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Valentine Day 2023 : एक Love Story थोड़ी हटकर....

दीप्ति शर्मा
वेलेंटाइन्स डे जिसे प्रेम का पर्व कहा जाता है, जिसमें आज युवा पीढ़ी एक दूसरे को गुलाब, टेडी बीयर, चॉकलेट्स और महंगे गिफ्ट देकर अपने प्रेम का इजहार करते हैं। क्या वाकई प्रेम के पर्व में इन सभी चीजों की जरूरत होती है ? क्या इनके बिना प्रेम को व्यक्त नहीं किया जा सकता ? क्या वाकई यह दिवस केवल युवाओं के लिए निश्चित है ?
 
 नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है, प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए किसी भी महंगे गिफ्ट, फूल या चॉकलेट्स की जरूरत नहीं है। प्रेम निश्चल होता है और वह बदले में किसी उपहार की उम्मीद नहीं करता, और ना ही सच्चे प्रेम को किसी उम्र में बांधा जा सकता है।
 
कम से कम हरी बाई और उनके पति नारायण सिंह ठाकुर के प्रेम को देखकर तो यही लगता है की प्रेम केवल त्याग और समर्पण मांगता है। जहां आज लोग पैसे के या बुनियादी सुविधाओं के अभाव में एक दूसरे को तुरंत छोड़ने पर तैयार रहते हैं, वहीं हरी बाई और नारायण सिंह इतने अभाव में जिंदगी जीते हुए भी एक दूसरे के साथ है और बिना किसी शिकवे शिकायत के।
 
 बेटी को स्कूल छोड़ते वक्त राह में अचानक मुझे एक ऐसा जोड़ा दिखाई दिया जिसको देखकर केवल मेरा ही नहीं मेरी बेटी का दिल भी खुश हो गया। गाड़ी चलाते चलाते सहसा ही उन पर नजर पड़ी।बस्ती में रहने वाला यह जोड़ा बाहर सड़क किनारे धूप में बैठा हुआ था। अपने पति को कुर्सी पर बैठाकर हरी बाई उनकी दाढ़ी बना रही थी वो भी इतने प्यार से। फिर मुस्कराते हुए उनके बालों में तेल लगाया और उनको बिलकुल अच्छे से तैयार करके बैठाया। यह देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं उनके पास जाकर रुक गई। 
 
तकरीबन 55 से 60 साल का की उम्र रही होगी हरीबाई और उनके पति नारायण सिंह ठाकुर की। हरी बाई को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह अपनी युवावस्था में कितनी खूबसूरत रही होंगी और नारायण सिंह भी एक छरहरे से नौजवान रहे होंगे । 
 
 मैंने हरी बाई से पूछा कि आप इनकी दाढ़ी क्यों बना रही हो ? उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले उनके पति को लकवा हो गया था और उनके पैर, हाथ दोनों लकवाग्रस्त हैं,  सो वह ही रोज़ उनके सारे काम करती है । शुरुआत में हरीबाई को किसी की गाड़ी पर बैठाकर उनको नाई की दुकान तक ले जाना पड़ता था, पर बार बार ऐसा करना मुश्किल हो रहा था और कोई बार बार मदद को तैयार भी नहीं था इसलिए उन्होंने खुद रेज़र खरीदकर दाढ़ी बनाना सीखा। 
 
उनका एक बेटा है जो 3 साल पहले काम पर गया गया था पर अब वह वापस आना नहीं चाहता, न कोई हालचाल लेता है और  न ही कोई आर्थिक मदद और न सहायता देता है। नागपुर में रहने वाले उनके भाई और यही भोपाल में रहने वाली उनकी बेटी से थोड़ी बहुत मदद मिल जाती है। आज उनके घर पर कोई और नहीं है ऐसे में हरीबाई कहती हैं कि मेरे पति ने कई साल मेरा ख्याल रखा और बहुत प्यार और सम्मान दिया तो अब मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं उनकी सेवा करुं और उनका ख्याल रखूं।
 
 हरिबाई का कहना है कि तकलीफ है तो आती जाती रहती है पर साथ बहुत मुश्किलों से मिलता है। इन्होंने मेरा खयाल रखा और अब मेरी बारी है, चाहे कोई साथ दे या न दे हम दोनों हमेशा साथ हैं और एक दूसरे का ख्याल रखते हैं।
 
 हरीबाई और नारायण सिंह के इस निश्चल प्रेम को देखकर यह बात तो सिद्ध हो जाती है कि युवा और ऐसे कई लोग जो उपहार, चॉकलेट, टेडी बीयर आदि देखकर सारे समाज के सामने यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि केवल हम ही एक दूसरे को सच्चा प्रेम करते हैं और उसका प्रचार प्रसार सोशल मीडिया पर भी जोर शोर से करते हैं, वही कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बिना किस दिखावे और उम्मीद के अपने प्रेम को निभाएं चले जाते हैं। 
 
 निश्चित ही यह कहानी शायद आपको उतनी खास न लगे लेकिन मुझे यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि किस प्रकार से हरीबाई अपने पति की दाढ़ी बनाते हुए प्यार से मुस्कुरा रही थी। यकीन मानिए उनके इस निश्चल प्रेम को उनसे बात करके,  उनको देखकर ही महसूस किया जा सकता है। 
 
 तो ये थी वेलेंटाइन्स डे पर एक बहुत प्यारी सी लव स्टोरी  जो हम सबके लिए शायद गुमनाम थी है और रहेंगी। लेकिन हरि बाई और नारायण सिंह जैसे लोग ही सच्चे प्रेम की परिभाषा को चरितार्थ करते हैं दरअसल सच्चा प्रेम तब ही होता है जब हम सुख में नहीं दुःख में भी साथ दें बिना किसी शर्त के।

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