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कौन सा मॉडल सुधारेगा किसानों की दशा

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गुरुवार, 3 जनवरी 2019 (11:26 IST)
भारत में आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी कृषि पर ही निर्भर है। कृषि क्षेत्र से जुड़े अधिकतर लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं। किसानों का असंतोष सरकार की चिंता का सबब बना हुआ है। अब दो प्रदेशों के कृषि मॉडल की चर्चा हो रही है।
 
 
कर्ज, पलायन और आत्महत्या जैसे नकारात्मक कारण भारतीय किसान की पहचान बन चुके हैं। कारण चाहे जो भी रहे हों पर पिछले 2 दशकों में करीब तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। किसानों की बदहाली अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। केंद्र और राज्य सरकारें किसानों के गुस्से और आन्दोलन की उपेक्षा करने की स्थिति में नहीं हैं। आगामी लोकसभा चुनावों से पहले और उसके बाद भी कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई योजनाओं की घोषणा और कुछ को लागू किए जाने की सम्भावना है।
 
 
क्या चाहते हैं किसान
इन दिनों किसानों को उनके द्वारा उगाया गया प्याज रुला रहा है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सैकड़ों किसान मंडी में 1-2 प्रति किलो के भाव पर बेचने पर मजबूर हैं। कुछ जगहों पर तो प्याज को फेंकना ही पड़ रहा है। राजू तोम्बरे कहते हैं कि फसल का सही दाम सुनिश्चित हो जाए तो आधी समस्या हल हो जाएगी।
 
 
दो एकड़ खेत के मालिक गजानन भाऊ कृषि और सरकार दोनों से निराश हैं। उनका कहना है कि खेती से परिवार को चला पाना मुश्किल हो गया है। कभी सिंचाई के लिए पानी न होने से किसान को संकट का सामना करना पड़ता है तो कभी भारी बारिश या बेमौसम बारिश उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाती है। किसान ऐसे मौकों पर सरकार से मदद की उम्मीद रखता है। नासिक के संजय बालकृष्ण साठे ने अपने गुस्से के इजहार का अनोखा तरीका अपनाते हुए 750 किलो प्याज बेचने से मिले 1064 रुपये प्रधानमंत्री को भेज दिया। किसान अलग अलग तरीके से सरकार तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं।
 
 
उपायों पर काम
सरकार किसानों की नाराजगी दूर करना चाहती है, लेकिन किसानों की मदद का बेहतर तरीका क्या हो, इसको लेकर विचार विमर्श जारी है। निश्चित तौर पर कर्ज माफी किसानों की समस्या का उपाय नहीं है। साथ ही पूर्ण कर्ज माफी से सरकारी खजाने पर लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। इससे अर्थव्यवस्था के संतुलन पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका सरकार को है। ऐसे में सरकार किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने की योजना लागू कर सकती है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था में और बदलाव करने पर विचार कर रही है ताकि इसे ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके, साथ ही वह खेती से कम आमदनी की भरपाई करने के लिए डायरेक्ट इनकम ट्रांसफर के बारे में भी सोच रही है।
 
 
चर्चा में तेलंगाना मॉडल
मध्य प्रदेश की भावांतर भुगतान योजना और तेलंगाना मॉडल को फेरबदल कर राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सकता है। तेलंगाना में सरकार फसलों की बुआई से पहले प्रति एकड़ तय राशि सीधे खाते में भेजकर किसानों को लाभ दिया जाता है। यहां के किसानों को प्रति वर्ष प्रति फसल 4000 रुपये एकड़ की राशि दी जाती है। दो फसल के हिसाब से किसानों को हर साल 8000 रुपये प्रति एकड़ मिल जाते हैं।
 
 
झारखंड और ओडिशा भी अब इसी तरह की योजना शुरू कर रहे हैं। वहीं, मध्य प्रदेश की भावांतर भुगतान योजना में यदि कृषि उत्पाद की बिक्री मूल्य अधिसूचित मूल्य से अधिक है, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से कम है, तो उनके बिक्री मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर किसान के बैंक खाते में सीधे जमा किये जाने का प्रावधान है।
 
 
कृषि संकट से निपटने के लिए महाराष्ट्र सरकार की ओर से गठित कार्यबल वसंतराव नाइक स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी का कहना है कि झारखंड और तेलंगाना की तर्ज पर प्रत्येक किसान को पांच हजार रुपये प्रति एकड़ की नकद सब्सिडी दी जानी चाहिए।
 
 
आय बढ़ाने पर जोर
टमाटर, प्याज और आलू किसानों को संभावित नुकसान से बचाने और उनकी आय को बढ़ाने के लिए एग्रीकल्चरल प्रोसेसिंग के लिए 24 क्लस्टरों की स्थापना सरकार करने जा रही है। इनके जरिए किसानों को घरेलू बाजार के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों से भी जोड़ने का प्रयास होगा।
 
 
सरकार ने किसानों की स्थिति में बदलाव लाने के लिए जो निर्णय पिछले चार साल में लिए हैं, समीक्षा के बाद उन्हें धार देने का वक्त है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा प्रशिक्षण योजना का कोई खास लाभ अब तक किसानों को नहीं मिल पाया है। इसी तरह मानसून पर खेती की निर्भरता कम करने और हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना भी प्रभावी साबित नहीं हुई है। केन्द्रीय कृषि राधामोहन सिंह का कहना है कि 2019 के अंत तक हर खेत को पानी मिलने लगेगा।
 
 
वैसे, समस्या और समाधान के बीच झूलते किसान को 2019 से उम्मीद रखनी चाहिए क्योंकि यह चुनावी साल है। तीन राज्यों में हुए चुनाव के बाद किसान और उनकी समस्या केंद्र सरकार के केंद्र में हैं।
 
 
रिपोर्ट विश्वरत्न श्रीवास्तव
 

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