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यूक्रेन और रूस के बीच पीएम मोदी के सामने संतुलन साधने की चुनौती

BBC Hindi
शुक्रवार, 23 अगस्त 2024 (07:53 IST)
ज़ुबैर अहमद, वरिष्ठ पत्रकार, लंदन
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के पहले मंगलवार रात यूक्रेन की राजधानी कीएव में हर जगह जब सायरन बजे तो शहर थम सा गया। सुरक्षा अलर्ट के बावजूद, एकेडमिक और भारत मामलों की विशेषज्ञ डॉ। ओलेना बोर्डिलोव्स्का बहुत साहस जुटाकर सुबह ऑफ़िस पहुंचती हैं, क्योंकि उनका बहुत व्यस्त दिन है। वो कहती हैं, "मैं शिकायत नहीं करना चाहती। लेकिन हम लोगों को बताना चाहते हैं कि अब हम बहुत थक गए हैं। हालांकि, यहां यही रूटीन है।
 
डॉ. ओलेना की थम सी गई ज़िंदगी, मॉस्को में रह रहे प्रोफ़ेसर अनिल जनविजय की ज़िंदगी से बिल्कुल अलग है। अनिल जनविजय वहां 1982 से ही रह रहे हैं।
 
मुख्य रूप से उत्तर भारत के रहने वाले जनविजय मॉस्को विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफ़ेसर हैं और वो ज़ोर देकर कहते हैं कि मॉस्को में ज़िंदगी बिल्कुल सामान्य है।
 
अपने आरामदेह ऑफ़िस में बैठे प्रोफ़ेसर जनविजय ने कहा कि जंग शुरू होने के बाद से मेरी ज़िंदगी में रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है। हमारी ज़िंदगी पर न तो जंग का कोई असर पड़ा है न तो पश्चिमी प्रतिबंधों का, सिवाय इसके कि कुछ इम्पोर्टेड सब्ज़ियों के दाम बढ़ गए हैं।
 
हालांकि उनके दावे को पश्चिम के कई लोग ख़ारिज़ सकते हैं, लेकिन दोनों शहरों में जंग के साये में चल रही ज़िंदगी की यही कहानी है, एक ऐसी जंग जिसके जल्द ख़त्म होने के कोई आसार नहीं दिखाई देते।
 
असल में, रूस के कुर्स्क इलाक़े में यूक्रेन की घुसपैठ के बाद यूक्रेन में बहुत से लोग ख़ुश हैं। एक स्थानीय अख़बार में अकादमिक और राजनीतिक टिप्पणीकार ओल्गा टोकारियुक ने लिखा, "इसने लोगों में भरोसा बहाल किया है कि यूक्रेन जीत सकता है। साथ ही इसने कीएव के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के प्रति भी भरोसा पैदा किया है, बावजूद कि जंग के मैदान में हाल में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली है।"
 
ओल्गा टोकारियुक ने लिखा, "यूक्रेन के अंदर बातचीत को लेकर बहुत कम इच्छा थी और उससे भी कम इस बात पर भरोसा था कि रूस संघर्ष विराम का इस्तेमाल, ख़ुद को हथियारबंद, संगठित और फिर से हमला करने के लिए नहीं करेगा।"
 
इस पृष्ठभूमि में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीएव का दौरा करने जा रहे हैं, जहाँ वो यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की से मुलाक़ात करेंगे।
 
कीएव जाने से पहले पीएम मोदी ने पोलैंड में भारतीय मूल के लोगों से मुलाक़ात की और उन्होंने सितंबर 2022 के अपने बयान को दुहराया कि 'यह युद्ध का युग नहीं है।' उन्होंने इलाक़े में युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए काम करने का वादा किया।
 
कीएव में क्या है चर्चा
भारतीय मामलों की जानकार डॉ. ओलेना बोर्डिलोव्स्का कहती हैं कि 'मोदी के कीएव दौरे को लेकर भारतीय मीडिया में चर्चा बहुत है, जो कि 1991 में यूक्रेन के स्वतंत्र होने के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा है।'
 
यूक्रेन के मीडिया में भी इस दौरे पर क़रीब से नज़र रखी जा रही है। कीएव में नेशनल इंस्टीट्यूट फोर स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ में डिपार्टमेंट ऑफ़ न्यू चैलेंजेज की प्रमुख डॉ। ओलेना, भारतीय मामलों की जानी-मानी विद्वान हैं। वो ठीक ठाक हिन्दी बोल लेती हैं। वो भारत का बहुत सम्मान करती हैं और उम्मीद करती हैं कि मोदी का दौरा शांति की कोशिशों की शुरुआत कर सकता है।
 
इस दौरे की व्यापक कवरेज हो रही है और बढ़-चढ़ कर दावा किया जा रहा है कि मोदी एक शांतिदूत या मध्यस्थ की भूमिका निभाने जा रहे हैं। पिछले महीने 8-9 जुलाई को उनके मॉस्को यात्रा के बाद यह दौरा हो रहा है।
 
प्रोफ़ेसर अनिल जनविजय ने कहा कि लगता है कि 'मॉस्को इसे लेकर उदासीन है।' उन्होंने कहा, 'कोई प्रतिक्रिया नहीं है। मीडिया भी इसे नज़रअंदाज़ कर रहा है।' हालांकि दोनों देशों में एक चीज़ कॉमन है- वो है युद्ध की पस्ती।
 
डॉ. ओलेना बोर्डिलोव्स्का कहती हैं कि यूक्रेन के लोग जंग से पूरी तरह ऊब चुके हैं। वो कहती हैं कि दुनिया में बाकी लोगों के लिए, जंग तब शुरू हुई जब रूस ने फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण की शुरुआत की थी। लेकिन यूक्रेन की जनता के लिए, यूक्रेन पर हमला फ़रवरी 2014 में शुरू हुआ था, जब इसने क्राइमिया पर हमला किया और इसे अलग कर अपने में मिला लिया।
 
क्या मोदी की मध्यस्थता दोनों पक्षों को स्वीकार होगी?
मौजूदा समय में, शायद बहुत कम ही वैश्विक नेता हैं, जिनका मॉस्को और कीएव दोनों में एक जैसा स्वागत होता है। नेटो सहयोगी देश हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने पिछले महीने ही शांति मिशन के तहत दोनों राजधानियों का दौरा किया था।
 
लेकिन यूरोप में ओरबान को यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की बजाय रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अधिक क़रीब देखा जाता है।
 
कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि शायद नरेंद्र मोदी ख़ुद को उन कुछ चंद लोगों में शुमार कर सकते हैं, जिनका दोनों देशों में स्वागत होता है।
 
कई लोगों का कहना है कि इस दौरे का मक़सद पश्चिम के साथ संबंधों में संतुलन लाना है क्योंकि इससे पहले मोदी के रूसी दौरे की काफ़ी आलोचना हुई थी लेकिन भारतीय अधिकारी इससे असहमत हैं।
 
यह दौरा शुरू होने से पहले भारत के विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी (पश्चिम) तन्मय लाल ने एक प्रेस ब्रीफ़िंग में कहा था, "मैं कहना चाहूंगा कि यह कोई ऐसी परिस्थिति नहीं है, जिसमें एक के साथ होने का मतलब दूसरे के ख़िलाफ़ होना है।"
 
उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री ने रूस की यात्रा की थी। कई विचारों का आदान प्रदान हुआ। पिछले एक साल में या उससे भी पहले प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से कई बार मिल चुके हैं। अब वे फिर से यूक्रेन में मिलने जा रहे हैं। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि ये स्वतंत्र और व्यापक संबंध है।"
 
भारतीय मीडिया में जो हेडलाइंस हैं, उसके अनुसार, यह दौरा शांति योजना का रास्ता खोल सकता है। एक शीर्षक में कहा गया है, 'पीएम मोदी का दौरा क्यों शांति के लिए एक मील का पत्थर है।' एक अन्य शीर्षक में पूछा गया है, 'जंग ख़त्म करने में क्या भारत कोई भूमिका निभा सकता है?'
 
हालांकि राजनीतिक टिप्पणीकारों ने थोड़ा एहतियात बरने की अपील की है और इस ओर ध्यान दिलाया है कि मोदी का कीएव के दौरे से, न तो यूक्रेन या रूस अपनी ओर से शांति की पहल शुरू करेंगे और ना ही यह एक सद्भावना यात्रा से अधिक साबित होगा।
 
8-9 जुलाई को मॉस्को दौरे में भारतीय प्रधानमंत्री ने इस तरह का कोई शांति प्रस्ताव नहीं दिया था। उस समय राष्ट्रपति पुतिन के प्रवक्ता डी पेस्कोव ने भी इसकी पुष्टि की थी। उन्होंने कहा था, "यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता को लेकर भारत की ओर से कोई शांति प्रस्ताव नहीं मिला है।"
 
डॉ. ओलेना बोर्डिलोव्स्का का मानना है कि भारतीय प्रधानमंत्री उनके देश बिना किसी शांति योजना के आ रहे हैं, लेकिन वो फिर भी इंतज़ार करना चाहती हैं। इस बात का ज़िक्र करते हुए कि यूक्रेन का दौरा करने वाले भारत के एकमात्र शीर्ष नेता थे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, वो कहती हैं, "इस दौरे को लेकर शोर शराबे के शांत होने तक मैं इंतज़ार करूंगी।
 
यूक्रेन दौरे का मक़सद क्या है?
पीएम मोदी आख़िर रूस के मॉस्को जाने के क़रीब छह हफ्ते बाद यूक्रेन के कीएव दौर पर क्यों जा रहे हैं? पीएम मोदी का मॉस्को दौरा ऐसे समय हुआ था, जब उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) का सम्मेलन अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में होना था, उसी दिन रूसी लड़ाकू विमानों ने कीएव में स्थित बच्चों के अस्पताल को निशाना बनाया, जिसमें पांच बच्चों की जान गई थी।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस दौर को लेकर पश्चिमी देशों के नेताओं ने निराशा ज़ाहिर की थी। वहीं, पश्चिमी मीडिया ने तो मोदी और पुतिन के गले लगने की तस्वीर और बच्चों के अस्पताल पर किए गए हमले की फोटो को एक साथ दिखाया था।
 
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने भी इसको लेकर आलोचना की थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा था, “इससे बहुत ज़्यादा निराशा हुई। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को एक ऐसे दिन पर मॉस्को में दुनिया के सबसे ख़ूनी अपराधी को गले लगाते देखना शांति प्रयासों के लिए बहुत बड़ा झटका है।"
 
कइयों ने कहा कि पीएम मोदी यूक्रेन का दौरा कर संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत विदेश नीति में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांतों पर काम करता है।
 
डॉ क्षितिज बाजपेयी लंदन में स्थित थिंक टैंक चैटम हाउस में एशिया पैसिफ़िक प्रोग्राम में दक्षिण एशिया के लिए रिसर्च फेलो हैं। उन्होंने कहा कि मुझे यक़ीन नहीं है कि मोदी कोई विशिष्ट शांति प्रस्ताव देंगे लेकिन कम से कम भारत मॉस्को और कीएव के बीच संदेशों आदान-प्रदान के लिए एक माध्यम के रूप में काम कर सकता है।
 
उन्होंने कहा कि भारत के मॉस्को और वॉशिंगटन डीसी दोनों के साथ अच्छे रिश्ते को देखते हुए, भारत-रूस और पश्चिमी देशों के बीच संवाद का बैक चैनल मुहैया कर सकता है।
 
इससे डॉ. ओलेना पूरी तरह से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं भारत की विदेश नीति के बारे में जानती हूं। भारत के पास इस क्षेत्र में काम करने का ज़्यादा अनुभव नहीं है। उन्होंने कहा कि ये भारतीयों के लिए नया है लेकिन उनकी भूमिका स्वीकार्य होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत वैश्विक मंचों पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत साथ ही दावा करता है कि वो ग्लोबल साउथ की आवाज़ है। इसका मतलब है कि वो विभिन्न विचारों पर किसी तरह का असर डाल सकता है।"
 
लेकिन डॉ. क्षितिज बाजपेयी की राय इससे अलग है। उन्होंने कहा कि भारत पहले भी शांति कायम कराने में भूमिका निभा चुका है। जैसे कि कोरियाई युद्ध और फ्रेंच-इंडो चाइना युद्ध। भारत विदेश नीति में स्वायत्तता के कारण ऐसी भूमिका निभाने की अच्छी स्थिति में है। मोदी सरकार की ओर से भारत को 'विश्व मित्र' के तौर पर पेश भी किया गया है।
 
पीएम मोदी और यूक्रेन
डॉ ओलेना ने कहा कि उन्हें मोदी की मॉस्को यात्रा और पुतिन के साथ उनकी निकटता के बारे में समझाने में कठिनाई हो रही थी।
 
उन्होंने कहा, "मुझे अक्सर अपने लोगों को भारत की स्थिति समझानी पड़ती है क्योंकि वे (मॉस्को की) यात्रा से वास्तव में परेशान थे।"
 
उन्होंने कहा, "यहां मौजूद कई लोगों को लगता है कि भारत रूस के साथ अपने विशेष संबंधों और प्रतिबंध को नकार कर उससे सस्ते तेल की ख़रीद के कारण रूस समर्थक है। भारत यूक्रेन समर्थक नहीं है। ऐसे में मुझे उन्हें यह समझाना होगा कि भारत सबसे पहले 'भारतीय हितों का समर्थक' है।’’
 
डॉ ओलेना ने कहा, "मुझे लगता है कि मोदी को यूक्रेन के लोगों को ये समझाने के लिए बहुत कुछ करना होगा कि भारत उनका सच्चा दोस्त है।"
 
मॉस्को यूनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ाने वाले और मीडिया वर्क करने के अलावा अनिल जनविजय सोवियत संघ के विघटन के बाद बने कई देशों का दौर भी देख चुके हैं।
 
वो मानते हैं कि रूसी भारत के सच्चे दोस्त हैं और भारत के प्रति उनके मन में बहुत गर्मजोशी है। लेकिन वो यूक्रेन और रूस के बीच शांतिदूत बनने की भारत की संभावना को 'सरकार का हिमायती' भारतीय मीडिया द्वारा खड़ी की गई फ़ंतासी बताकर ख़ारिज़ करते हैं।
 
अनिल जनविजय ने कहा, "पुतिन ईमानदार मध्यस्थ के रूप में भारत पर भरोसा नहीं करेंगे। रूस जानता है कि मौजूदा स्थिति में भारत तटस्थ नहीं रह सकता है।"
 
उन्होंने कहा कि रूस की लड़ाई नेटो के साथ है। ऐसे में नेटो जब तक इसमें शामिल नहीं होता और कोई प्रस्ताव नहीं देता तो समझौता नहीं होगा।
 
भारत और शांति
चीन और ब्राज़ील ने अपनी ओर से शांति प्रस्ताव दिए हैं। शांति बहाल किए जाने को लेकर मार्च 2022 में तुर्की ने रूस और यूक्रेन के बीच बैठकों की मेज़बानी की थी। बाकियों ने भी कोशिशें कीं लेकिन अभी तक इसमें कोई सफलता नहीं मिली है। लेकिन मीडिया के शोर शराबे से दूर, भारत और यूक्रेन गंभीर बातचीत में शामिल हैं।
 
डॉ ओलेना ने कहा, "भारत पहले ही परमाणु मुद्दे पर बातचीत कर चुका है क्योंकि युद्ध के पहले साल में हालात काफ़ी ख़तरनाक थे। भारत काला सागर अनाज समझौते में भी हिस्सा ले चुका है।"
 
भारत ने बिना उकसावे के रूसी आक्रमण की खुलकर आलोचना नहीं की है लेकिन दोनों पक्षों से अपने मतभेदों को बातचीत और कूटनीति के ज़रिए हल करने का हमेशा आग्रह किया है।
 
डॉ। बाजपेयी ने कहा, "हालांकि इस संघर्ष में रूस और यूक्रेन मुख्य पक्ष हैं, लेकिन ये स्पष्ट है कि ऐसे पक्ष भी हैं, जिनसे संघर्ष का स्थायी समाधान खोजने के लिए सलाह लेने की ज़रूरत होगी।"
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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