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एक ऐसा गांव जहां हर घर के सामने क़ब्र है

एक ऐसा गांव जहां हर घर के सामने क़ब्र है
, बुधवार, 2 मई 2018 (11:48 IST)
- श्याम मोहन
 
इस गांव में पहुंचते ही लोगों के दिमाग़ में एक प्रश्न कौंधता है कि 'क्या वो किसी क़ब्रिस्तान में आ गए हैं जहां कई घर हैं, या उस गांव में जो क्रबिस्तान से अटा पड़ा है।'
 
आंध्र प्रदेश के कुरनूल ज़िले में अय्या कोंडा एक ऐसा गांव है, जहां हर घर के सामने एक क़ब्र है। अय्या कोंडा कुरनूल ज़िला मुख्यालय से 66 किलोमीटर दूर गोनेगंदल मंडल में एक पहाड़ी पर बसा है।
 
हर घर के सामने क़ब्र
मालादासरी समुदाय के कुल 150 परिवारों वाले इस गांव के लोग अपने सगे संबंधियों की मौत के बाद उनके शव को घर के सामने दफ़न करते हैं क्योंकि यहां कोई क़ब्रिस्तान नहीं है।
 
इस गांव के हर घर के सामने एक या दो क़ब्र देखने को मिलती हैं। गांव की महिलाओं और बच्चों को अपनी दिनचर्या के लिए भी इन्हीं क़ब्रों से होकर गुजरना पड़ता है।
 
महिलाएं इन्हें पार कर पानी लेने जाती हैं तो बच्चे इनके इर्दगिर्द खेलते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ये क़ब्र उनके पूर्वजों की हैं जिनकी वो रोज पूजा करते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं और अपने रिवाज़ों का पालन करते हैं। घर में पकाया जाने वाला खाना परिवार के सदस्य तब तक नहीं छूते जब तक उसे मृतकों की क़ब्र पर चढ़ाया नहीं जाता है।
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इन क़ब्रों की क्या है कहानी?
इस रिवाज के बारे में गांव के सरपंच श्रीनिवासुलु ने बीबीसी से कहा, "आध्यात्मिक गुरु नल्ला रेड्डी और उनके शिष्य माला दशारी चिंतला मुनिस्वामी ने गांव के विकास में अपनी पूरी शक्ति और धन लगा दिया था। उनकी किए कामों का आभार मानते हुए ग्रामीणों ने यहां उनके सम्मान में एक मंदिर स्थापित किया और उनकी पूजा करने लगे। ठीक उसी तरह अपने परिवार के बड़ों के सम्मान में ग्रामीण घर के बाहर उनकी क़ब्र बनाते हैं।"
 
यह रिवाज केवल भोग लगाने और पूजा करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि जब वो नए गैजेट्स भी ख़रीदते हैं तो पहले उसे इन क़ब्रों के सामने रखते हैं, इसके बाद ही उसका इस्तेमाल शुरू करते हैं।
 
श्रीनिवासुलु ने बीबीसी से कहा कि गांव वालों के बीच अंधविश्वास की गहरी जड़ों को हटा पाना बहुत मुश्किल है और अब उन्होंने गांव के बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है क्योंकि वो ही भविष्य में बदलाव ला सकते हैं।
 
उन्होंने आगे कहा कि बच्चों में कुपोषण गांव की एक और चिंता है और आंगनबाड़ी केंद्र के लिए और पहाड़ी ढलानों पर घर बनाने के लिए ग्रामीणों को ज़मीन आबंटन के लिए सरकार से अनुरोध किया गया है।
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और भी अंधविश्वास है
इस गांव में कुछ और भी प्रथाएं मौजूद हैं जैसे, यहां के लोग गांव के बाहर शादी नहीं करते और परंपरागत खाट पर भी नहीं सोते हैं। गांव वालों का मुख्य पेशा खेती है। यहां ये अनाज के अलावा प्याज, मूंगफ़ली और मिर्च की भी खेती करते हैं।
 
अय्या कोंडा को इस इलाके में खरगोशों की भारी आबादी के कारण पहले 'कुंडेलू पडा' (खरगोशों के लिए घर) के नाम से जाना जाता था। हालांकि बाद में इसका नाम अय्या कोंडा रखा गया। गांव वालों को अपने राशन, पेंशन या रोजमर्रा की ज़रूरतों के लिए पहाड़ी के नीचे गंजिहल्ली जाना पड़ता है।
मंडल परिषद क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र (एमपीटीसी) के सदस्य ख्वाजा नवाब कहते हैं कि क़ब्रिस्तान के निर्माण के लिए अगर सरकार ज़मीन आबंटित कर दे तो यह अंधविश्वास को दूर करने में समाधान के रूप में काम कर सकता है।
 
गांव के प्रमुख रंगास्वामी ने कहा, "पीढ़ियों से जिन रिवाजों का हम पालन करते आ रहे हैं उन्हें रोक देने से हमें नुकसान पहुंच सकता है। हम इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि भविष्य में क़ब्र बनाने के लिए हमारे पास ज़मीनें नहीं रह जाएंगी। हमारे गांव में नेता लोग चुनाव से पहले झांकने भी नहीं आते।"
 
कुरनूल से सांसद बुट्टा रेणुका से जब बीबीसी ने पूछा तो उन्हें उनके क्षेत्र में पड़ने वाले इस गांव में ऐसी कोई प्रथा की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि वो पहली बार इस विषय में बीबीसी से ही सुन रही हैं।
 
उन्होंने आश्वासन दिया कि ग्रामीणों को सहायता पहुंचाई जाएगी, साथ ही ये भी बताया कि उन्होंने ज़िला कलेक्टर से गांव की स्थिति पर एक रिपोर्ट तलब की है।

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