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अमेरिका पहुंची CAA और NRC के विरोध की आंच, सरकार के खिलाफ हुए प्रदर्शन

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शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019 (23:16 IST)
वॉशिंगटन। अमेरिका के शिकागो और बोस्टन शहर में भारतीय-अमेरिकियों और छात्रों ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए कहा कि यह भारत के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की दिशा में एक कदम है। शिकागो में ट्रिब्यून टावर से भारतीय वाणिज्य दूतावास तक लगभग 150 लोगों ने मार्च किया।

प्रदर्शनकारी छात्रों ने बयान में कहा, शिकागो, भारत सरकार के कट्टर रवैए की निंदा करता है। शिकागो में भारतीय छात्रों ने कहा, हम हिंसा को लेकर आक्रोशित हैं और जामिया मिलिया इस्लामिया तथा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के छात्रों पर क्रूरता की एक सुर में निंदा करते हैं। भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) ने एक बयान में जामिया और एएमयू के छात्रों की निर्ममता से पिटाई की कड़ी निंदा की।

आईएएमसी के अध्यक्ष एहसान खान ने कहा, हमने इस दुखद घटना को बड़ी चिंता और पीड़ा के साथ देखा है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) और संशोधित नागरिकता कानून से भारतीय राजव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। यह भारत के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की दिशा में एक कदम है और छात्रों को कम से कम विरोध करने का लोकतांत्रिक अधिकार होना चाहिए।

भारतीय समुदाय के एक वर्ग ने इस सप्ताह की शुरुआत में मैसाच्यूसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) के बाहर एकत्रित होकर एनआरसी के बहिष्कार और सीएए 2019 को निरस्त करने का आह्वान किया था। इस दौरान जमा हुए लोगों में वैज्ञानिक, इंजीनियर, छात्र, सेवाकर्मी, कंप्यूटर पेशेवर, कलाकार और चिकित्सक, सामाजिक न्याय कार्यकर्ता, वामपंथी तथा उदार बुद्धिजीवी और सामुदायिक नेता शामिल थे।

एमआईटी स्टूडेंट्स अगेन्स्ट वार (एमआईटीएसएडबल्यू) के एलोन्सो एस्पिनोसा ने कहा, अमेरिका में जिस तरह आप्रवासियों के साथ भेदभाव और उनका अपराधीकरण हो रहा है, वैसे ही भारत में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों का भी एनआरसी के कारण अपराधीकरण किया जा रहा है। हमारा संघर्ष काफी हद तक समान है और हमें इन दमनकारी शक्तियों के खिलाफ लड़ना होगा।

भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद की बोस्टन शाखा की रोजिना अमीन जमा ने कहा, कैब को धार्मिक आधार पर परखना निस्संदेह असंवैधानिक और सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मानवाधिकार ढांचे के विरुद्ध है। उदाहरण के लिए श्रीलंका के हिंदू और बौद्ध, बांग्लादेश के नास्तिक, पाकिस्तान के अहमदी मुसलमान को छोड़ दिया गया है, जबकि भारत सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा का दावा करती है।

सीएए के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना से तंग आकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। प्रदर्शनकारियों का दावा है कि कानून असंवैधानिक और विभाजनकारी है और इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया।

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