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बाल गीत : पानी झर-झर गाता है

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
नदी नाचती रेत उछलती,
पानी झर-झर गाता है।
एक बुलबुला बहते-बहते,
बन-बन कर मिट जाता है।
 
नदी किनारे पेड़ खड़े हैं।
कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े हैं।
इन पेड़ों को नदी किनारे,
हरदम रहना भाता है।
पानी झर-झर गाता है।
 
पेड़ नहीं डरते पानी से,
न आंधी की शैतानी से।
डरे नहीं जो तूफानों से,
जग उनसे डर जाता है।
पानी झर-झर गाता है।
 
बिना रुके नदिया बढ़ जाती,
शिला, पहाड़ी रोक न पाती।
कभी-कभी तो तेज बाढ़ में,
पुल तक तो ढह जाता है।
पानी झर-झर गाता है। 

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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