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जिम्बाब्वे में निरंकुश सत्ता के दुरुपयोग की मार्मिक कहानी

शरद सिंगी
सोमवार, 4 दिसंबर 2017 (10:55 IST)
दो हजार वर्ष पूर्व भगवान बुद्ध ने राजा या सम्राट के कर्तव्यों एवं आवश्यक चारित्रिक गुणों के बारे में उपदेश दिया था। उनके अनुसार राजा को दानी, उच्च नैतिक मूल्यों वाला, स्वार्थ से दूर उदार हृदय, ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाला, बिना अभिमान के नम्र, आत्मसंयमी, अहिंसा में विश्वास रखने वाला, सहनशील, शांत, जनमत का सम्मान करने वाला एवं प्रजा के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
 
आधुनिक युग में भी ये गुण उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सदियों पूर्व होते थे। यह बात पुन: सिद्ध हुई, जब जिम्बाब्वे का 20वीं सदी का नायक और राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे, 21वीं सदी का क्रूर खलनायक बन गया और स्वयं उसकी ही सेना ने उसे पिछले दिनों राजगद्दी से कचरे की तरह उठाकर इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया।
 
ये वही मुगाबे हैं जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध पहले अहिंसात्मक आंदोलन चलाया और बाद में गुरिल्ला युद्ध किया। जेल गए और अंतत: जिम्बाब्वे को गोरों से आजादी दिलवाई। इस तरह जिम्बाब्वे सहित अन्य अफ्रीकी देशों के हीरो बने। अनेक विदेशी पुरस्कारों से सम्मानित हुए। जिम्बाब्वे के राष्ट्रपिता होने का गौरव प्राप्त किया।
 
किंतु कोई भी लीडर नायक तभी तक रहता है, जब तक कि उसमें भगवान बुद्ध द्वारा बताए गए उपरोक्त गुण मौजूद हों। सत्ता हाथ में आते ही ये गुण शनै:-शनै: लुप्त होने लगते हैं और वहीं से आरंभ होता है नायक से खलनायक बनने का सफर। 3 दशकों से अधिक बंदूक की धौंस पर राज करने वाला अफ्रीका का सबसे वृद्ध तानाशाह आज शायद अपने कुकर्मों पर पश्चाताप कर रहा होगा।
 
अपनी गद्दी को बचाए रखने के लिए उसने पूरे तंत्र और सेना को अमानवीय तथा भ्रष्ट कर दिया। दंभ इतना कि वे कहते थे कि मुझे ईश्वर ने नियुक्त किया है और वही मुझे हटाएगा। भूमि सुधार कानून के तहत बड़े खेतिहरों की उपजाऊ जमीनों के टुकड़े कर वे गरीबों में बांट दिए। खेती का नाश हो गया। अफ्रीका का 'ब्रेड बास्केट' कहलाने वाला देश अनाज का आयात करने पर मजबूर हो गया।
 
मुद्रास्फीति का हाल यह हो गया था कि गरीब से गरीब आदमी भी खरबपति था और ब्रेड का 1 पैकेट खरीदने के लिए खरबों जिम्बाब्वे डॉलर की आवश्यकता होती थी। मात्र 24 घंटे में मूल्य दोगुने हो जाते थे। अंत में सरकार को अमेरिकी डॉलर को आधिकारिक मुद्रा घोषित करना पड़ा। अपने बाद अपनी दूसरी पत्नी की ताजपोशी की योजना बनाने वाले मुगाबे ने वर्षों से अपने निकट सहयोगी एमर्सन मनंगाग्वा की सत्तादल में पदावनति की जिससे क्रोधित होकर एमर्सन ने सेना के साथ मिलकर मुगाबे का तख्तापलट कर दिया।
 
यहां मुगाबे की तुलना दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपिता स्व. नेल्सन मंडेला से करना मौजूं होगा, क्योंकि इन दोनों के जीवन में बहुत समानताएं थीं। युवावस्था में दोनों क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया और जेल गए। मंडेला 21 वर्षों तक कैद रहे तो मुगाबे 11 वर्षों तक। अंततोगत्वा दोनों अपने-अपने देशों को अंग्रेजों से आजाद करवाने में सफल रहे। दोनों ने अपने-अपने देशों में सम्मानजनक पद और कद हासिल किया।
 
किंतु नेल्सन मंडेला गांधीजी से प्रभावित रहे और सत्ता का नशा अपने ऊपर चढ़ने नहीं दिया। विश्व को रंगभेद त्यागने के लिए मजबूर किया। अपने देश की जनता को शांति का संदेश दिया और गुलामी के दौरान अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचारों को भूलकर अंग्रेजों को क्षमा करने के लिए कहा। 5 वर्षों के अपने राष्ट्रपतित्वकाल में दक्षिण अफ्रीका की भिन्न-भिन्न प्रजातियों की आपसी दुश्मनी मिटाने में वे सफल रहे। देश की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाया और लोकतंत्र को स्थापित किया। अंतरराष्ट्रीय जगत में अपने सम्मान में कोई दाग नहीं लगने दिया। अपना काम पूरा करने के बाद सत्ता को त्याग दिया, वह भी तब जब उन्हें चुनौती देने वाला कोई दूसरा नहीं था और वे बिना किसी बाधा के दूसरी अवधि के लिए राष्ट्रपति बने रह सकते थे। इसलिए वे पूज्य बन गए।
 
इसके विपरीत मुगाबे ने सत्ता में बने रहने के लिए विरोधियों का कत्ल किया या जेलों में डाल दिया। अर्थव्यवस्था को गर्त में पंहुचा दिया और तानाशाही को स्थापित किया। जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध उकसाते रहे। मानवाधिकारों को लेकर विश्व में बदनाम हुए और नवाजे गए खिताब उनसे छीन लिए गए। मुगाबे के पतन से जिम्बाब्वे की जनता में खुशी की लहर तो दौड़ गई, क्योंकि 40 की उम्र तक के लोगों को ये भी नहीं मालूम था कि देश में मुगाबे के अतिरिक्त और भी कोई नेता है।
 
किंतु इस तख्तापलट से जिम्बाब्वे की जनता को कोई राहत नहीं मिलती दिखती, क्योंकि एमर्सन सारे कुकर्मों में मुगाबे के सिपाही रहे हैं और वे जिम्बाब्वे के अगले तानाशाह होंगे। यह बात अलग है कि हर तानाशाह गद्दी हथियाते समय लोकतंत्र को स्थापित करने का वादा करता है किंतु इस देश में लोकतंत्र अभी दूर की ही कौड़ी है। अंतर मात्र इतना है कि जिम्बाब्वे की जनता एक अंधियारी कोठरी से निकलकर दूसरी अंधियारी कोठरी में पहुंच चुकी है।
 
इस प्रकार यह कहानी है राजनीति के दो नायकों की। एक नायक से महानायक बन गया तो दूसरा नायक से खलनायक। भारत की सांस्कृतिक विरासत इतनी संपन्न है कि आप इन दोनों की जीवनी से समझ सकते हैं कौन बुद्ध के उपदेशों पर चल रहा था और कौन विपरीत?
 
अभी भी दुनिया में पचासों ऐसे छोटे राष्ट्र हैं, जो केंद्रीकृत सत्ताओं से शासित हैं और किसी भी अनुकूल या प्रतिकूल दिशा में जा सकते हैं। वे इस कहानी से सीख ले सकते हैं। निरंकुश सत्ता के मुगाबेधर्मी दुरुपयोग और मंडेलाधर्मी सदुपयोग की यह कथा हमारे पाठकों को निश्चय ही मनोरंजक लगेगी।

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