नई दिल्ली। मुम्बई में 1993 के श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के सिलसिले में मौत की सजा पाने वाले एकमात्र दोषी याकूब मेमन को गुरुवार सुबह फांसी दे दी गई और इसके साथ ही वह पिछले चार वर्षों में आतंकी मामलों में ऐसा तीसरा दोषी बन गया जिसे फांसी दी गई।
याकूब मेमन को आज नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी दी गई जिसका आज 53वां जन्मदिन था।
फांसी की सजा पाए अपराधी का पक्ष भी अंत-अंत तक सुनने और उचित न्याय दिलाने के लिए शीर्ष अदालत के दरवाजे आधी रात को खुले और करीब दो घंटे तक सुनवाई हुई, लेकिन याकूब को राहत नहीं मिल सकी।
सुप्रीम कोर्ट में तीन बजे रात से शुरू हुई सुनवाई पांच बजे तक चलती रही और उधर यहां केंद्रीय जेल में उसे फांसी पर लटकाने की प्रक्रिया भी समानान्तर चलती रही।
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मेमन से पहले संसद पर हमला मामले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरू को नौ फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में सुबह आठ बजे फांसी दी गई थी।
अफजल गुरू दिसंबर 2001 में संसद पर हमले की साजिश रचने के मामले में दोषी करार दिया गया था और उच्चतम न्यायालय ने 2004 में उसे मौत की सजा सुनाई थी।
भारी हथियारों से लैस पांच आतंकवादी 13 दिसंबर 2001 को संसद भवन परिसर में घुस गए थे और उन्होंने अंधाधुंध गोलीबारी करके नौ लोगों की जान ले ली थी।
आतंकी कसाब को इसलिए दी गई थी फांसी... अगले पन्ने पर...
अफजल गुरू से पहले मुम्बई पर 26/11 आतंकी हमले में एकमात्र जीवित पकड़े गए पाकिस्तानी बंदूकधारी अजमल कसाब को 21 नवंबर 2012 को पुणे के येरवदा केंद्रीय कारागार में फांसी दी गई थी जो एक गोपनीय अभियान के तहत हुई।
पाकिस्तान स्थित लश्कर ए तैयबा के 10 आतंकवादी 26 नवंबर 2008 को मुम्बई पहुंचे और उन्होंने शहर के कई महत्वपूर्ण स्थानों को निशाना बनाने हुए अंधाधुंध गोलीबारी की, जिनमें होटल ताज और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस शामिल हैं। इसमें कुछ विदेशियों समेत 166 लोग मारे गए थे। इस दौरान 60 घंटे तक चले अभियान में नौ आतंकवादी मारे गए थे और कसाब को जिन्दा पकड़ लिया गया था। (भाषा)