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लोकसभा चुनाव 2019: कांग्रेस बनाम भाजपा की लड़ाई में गुजरात क्यों है अहम?

लोकसभा चुनाव 2019: कांग्रेस बनाम भाजपा की लड़ाई में गुजरात क्यों है अहम?
, सोमवार, 1 अप्रैल 2019 (11:17 IST)
- मानसी दाश
26 लोकसभा सीटों और 182 विधानसभा सीटों वाला गुजरात भाजपा नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों का गृहराज्य है और क़रीब 20 साल से भाजपा यहां सत्ता पर काबिज़ है।
 
हालांकि 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और युवा नेताओं की तिकड़ी (हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर) से मिली कड़ी टक्कर के बाद आगामी लोकसभा चुनावों में गुजरात भाजपा के लिए बेहद अहम बन गया है।
 
1995 के विधानसभा चुनावों के बाद से ही गुजरात की सत्ता भाजपा के हाथों में रही है। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की 22 साल पुरानी सत्ता को चुनौती देने वाली कांग्रेस पार्टी भले ही सरकार न बना पाई हो लेकिन न केवल उसने भाजपा को 100 का आंकड़ा छूने से रोका बल्कि अपनी सीटों में इजाफ़ा कर 78 सीटें जीतीं।
 
बात लोकसभा चुनावों की करें तो 1991 के बाद से ज़्यादा सीटें भाजपा के खाते में गई हैं। भाजपा ने 1991 में 20, 1996 में 16, 1998 में 19, 1999 में 20, 2004 में 14, 2009 में 15 और 2014 में लोकसभा की सभी 26 सीटें जीतीं।
 
जब भाजपा को सताया गुजरात को खोने का डर
2014 लोकसभा चुनावों के बाद मोदी ने गुजरात छोड़कर दिल्ली का रुख़ किया। 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के सामने कई चुनौतियां आईं लेकिन पार्टी किसी तरह अपनी सत्ता बनाए रखने में क़ामयाब हुई।
 
वरिष्ठ पत्रकार अजय उमट कहते हैं, ''2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा का स्ट्राइक रेट 100 फ़ीसदी था लेकिन इसके बाद पार्टी को 2017 में बड़ा झटका मिला। उसके बाद हुए 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा अपना प्रदर्शन दोहरा पाती तो 165 तक सीटें ले कर आती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उसे 182 में सिर्फ 99 सीटें मिली और ये उसके लिए बड़ा झटका था जबकि उस वक़्त मोदी ने गुजरात में 15 दिन में 38 रैलियां की थीं और अमित शाह को अहमदाबाद में 12-15 दिन रुकना पड़ा था। पार्टी को डर था कि उनका गढ़ गुजरात उनके हाथ से जा रहा है।"
 
वरिष्ठ पत्रकार आरके मिश्रा समझाते हैं, "2017 में भाजपा के लिए स्थिति काफ़ी बेढब हो गई थी। अमित शाह ने छाती ठोंककर कहा था कि वो 182 से 150 तक सीटें लाएंगे, लेकिन मोदी के सीएम बनने के बाद (2001 में मोदी मुख्यमंत्री बने थे) पहली बार पार्टी 100 सीटों से नीचे खिसक गई।"
 
आज के हालात किस ओर इशारा कर रहे हैं?
आरके मिश्रा कहते हैं, "कांग्रेस की सबसे बड़ी कमज़ोरी शहरी इलाके हैं। बेशक़ ये भाजपा का गढ़ रहे हैं और 2017 में कांग्रेस इन्हें भेद नहीं पाई लेकिन ग्रामीण इलाकों में भाजपा कमज़ोर है।"
 
मिश्रा का अनुमान है कि इस बार भी यही ट्रेंड रह सकता है। अजय उमट कहते हैं, ''आज की स्थिति में लग रहा है कि कांग्रेस 10 सीटों पर काफ़ी मेहनत कर रही है और भाजपा के लिए कि ये सीटें चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।'' उनका मानना है कि इसमें आदिवासी बहुल इलाके, केंद्रीय गुजरात और ग्रामीण इलाके शामिल हैं।
 
उन्होंने कहा,"सौराष्ट्र में पांच सीटें - जूनागढ़, जामनगर, पोरबंदर, अमरेली सुरेंद्रनगर और उत्तर गुजरात में चार सीटें- साबरकांठा, बनासकांठा, पाटण और मेहसाणा और आदिवासी बहुल इलाके की पांच सीटें भाजपा के लिए चुनौतपूर्ण हैं। मेहसाणा में स्थिति इतनी चुनौतीपूर्ण है कि एक वक्त पर पार्टी ने उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल को प्रस्ताव पास कर चुनाव लड़ने के लिए कहा लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया।"
 
उमट कहते हैं, "कांग्रेस तो आज 26 सीटों पर फ़ोकस भी नहीं कर रही है। उसकी रणनीति है कि 13 सीटों पर ध्यान केंद्रित करो और कम से कम 8 या 10 सीटें जीतने की कोशिश करो।"
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किसानों के मुद्दे
अजय उमट बताते हैं कि सौराष्ट्र और कच्छ में पानी की किल्लत अभी से दिख रही है और ख़ुद गुजरात सरकार ने कह दिया है कि वो खेती के लिए किसानों को पानी मुहैया नहीं करा पाएगी।
 
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध में भी ज़्यादा पानी नहीं है। गुजरात को बांध से 90 लाख एकड़ फ़ीट पानी मिलना चाहिए लेकिन 30-35 लाख एकड़ फीट पानी ही मिलेगा। किसानों से कह दिया गया है कि नदी के पानी के भरोसे वो इस बार खेती न करें।
 
साथ ही किसानों से मूंगफली और कपास पर न्यूनतम मूल्य देने का जो वादा था वो भी उन्हें नहीं मिल पाया है। आलू और टमाटर की खेती करने वालों को अपना उत्पाद कोल्ड स्टोरेज तक ले जाने तक का पैसा नहीं निकला और उन्होंने अपनी चीज़ें सड़कों पर फेंक दीं।
 
ऐसे कई कारणों से किसानों की नाराज़गी बरकरार है और इसका फ़ायदा कांग्रेस को मिल सकता है। उमट कहते हैं, "ग्रामीण और शहर के पास के इलाकों में कांग्रेस काफ़ी मेहनत कर रही है। वो जानती है कि 2017 की तरह इन जगहों पर किसानों के मुद्दों पर वो कामयाब हो सकती है।"
 
क्या फिर कमाल दिखाएगी तीन की तिकड़ी?
गुजरात में 2017 में तीन नए युवा नेता बड़ी भूमिका निभाते नज़र आए - पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल, ऊना कांड से उभरे दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर। इन तीनों ने भाजपा को काफ़ी परेशान किया था। अजय उमट कहते हैं, "इन युवा नेताओं ने बेरोज़गारी, भाजपा की सांप्रदायिक नीतियों का विरोध किया था और भाजपा को इसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ा था।"
 
फ़िलहाल मेहसाणा के विधायक के दफ़्तर पर तोड़फोड़ के एक मामले में हार्दिक पटेल की सजा पर रोक से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है जिसके बाद अब वो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
 
अजय उमट कहते हैं, "मुझे ऐसा लगता है कि गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट में जौ पैरवी की और उसे चुनाव नहीं लड़ने दिया ये सबसे बड़ी स्ट्रैटेजिक ग़लती है। इसका ख़ामियाज़ा भाजपा को न सिर्फ़ गुजरात बल्कि दूसरे राज्यों में भी भुगतना पड़ सकता है।"
 
आर के मिश्रा समझाते हैं, "हार्दिक एक 21 साल का बेरोज़गार लड़का था। उसको भारतीय जनता पार्टी ने अपनी अंदरूनी राजनीति के कारण एक तरीके से बड़ा नेता बना दिया। अब उसका रुतबा बढ़ कर गुजरात की सीमा से बाहर चला गया है। वो भूख हड़ताल पर बैठता है तो विपक्ष के नेता उसके साथ खड़े होते दिखते हैं।"
 
हार्दिक के बारे में आर के मिश्रा कहते हैं, "उनका कद भाजपा और केवल भाजपा ने इतना बढ़ा दिया है कि वो उन्हीं के गले में एक कांटे की तरह उलझ गए हैं।"
 
अब घूम-घूमकर प्रचार करेंगे हार्दिक
वो कहते हैं, "जैसी कि अटकलें थीं अगर वो चुनाव में खड़े होते तो अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार करते और वहीं उलझ कर रह जाते। लेकिन अब वो घूम-घूम कर प्रचार करेंगे।"
 
आर के मिश्रा कहते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पाटीदार वोट निर्णायक रहा था और इसका असर लोकसभा चुनाव पर भी ज़रूर पड़ेगा। अल्पेश ठाकोर की बात तो उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें अभी भी ताज़ा हैं और वो भी शांत दिखाई देते हैं। रही जिग्नेश की बात तो अजय उमट बताते हैं कि उनके तेवर अब भी आक्रामक हैं और वो भाजपा के विरोध में प्रचार में लगे हुए हैं।
 
कहा जाए तो ऐसा लगता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्साहित कांग्रेस के पास कई मुद्दे हैं और कुछ-कुछ उसकी रणनीति भी उन्हीं इलाकों पर ध्यान केंद्रित करने की है जहां भाजपा कमज़ोर है। प्रत्यक्ष तौर पर हो या परोक्ष लेकिन उसे कम से कम दो युवा नेताओं का समर्थन भी मिलेगा। हालांकि भाजपा के 100 फीसद के घेरे में कांग्रेस कितनी बड़ी सेंध लगा सकती है ये देखने वाली बात होगी।
 
वरिष्ठ पत्रकार आरके मिश्रा के शब्दों में "भाजपा के खाते में अभी सभी 26 सीटें हैं और एक भी सीट कम हुई तो उसको भाजपा का नुक़सान ही कहा जाएगा और भाजपा का ये नुकसान कांग्रेस के लिए फायदा तो साबित होगा ही।"

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