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जावेद अख्‍तर की हिंदू और हिंदू संस्‍कृति की तारीफ के मायने क्‍या हैं?

नवीन रांगियाल
जावेद अख्‍तर की तरह ही अगर देश के तमाम शेष मुसलमान इतनी ही इमानदारी से सच को स्‍वीकार करेंगे तो इस देश की हर दिवाली शुभ हो सकती है.

जावेद अख्‍तर ने कहा है कि देश में सहिष्णुता हिंदुओं की वजह से ही है. मुझे इस बात का गर्व है कि मैं भगवान राम और माता सीता की भूमि पर पैदा हुआ हूं. जावेद अख्तर ने कहा कि हिंदुओं की सोच बहुत बड़ी है, उन्हें अपनी सोच बड़ी ही रखनी चाहिए. इसमें बदलाव नहीं लाना चाहिए. इसके बाद जावेद अख्‍तर ने लोगों से जय सिया राम के नारे लगाने के लिए कहा. उन्‍होंने राम और रामायण को हमारी सांस्‍कृतिक विरासत बताया.

बौद्धिक स्‍तर पर एक मकाम हासिल कर चुके एक मुसलमान के मुंह से यह बयान एक उम्‍मीद जगाता है. जावेद अख्‍तर के इस बयान से इसलिए उम्‍मीद की कामना की जा सकती है, क्‍योंकि उनका डोमेन एरिया काफी विस्‍तृत है. एक कवि ह्दय होने के साथ ही वे तमाम संस्‍कृतियों, भाषाओं और कलाओं के बारे में जानते- समझते हैं. वे एक विषय के कई पहलुओं की तरफ से सोच सकते हैं, यही वजह है कि उन्‍हें यह बात सार्वजनिक रूप से कहने में कोई संकोच नहीं हुआ. जबकि आमतौर पर होता यह है कि इस तरह की बात कहने में किसी न किसी तरह की सामाजिक या राजनीतिक लाचारी आड़े आ सकती है, लेकिन जावेद अख्‍तर के केस में ऐसा नहीं है.

उन्‍होंने खुलकर यह बात कही कि भारत में हिंदुओं की वजह से लोकतंत्र कायम है, हालांकि उन्‍होंने यह भी कहा कि यह सोचना कि हम ही सही हैं और दूसरे गलत हैं, यह हिंदू संस्कृति का हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही देश में अभिव्यक्ति की आजादी भी कम हुई है. क्‍योंकि आज अगर शोले जैसी फिल्‍म बनती तो किसी मंदिर में हिरोइन के साथ धर्मेंद्र के डॉयलॉग्स पर बवाल हो सकता था.

दरअसल, जावेद अख्‍तर का यह बयान इसलिए हैरत में डालता है और चौंकाता है, क्‍योंकि यह एक ऐसे दौर में कही गई है, जब एक तरफ सांप्रदायिक असहिष्‍णुता चरम पर है और दूसरी तरफ इजरायल-हमास के बीच अपने-अपने धर्मों के अस्‍तित्‍व के लिए जंग चल रही है. वरना तो जैसे जावेद अख्‍तर ने कहा कि उनके दौर में तो सुबह की शुरुआत जय सिया राम के अभिवादन से होती थी.

जावेद अख्‍तर के बयान में कहीं न कहीं हिंदुओं के लिए एक सीख के भी संकेत छिपे हैं, उन्‍होंने कहा कि आज के वक्त में असहिष्णुता कुछ बढ़ गई है. पहले भी कुछ लोग थे, जिनके अंदर सहनशीलता नहीं थी. हालांकि हिंदू ऐसे नहीं थे, इनका दिल हमेशा से बड़ा रहा है. इसलिए उन्हें अपने अंदर से इस चीज को खत्म नहीं होने देना चाहिए. हिंदुओं को अपने वही पुराने मूल्यों पर चलना चाहिए.

बहरहाल, जावेद अख्‍तर के बयानों का चाहे जो मतलब हो, लेकिन उनके इस बयान में कम से कम एक सांप्रदायिक सौहार्द की महक तो आती हुई महसूस होती ही है, वो भी तब जब सांप्रदायिक अराजकता का माहौल हो.

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