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स्पेस फोर्स अब एक परिकल्पना नहीं

शरद सिंगी
युद्धों और लड़ाइयों का इतिहास सहस्रों वर्षों पुराना है और शायद मानवता के इतिहास के साथ ही इनका इतिहास भी आरंभ हो जाता है। कभी अपने आधिपत्य को स्थापित करने के लिए, कभी लूटने के लिए तो कभी धर्म की रक्षा के लिए ये लड़ाइयां होती रही हैं। राम-रावण संग्राम हो या फिर महाभारत का महायुद्ध- दोनों ओर से उस समय केवल थलसेनाएं युद्ध लड़ा करती थीं।
 
 
17वीं शताब्दी में नौसेना की स्थापना हुई और पिछली शताब्दी याने बीसवीं सदी में वायुसेना की नींव पड़ी। वायुसेना की जब शुरुआत हुई तो अनेक लोगों ने इसकी आलोचना की थी कि इस सेना की कोई आवश्यकता नहीं। किंतु आज हम जानते हैं कि सेना की तीनों शाखाओं में वायुसेना का किरदार सबसे अहम हो चुका है।
 
पिछले माह अगस्त में सेना के इन 3 पारंपरिक अंगों के अतिरिक्त एक नए अंग के विचार ने जन्म लिया जब अमेरिका में सेना की एक और नई शाखा की स्थापना करने की हरी झंडी राष्ट्रपति ट्रंप ने दी। यह सेना का एक नया अंग होगा, जो अंतरिक्ष सेना (स्पेस फोर्स) के नाम से जाना जाएगा।
 
शायद आज यह बात अजीब लगे किंतु विशेषज्ञों के अनुसार भविष्य में यह अंग, वायुसेना की अहमियत से भी आगे निकल जाने वाला है वहीं हमेशा की तरह आलोचकों का कहना है कि अंतरिक्ष सेना के रूप में सेना की यह नई शाखा अनावश्यक है।
 
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अंतरिक्ष में अमेरिका की मात्र उपस्थिति ही काफी नहीं है। अमेरिका अंतरिक्ष में अपना प्रभुत्व चाहता है। वैसे देखा जाय तो आज भी अमेरिका की सेना में 36,000 ऐसे कर्मचारी कार्यरत है, जो अंतरिक्ष में अमेरिका के सैन्य उपकरणों की देखभाल करते है जिनमें ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) सैटेलाइट नेटवर्क और रहस्यमय एक्स-37 'बी' स्पेस प्लेन आदि शामिल हैं। कहते हैं अमेरिका की वायुसेना इस अंतरिक्ष प्रणाली की रक्षा पर 7 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च करती है।
 
इस सब के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि अमेरिका के राष्ट्रपति को अंतरिक्ष सेना बनाने की घोषणा करनी पड़ी? हाल की कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि रूस और चीन, अमेरिकी सैन्य उपग्रहों की निगरानी के साधन और यहां तक कि उनको मार गिराने वाले अंतरिक्ष हथियार भी विकसित कर रहे हैं। पिछले वर्ष अगस्त में चीन ने अपने ही एक उपग्रह को नष्ट करने के लिए मिसाइल छोड़ी थी। यद्यपि उसे सफलता नहीं मिली किंतु वह इस तकनीक में बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है ताकि दुश्मनों के उपग्रहों को गिराया जा सके।
 
इस समय अमेरिका के 800 उपग्रह कक्षा में हैं। उनमे से कई जासूसी उपग्रह हैं और कई संचार उपग्रह, जो अमेरिकी रक्षा विभाग को संसारभर की मूल्यवान और महत्पूर्ण जानकारियां उपलब्ध करवाते हैं। किंतु इनमें 'सी' किसी पर भी हमला हो जाने की स्थिति में वे स्वयं को बचाने में सक्षम नहीं है।
 
ऐसे में अमेरिका के जासूसी उपग्रह और संचार उपग्रह यदि दुश्मनों के निशाने पर आ गए तो अमेरिका की पूरी मारक क्षमता को ठप कर सकते हैं। उसके जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं और पूरे अमेरिका को अराजकता में धकेल सकते हैं। फलत: अमेरिका जैसी महाशक्ति घुटनों पर आ जाएगी।
 
विशेषज्ञों के अनुसार यह कहना जल्दबाजी होगी कि स्पेस फोर्स शीघ्र ही वास्तविकता बन जाएगा। हो सकता है कि ये ट्रंप का एक शगूफा भी हो, क्योंकि घोषणा के कुछ ही घंटे बाद ही ट्रंप के 2020 के चुनाव अभियान प्रबंधक ब्रैड पारस्केले ने माना कि राष्ट्रपति का यह विचार कि 'अमेरिका को एक स्पेस फोर्स चाहिए' अमेरिका के भविष्य और अंतरिक्ष सीमा की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा जाएगा और चुनावों में वह एक महत्वपूर्ण एजेंडा बनेगा। 
 
अब इसमें रंचमात्र संदेह नहीं कि विकसित देश सोचने लगे हैं कि अंतरिक्ष पर कैसे और किसकी मिल्कियत हो। उस पर नियंत्रण रखने के लिए उन्हें क्या करना होगा? अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए, दुनिया की पहली अंतरिक्ष सेना का निर्माण एक आपदा हो भी सकता है, क्योंकि ट्रंप की ये नई सेना दुनिया में 'अंतरिक्ष हथियारों की दौड़' का कारण बन सकती है।
 
भारत जैसे विकासशील देशों के पास अभी अंतरिक्ष के बारे में सोचने के लिए न तो समय है और न ही साधन। किंतु जिस दिन साधन उपलब्ध हुए उस दिन भारत को अंतरिक्ष में पैर जमाने में समय नहीं लगेगा ऐसा विश्वास है, क्योंकि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अमेरिका के नासा सहित अनेक अनुसंधान संस्थाओं में भारतीय वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है।
 
आज यह एक परीकथा लगे किंतु वह दिन दूर नहीं, जब भारत के सपूत सियाचिन की तरह अंतरिक्ष में भी तैनात होंगे अपने अंतरिक्ष की रक्षा करने के लिए। चांद पर हमारी भी एक चौकी होगी और मंगल पर राजदूत। आज यह लेखक की कल्पना की उड़ान लगे किंतु यथार्थ होने में समय अधिक नहीं लगेगा किंतु जब तक नहीं होता तब तक हम इन बड़े देशों के बड़े कारनामों का आनंद लेते हैं।

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