अहमदाबाद। गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा है कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम (पीसीएमए) के प्रावधान मुस्लिमों पर भी लागू होंगे। अदालत ने कहा कि जिन लोगों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलावों में बाधा पहुंचाई उन्होंने समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाया है।
न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला ने दो दिन पहले सुनाए गए आदेश में कहा, ‘जिन लोगों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव की अनुमति नहीं दी है उन्होंने समुदाय को काफी नुकसान पहुंचाया है।’
न्यायाधीश ने हालांकि गौर किया कि बदलती सामाजिक स्थिति, शिक्षा और आर्थिक जरूरतों के मद्देनजर मुस्लिमों ने भी ‘लड़कियों की 16 या 17 साल की आयु में शादी किए जाने के दुष्परिणामों को समझा है।’
शहर निवासी यूनुस शेख (28) ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर भारतीय दंड विधान (आईपीसी) के तहत अपहरण और बलात्कार तथा पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की थी।
शेख अपने पड़ोस में रहने वाली 16 साल की लड़की के साथ भाग गया था। लड़की के पिता ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
शेख ने दलील दी कि बाल विवाह अधिनियम उस पर लागू नहीं होगा क्योंकि उस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होगा। अदालत ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया।
हालांकि, शेख को आंशिक राहत देते हुए अदालत ने अपहरण और बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपों को निरस्त कर दिया, लेकिन पुलिस को जांच करने और पीसीएमए के तहत एक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, ‘लड़की का पिता निश्चित तौर पर बहुत बुरा महसूस कर रहा होगा क्योंकि उसकी भावनाएं आहत हुई हैं। पिता ने अपने परिवार और खासतौर पर अपनी दो नाबालिग बेटियों का खयाल रखने के लिए अवश्य दिन-रात परिश्रम किया होगा...एक दिन पिता पाता है कि लड़की अपने पिता के घर को छोड़कर चली गई है और एक ऐसे व्यक्ति से शादी कर ली है जो उससे 12 साल बड़ा है। यह...और कुछ नहीं बल्कि लड़की की तरफ से परिपक्वता, समझ और शिक्षा का अभाव है।’
न्यायाधीश ने कहा, ‘ज्यादातर समय दुर्भाग्य से इस तरह की शादियां विफल हो जाती हैं और एक दिन लड़की अपने माता-पिता के घर लौट आती है।’ (भाषा)