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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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अमरावती सीट पर कभी नहीं रहा भाजपा का सांसद, नवनीत राणा ने बढ़ाई उम्मीदें

कांग्रेस ने दरयापुर के विधायक बलवंत बसवंत वानखेड़े को चुनाव में उतारा है

Amravati Lok Sabha constituency
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वृजेन्द्रसिंह झाला

BJP candidate from Amravati Navneet Kaur Rana: महाराष्ट्र की अमरावती सीट पर इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। यदि भाजपा उम्मीदवार नवनीत राणा इस बार चुनाव जीतती हैं तो पहली बार इस सीट पर भाजपा का सांसद निर्वाचित होगा। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर वर्तमान में नवनीत राणा सांसद हैं। उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीता था। उन्होंने यह चुनाव करीब 36 हजार से ज्यादा वोटों से जीता था। इस बार उनका मुकाबला दरयापुर से कांग्रेस विधायक बलवंत बसवंत वानखेड़े से है। 
 
6 में से 3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा : यह लोकसभा क्षेत्र 6 विधानसभा सीटों- बडनेरा, अमरावती, तोएसा, दरयापुर, मेलघाट और अचलपुर में बंटा हुआ है। इस क्षेत्र की एकमात्र बडनेरा विधानसभा से निर्दलीय रवि राणा (अब भाजपा) विधायक हैं। रवि सांसद नवनीत राणा के पति हैं। राणा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव जीता था, लेकिन बाद में वे भाजपा में शामिल हो गईं। अमरावती, तोएसा और दरयापुर में कांग्रेस के विधायक हैं, जबकि मेलघाट और अचलपुर में पीजेपी के विधायक हैं। 
 
क्या है इस सीट का चुनावी इतिहास : अमरावती सीट पर 1952 से 1989 तक लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा। 1952 से अप्रैल 1965 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व पंजाबराव ने किया। वे नेहरू कैबिनेट में कृषि मंत्री भी रहे। लेकिन, 1989 के चुनाव में सीपीआई के सुदाम देशमुख ने कांग्रेस की जीत के सिलसिले को तोड़ा। 1991 में फिर इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा किया। यहां से प्रतिभा पाटिल ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता, जो बाद में भारत की राष्ट्रपति निर्वाचित हुईं। 
 
पहली बार शिवसेना ने जीती सीट : 1996 में यहां से पहली बार शिवसेना के अंनत गुढ़े चुनाव जीते। 1998 में इस सीट पर आरपीआई के आरएस गवई चुनाव जीते। 1999 से 2019 तक इस सीट पर शिवसेना का कब्जा रहा, लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव इस सीट पर नवनीत राणा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीता। अब वे भाजपा के टिकट पर इस सीट से लोकसभा उम्मीदवार हैं।
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हालांकि 2019 में नवनीत को कांग्रेस और एनसीपी का समर्थन प्राप्त था, लेकिन इस बार कांग्रेस प्रत्याशी ही उनके सामने हैं। साल 2014 में नवनीत ने एनसीपी के टिकट से अमरावती से सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस सीट पर 18 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। 2019 में मोदी लहर के बावजूद इस सीट से शिवसेना उम्मीदवार नहीं जीत पाया था। 
 
जातीय समीकरण : जहां तक जातिगत समीकरणों का सवाल है तो यहां दलित वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस सीट पर करीब साढ़े तीन लाख दलित वोटर हैं, जबकि एसटी वोटरों की संख्या करीब ढाई लाख है। मुस्लिम वोटर भी यहां बड़ी संख्या में हैं। इनकी संख्‍या करीब साढ़े 3 लाख के आसपास है। जातीय समीकरण के आधार पर देखें तो नवनीत राणा की राह आसान दिखाई नहीं देती।   
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नवनीत की जाति को लेकर विवाद : ‍तत्कालीन मुख्‍यमंत्री और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर नवनीत काफी सुर्खियों में आई थीं। उस समय राणा दंपति को जेल भी जाना पड़ा था। नवनीत के साथ जाति से संबंधित विवाद भी जुड़ा हुआ है। शिवसेना के पूर्व सांसद आनंदराव अड़सुल ने उन पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनवाकर लोकसभा चुनाव लड़ने का आरोप लगाया था। जून 2021 में बंबई हाईकोर्ट ने उनका जाति प्रमाणपत्र रद्द कर दिया था। साथ ही उन पर दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था। जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई। 
  
क्या है अमरावती का इतिहास : अमरावती का प्राचीन नाम उदुम्ब्रावती है। बाद में यह नाम बदलकर उम्ब्रावती हुआ और कालांतर में यह शहर अमरावती के नाम से पहचाना जाने लगा। इस शहर का नाम प्राचीन अंबादेवी मंदिर के चलते अमरावती हुआ। अमरावती को विदर्भ की सांस्कृति राजधानी भी माना जाता है। राजधानी मुंबई से करीब 680 किलोमीटर दूर अमरावती में श्रीकृष्ण और वेंकटेश्वर स्वामी के मंदिर भी हैं। 

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