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भगवान शिव के 9 प्रतीक : प्रभाव, महत्व, और रहस्य

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शिव के प्रतीक अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए हैं जिन्हें सभी भक्तजनों को जानना चाहिए। शिव के स्वरूप का विशिष्ट प्रभाव अपनी अलग-अलग प्रकृति को दर्शाता है। पौराणिक मान्यता से देखें तो हर आभूषण का विशेष प्रभाव तथा महत्व बताया गया है। 
 
पैरों में कड़ा : यह अपने स्थिर तथा एकाग्रता सहित सुनियोजित चरणबद्ध स्थिति को दर्शाता है। योगीजन भी शिव के समान ही एक पैर में कड़ा धारण करते हैं। अघोरी स्वरूप में भी यह देखने को मिलता है।
 
मृगछाला : इस पर बैठकर साधना का प्रभाव बढ़ता है। मन की अस्थिरता दूर होती है। तपस्वी और साधना करने वाले साधक आज भी मृगासन या मृगछाला के आसन को ही अपनी साधना के लिए श्रेष्ठ मानते हैं।
 
रुद्राक्ष : यह एक फल की गुठली है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आंखों के जलबिंदु (आंसू) से हुई है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
 
नागदेवता : भगवान शिव परम योगी, परम ध्यानी व परम तपस्वी हैं। जब अमृत मंथन हुआ था, तब अमृत कलश के पूर्व गरल (विष) को उन्होंने कंठ में रखा था। जो भी विकार की अग्नि होती है, उन्हें दूर करने के लिए शिव ने विषैले नागों की माला पहनी। 
 
खप्पर : माता अन्न्पूर्णा से शिव ने प्राणियों की क्षुधा शांति के निमित्त भिक्षा मांगी थी। इसका यह आशय है कि यदि हमारे द्वारा किसी प्राणी का कल्याण होता है, तो उसको प्रदान करना चाहिए।
 
डमरू : संसार का पहला वाद्य। इसके स्वर से वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई इसलिए इसे नाद ब्रहम या स्वर ब्रह्म कहा गया है। 
 
त्रिशूल : देवी जगदंबा की परम शक्ति त्रिशूल में समाहित है। यह संसार का समस्त परम तेजस्वी अस्त्र है जिसके माध्यम से युग-युगांतर में सृष्टि के विरुद्ध होने सोचने वाले राक्षसों का संहार किया गया है। इसमें राजसी, सात्विक और तामसी तीनों ही गुण समाहित हैं, जो समय-समय पर साधक को उपासना के माध्यम से प्राप्त होते रहते हैं।
 
शीश पर गंगा : संसार की पवित्र नदियों में से एक गंगा को जब पृथ्‍वी की विकास यात्रा के लिए आव्हान किया गया तो पृथ्वी की क्षमता गंगा के आवेग को सहने में असमर्थ थी, ऐसे में शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को स्थान देकर सिद्ध किया कि आवेग की अवस्था को दृढ़ संकल्प के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है। 
 
चन्द्रमा : चूंकि चन्द्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है, चन्द्र आभा, प्रज्वल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है, जो मन के शुभ विचारों से उत्पन्न होते हैं। ऐसी अवस्था में प्राणी अपने यथायोग्य श्रेष्ठ विचारों को पल्लवित करते हुए सृष्टि के कल्याण में आगे बढ़े। 
 

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