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Life at 50°C : तेजी से बढ़ रहा है तापमान, 40 साल में डबल हुए भीषण गर्मी के दिन

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गुरुवार, 16 सितम्बर 2021 (12:43 IST)
बीबीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 1980 के दशक के बाद दुनिया के कई हिस्सों में 50 डिग्री सेल्सीयस से अधिक तापमान वाले दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है।
 
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा लाइफ एट 50 डिग्री सेल्सीयस के तहत यह अध्ययन किया गया। इसमें कहा गया कि 1980 से 2009 के बीच हर साल औसत रूप से 14 दिन तापमान 50 डिग्री या उससे अधिक रहा। हालांकि 2010 के बाद से असाधारण तापमान को पार करने वाले दिनों की संख्या अब बढ़कर 26 हो गई।
 
बीबीसी न्यूज़ ने 40 साल की अवधि में डेटा की जांच की। इसमें पाया गया कि 1980 के बाद से प्रत्येक दशक में 50 डिग्री सेल्सीयस से ऊपर के दिनों की कुल संख्या में वृद्धि हुई है। बीबीसी के शोध में दुनिया भर में अधिकतम तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
 
मीडिल ईस्ट और खाड़ी देशों में 50 डिग्री सेल्सीयस तापमान वाले दिनों की संख्या ज्यादा रही। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भविष्य में और भी क्षेत्रों का तापमान 50 डिग्री सेल्सीयस से ज्यादा होगा। अध्ययन से पता चला कि 45 डिग्री सेल्सीयस तापमान वाले दिनों की संख्‍या में भी औसत रूप से हर वर्ष 2 हफ्तों की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 
 
सबसे हाल के दशक में, जमीन और समुद्र दोनों पर अधिकतम तापमान में 1980 से 2009 के दीर्घकालिक औसत की तुलना में 0.5 सेल्सीयस की वृद्धि हुई है। पूर्वी यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील का तापमान 1 डिग्री सेल्सीयस तक बढ़ गया जबकि मध्य पूर्व के तापमान में 2 डिग्री की बढ़ोतरी दिखाई दी।
 
ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रमुख जलवायु वैज्ञानिक डॉ फ्राइडेरिक ओटो ने बीबीसी को बताया कि उनका मानना है कि 50 डिग्री सेल्सीयस से ऊपर के दिनों और स्थानों में वृद्धि जीवाश्म ईंधन के जलने के लिए 100% जिम्मेदार हो सकती है।
 
अत्यधिक गर्मी से जंगल की आग और सूखे जैसी आपदाएं बढ़ सकती है और मानव स्वास्थ्य पर इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। उच्च तापमान मिट्टी से वाष्पीकरण को बढ़ावा देता है। अत: यह भूमि को सुखा भी सकता है। बढ़ते तापमान के कारण ग्रह के कई हिस्से इतने गर्म हो सकते हैं कि यह जगह लोगों के रहने लायक नहीं रह जाएगी।
 
2100 तक गर्मी की वजह से दुनिया भर में 1.2 बिलियन लोग प्रभावित हो सकते हैं। गत वर्ष रटगर्स विश्वविद्यालय की स्टडी के परिणामों के अनुसार, अगर ग्लोबर वॉर्मिंग इसी गति से जारी रही तो यह आंकड़ा आज प्रभावित लोगों की तुलना में कम से कम चार गुना अधिक होगा।

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