Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

क्यूँ करते हैं नागा साधु कुंभ स्नान?

भीका शर्मा
सोमवार, 25 अप्रैल 2016 (23:05 IST)
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। इस प्रक्रिया में कुंभ स्नान का बहुत महत्व है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते हैं। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है।
प्रवेश की अनुमति के बाद पहले तीन साल गुरुओं की सेवा करने के साथ धर्म कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझना होता है। इसी अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु यह निश्चित कर ले कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है तो फिर उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है। अगली प्रक्रिया महाकुंभ मेले के दौरान शुरू होती है। जब ब्रह्मचारी से उसे महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है। इस दौरान उनका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार महाकुंभ की नदी (हरिद्वार और प्रयाग में गंगा, नाशिक में गोदावरी और उज्जैन में क्षिप्रा) में डुबकी लगवाई जाती है।
अन्तिम प्रक्रिया में उनका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है। नागा साधु की प्रक्रिया प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुम्भ के दौरान ही होती है। प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।
 
आमतौर पर नागा साधु सभी संन्यासी अखाड़ों में बनाए जाते हैं लेकिन जूना अखाड़ा सबसे ज्यादा नागा साधु बनाता है। सभी तेरह अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा भी माना जाता है।
नागा साधु प्रायः कुम्भ में दिखायी देते हैं। नागा साधुओं को लेकर कुंभ मेले में बड़ी जिज्ञासा और कौतुहल रहता है। कोई कपड़ा ना पहनने के कारण शिव भक्त नागा साधु दिगंबर भी कहलाते हैं, अर्थात आकाश ही जिनका वस्त्र हो। कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे ये साधु कुम्भ मेले में सिर्फ शाही स्नान के समय ही खुलकर श्रद्धालुओं के सामने आते हैं। 
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Pushya Nakshatra 2024: पुष्य नक्षत्र में क्या खरीदना चाहिए?

जानिए सोने में निवेश के क्या हैं फायदे, दिवाली पर अच्छे इन्वेस्टमेंट के साथ और भी हैं कारण

झाड़ू से क्या है माता लक्ष्मी का कनेक्शन, सही तरीके से झाड़ू ना लगाने से आता है आर्थिक संकट

30 को या 31 अक्टूबर 2024 को, कब है नरक चतुर्दशी और रूप चौदस का पर्व?

गुरु पुष्य योग में क्यों की जाती है खरीदारी, जानें महत्व और खास बातें

सभी देखें

धर्म संसार

Diwali Skincare : त्योहार के दौरान कैसे रखें अपनी त्वचा का ख्याल

Diwali 2024 : कम समय में खूबसूरत और क्रिएटिव रंगोली बनाने के लिए फॉलो करें ये शानदार हैक्स

Muhurat Trading: मुहूर्त ट्रेडिंग के दौरान क्या करते हैं और इससे किसे लाभ होता है?

गोवा में नरक चतुर्दशी पर नरकासुर के पुतला दहन के साथ होता है बुरे का अंत, यहां भगवान श्रीकृष्ण हैं दिवाली के असली हीरो

Ahoi ashtami vrat katha: अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा

Show comments