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मॉसिनराम और चेरापूंजी में आखिर इतनी बारिश क्यों होती है?

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शनिवार, 18 जून 2022 (13:00 IST)
प्रथमेश व्यास 
क्या आप जानते है कि दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश कहां होती है? आपको जानकार हैरानी होगी कि ऐसी कोई जगह वर्षावनों के लिए जाने वाले न्यू-जीलैंड या दक्षिण अमेरिका में नहीं है। ये जगह है प्राकृतिक दृष्टि से भारत के सबसे सुंदर राज्यों में से एक मेघालय में। जी हां, भारत के उत्तर पूर्वी राज्य मेघालय में स्थित मॉसिनराम और चेरापूंजी देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश पाने वाले स्थान हैं।
 
24 घंटे में 972 मिलीमीटर बारिश -
दरअसल, मॉसिनराम और चेरापूंजी के बीच महज 15 किलोमीटर का ही अंतर है। हर साल इन दोनों शहरों के बीच इस सूची में पहले स्थान पर आने की होड़ लगी हुई रहती है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार 1985 में मॉसिनराम में सबसे ज्यादा 26,000 मिलीमीटर बारिश हुई थी। हाल ही में 17 जून 2022 की सुबह चेरापूंजी में 24 घंटों के भीतर 972 मिलीमीटर मूसलाधार बारिश दर्ज की गई। 
 
मॉसिनराम में प्रतिवर्ष 700 इंच से ज्यादा बारिश होती है, जबकि यहां से सिर्फ 90 किलोमीटर दूर स्थित शिलॉन्ग में हर साल सर्फ 80 इंच बारिश होती है। यहां बारिश अप्रैल या मई के महीने से शुरू होकर अक्टूबर तक चलती है। लेकिन, मॉसिनराम और चेरापूंजी में आखिर इतनी बारिश क्यों होती है और क्यों ये जगहें कहलाती हैं - ' The Wettest Place on Earth '.
 
बंगाल की खाड़ी की हवाएं और खासी के पहाड़ों की दोस्ती -
ये दोनों शहर दक्षिण में स्थित खासी के पहाड़ों के नजदीक बसे हुए हैं। बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाली ठंडी हवाएं खासी के पहाड़ों से टकराकर सघन (Condensed) हो जाती हैं, जिसके कारण इन घाटियों के ऊपर भारी-भरकम बादल बन जाते हैं, जो परिणामस्वरूप इतनी वर्षा देते हैं। बता दें कि चेरापूंजी में मॉसिनराम की तुलना में 100 मिलीमीटर कम बारिश होती है। 
 
सूरज निकलने पर मिलती है छुट्टी -
यहां की बारिश के आगे छतरियां और रैनकोट भी फीके पड़ जाते हैं। स्कूली बच्चों को बरसात के मौसम में दो तरह की छुटियां मिलती है। एक ज्यादा बारिश आने पर रास्ते बंद होने के कारण और एक कई दिनों बाद खुला आसमान होने पर, ताकि बच्चे बाहर निकलकर खेल-कूद और मौज-मस्ती कर सकें। यहां घरों में नमी रहती है, जिसके कारण लोग कपड़े सुखाने के लिए रूम हीटर का उपयोग करते हैं। 
 
इतना पानी बरसने के बाद भी इन दोनों शहरों में पीने के पानी की कमी बनी रहती है, क्योकि यहां की मिट्टी ज्यादा पानी सोख नहीं पाती। पानी से बचने और खेतों में काम करने के लिए यहां के लोग बांस की लकड़ियों और पत्तों की मदद से एक पारंपरिक 'रेन शील्ड' बनाते हैं, जिसे 'कनूप' कहा जाता है। 
 
यहां की मिट्टी हमेशा जरूरत से ज्यादा गीली होती है, इसलिए यहां खेती की संभावनाएं भी कम होती हैं। इसलिए यहां सबकुछ दूसरे शहरों से आता है। इन सामानों को भी पॉलिथीन की थैलियों में लपेटकर रखा और बेचा जाता है। 
 
इतनी समस्याओं के बाद भी बरसात में मॉसिनराम और चेरापूंजी का प्राकृतिक सौंदर्य अलौकिक हो उठता है। कैंपिंग और ट्रेकिंग के शौकीन पर्यटक हर साल यहां आते हैं।

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