने निर्देशित किया है, जिनके नाम के आगे न्यूटन नामक उम्दा फिल्म दर्ज है।

कहानी है विद्या विंसेट (विद्या बालन) की जिसकी मध्यप्रदेश के जंगल में डीएफओ के रूप में नियुक्ति हुई है। विद्या अपना काम ईमानदारी के साथ करना चाहती हैं, लेकिन भ्रष्ट ऑफिसर और राजनेता उसके रास्ते में रूकावट बनते हैं। एक आदमखोर शेरनी को वह जिंदा पकड़ना चाहती है, लेकिन उस शेरनी को मार कर कुछ लोग अपने स्वार्थ साधना चाहते हैं।

फिल्म का शुरुआती घंटा तो डॉक्यूमेंट्रीनुमा है और बोरियत से भरा है। गति इतनी धीमी है कि आप ऊंघ भी सकते हैं। इसके बाद इसमें फीचर फिल्म जैसे तत्व डाले गए हैं। एक विलेननुमा शिकारी दिखाया है, राजनीति के रंग दिखाए हैं, पर्यावरण और विकास पर दो-चार लाइनें हैं, युवा विद्या पर मां और सास का परिवार बढ़ाने और गहने पहनने का दबाव है, लेकिन ये सब बातें इतनी सतही हैं कि सारे सीन सपाट बने हैं।

अमित वी. मसूरकर ने कुछ मुद्दों को उठाने की कोशिश की है कि ग्रामीण अपने पशुओं को चराने के लिए कहां ले जाएं, किस तरह नेता अपने स्वार्थ के लिए जंगल में रहने वालों को फुसलाते हैं, एक महिला ऑफिसर को काम के दौरान मुश्किलें आती हैं, लेकिन ये सभी मुद्दे फुस्सी साबित हुए हैं। कुछ भी ऐसी बात नहीं है जो नई हो या जोरदार तरीके से उठाई गई हो।

फिल्म की स्क्रिप्ट इस तरह से लिखी गई है कि कुछ भी बात उठ कर सामने नहीं आती है। न संवादों से और न ही घटनाक्रमों के जरिये। नीरज काबी और शरत सक्सेना के किरदार भी ठीक से नहीं लिखे गए हैं। कभी भी ये अपना रंग बदल लेते हैं।

बतौर निर्देशक अमित वी. मसूरकर निराश करते हैं। उनके पास ढंग की कहानी नहीं थी और इस वजह से उनका प्रस्तुतिकरण कोई भी प्रभाव नहीं छोड़ पाया। पूरी फिल्म बिखरी-बिखरी लगती है। तकनीकी रूप से भी फिल्म प्रभावित नहीं कर पाई।

सपाट कहानी और कमजोर निर्देशन का असर कलाकारों के अभिनय पर भी पड़ा है। विद्या बालन बेहतरीन एक्ट्रेस हैं, लेकिन ‘शेरनी’ में वे बुझी और खिंची सी लगी। अपने स्तर के आसपास भी नहीं पहुंच पाई। वृजेन्द्र काला एक जैसा अभिनय कर रहे हैं। नीरज काबी फीके रहे। विजय राज और शरत सक्सेना का अभिनय ही औसत से बेहतर रहा।

कुल मिलाकर ये शेरनी बिना दांत और नाखून के है।

निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, विक्रम मल्होत्रा, अमित वी. मसूरकर
निर्देशक : अमित वी. मसूरकर
कलाकार : विद्या बालन, शरत सक्सेना, नीरज काबी, वृजेन्द्र काला, विजय राज
* अमेजन प्राइम पर उपलब्ध * 2 घंटे 10 मिनट 45 सेकंड
रेटिंग : 1.5/5

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