महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संत विनोबा भावे
संत विनोबा भावे का मानना था कि आज हमारे सामने भूखा भगवान खड़ा है। वह भगवान ऐसा है, जो खुद दूध दुहता है, पर उसे वह पीने को नहीं मिलता। वह फलों के बगीचों में काम करता है, पर उसे फल चखने को नहीं मिलते। वह गेहूं के खेत में काम करता है, पर उसे रोटी खाने को नहीं मिलती। इस तरह भूखा, प्यासा और बिना घर वाला भगवान हमारे सामने खड़ा है। वह कहता है कि हमें खिलाओ, कपड़े दो, हम ठंड में ठिठुर रहे हैं।
गहरे एवं गूढ़ विचारों को किसी सूत्र में व्यक्त करना विनोबा की मूल विशेषता थी। एक बानगी देखिए- 'परमात्मा ने सुंदर अंधेरा पैदा किया जिससे हमें आनंद, शांति, सुकून महसूस हो, हम आसमान के चमकीले सितारे देख सकें। लेकिन लोगों ने तो अंधेरे को भी आग लगा दी है।' स्वयं अपने बारे में विनोबाजी का कहना था- 'मैं खुद को मजदूर मानता हूं इसलिए मैंने अपने जीवन में जवानी के बत्तीस वर्ष, जो बेस्ट ईयर्स कहे जाते हैं, मजदूरी में बिताए। मैंने तरह-तरह के काम किए। जिन कामों को समाज हीन और दीन मानता है, यद्यपि उनकी आवश्यकता बहुत है, ऐसे काम मैंने किए हैं- जैसे शौचालय सफाई, बुनाई, बढ़ईगिरी, खेती आदि। कार्य से मैं मजदूर हूं, यद्यपि जन्म से 'ब्राह्मण' यानी ब्रह्मनिष्ठ और अपरिग्रही हूं।
विनोबाजी ने अपना जीवनोद्देश्य 'जीवन-सत्य शोधनम' जैसे शब्दों में व्यक्त किया है। सत्यशोधन यानी जो सत् तत्व सारे ब्रह्मांड में व्याप्त है, उसे ढूंढना, उसका साक्षात्कार करना। सारी सृष्टि और विश्व के साथ अद्वैत की अनुभूति करना। उसके लिए जो जीवन पद्धति अपनाई जाए, उसी का नाम अहिंसा है। अहिंसा यानी संपूर्ण चराचर विश्व के लिए प्रेम की अनुभूति। अव्यक्त प्रेम को समझना सहज नहीं। उसका सगुण साकार रूप है- सबके हृदयों को जोड़ने का प्रयत्न, करुणा के व्यापक प्रसार की कोशिश दुःखियों की, गरीबों की सतत् चिंता। इसी प्रेरणा से विनोबाजी की सारी स्थूल जीवनचर्या, जीवनयात्रा चली।
गांधीजी ने भी स्वराज्य कार्य का हेतु सत्य, अहिंसा और गरीबों का उत्थान माना था। वहीं तंतु आगे बढ़ाते हुए विनोबा ने तेरह सालों तक भारत, पाक, बांग्लादेश (तब पूर्व पाकिस्तान) में भूदान यात्रा की। पैदल चलना विनोबा का लोगों से सीधे जुड़ने का सरल उपाय था। विनोबाजी कहते थे कि हिन्दुस्तान का बहुत-सा दिमाग शहरों में है, लेकिन उसका दिल तो देहात में है। जब तक हम दिल तक नहीं पहुंचते, तब तक जनता के विचारों में प्रवेश ही नहीं हो सकता। इस यात्रा में जब विनोबा कश्मीर पहुंचे तो स्थायी शांति के लिए 'एबीसी त्रिभुज' की बात सुझाई। 'एबीसी' यानी अफगानिस्तान, बर्मा (म्यांमार) व सीलोन (श्रीलंका)। उनका कहना था कि इस त्रिभुज की परिधि में आने वाले अफगानिस्तान, बर्मा, सीलोन, हिन्दुस्तान, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान (तब बांग्लादेश नहीं बना था) का एक संघ बने, तो शांति होगी।
पदयात्रा के दौरान ही विनोबाजी जगन्नाथपुरी में भक्तिभाव से दर्शन हेतु मंदिर पहुंचे, लेकिन बिना दर्शन किए ही लौट आए। कारण, उनके साथ एक फ्रेंच बहन थी जिन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। विनोबाजी ने कहा- 'उसको बाहर रखकर मैं अंदर जाता, तो बड़ा अधर्म होता। जिन्होंने हमें अंदर जाने से रोका, उनके प्रति मेरे मन में किसी प्रकार का न्यून भाव नहीं है। वे एक संस्कार के वश थे इसलिए लाचार थे। लेकिन हमारे देश के लिए, धर्म के लिए यह बड़ी दुःखद घटना है।' इसी तरह जब विनोबा यात्रा करते हुए पंढरपुर के मंदिर में विठोबा के सामने पहुंचे तो वहां के अनुभव से उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली, क्योंकि उन्होंने वहां पत्थर नहीं, साक्षात भगवान का रूप प्रकट होते देखा। विनोबा के साथ पंढरपुर में दो अन्य धर्मों की बहनें थीं : एक मुसलमान, दूसरी ईसाई। दोनों ने भगवान को स्पर्श किया। अन्य धर्मियों के साथ मंदिर प्रवेश की यह जो घटना घटी, अभूतपूर्व घटना है। इससे हिन्दू धर्म का सच्चा रूप प्रकट हुआ।
पैसे और सत्ता संगठन की ताकत पर अंधा भरोसा करने वाली आज की दुनिया विचारों को शायद भूलती जा रही है। इसी से आज की दुनिया विचारों से ज्यादा पैसे, सत्ता और संगठन की ताकत पर आत्ममुग्ध है। विनोबा का मानना था कि दुनिया में काम करने के तीन रास्ते हैं- कत्ल (हिंसा), कानून (व्यवस्थागत) और करुणा (मान्यता- सत्य, प्रेम करुणा)। कत्ल के जरिए काम करने से किसी का कल्याण नहीं हुआ। कानून से जनशक्ति नहीं पैदा हो सकती। तीसरा रास्ता है करुणा का, प्रेम का, सत्य का, जिस पर जी-भर आजीवन चलते रहने का काम 11 सितंबर 1895 को जन्मे विनायक नरहरि भावे यानी संत विनोबा ने किया।