Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

क्या आप जानते हैं कि पेशावर के महर्षि पाणिनी ने किया था कौनसा खास कार्य?

क्या आप जानते हैं कि पेशावर के महर्षि पाणिनी ने किया था कौनसा खास कार्य?

अनिरुद्ध जोशी

महर्षि पाणिनी का जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था, जो वर्तमान में पेशावर (पाकिस्तान) के करीब है। उस काल में यह भाग भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित गांधार जनपद का हिस्सा था। पाणिनी का जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व का माना जाता है।  
 
पाणिनी के ही समकालीन पतंजलि थे। पतंजलि भी उनके ही प्रदेश के रहने वाले थे। पतंजलि ने पाणिनी के अष्टाध्यायी पर अपनी टीका लिखी जिसे 'महाभाष्य' कहा जाता है। इनका काल लगभग 200 ईपू माना जाता है। पतंजलि ने इस ग्रंथ की रचना कर पाणिनी के व्याकरण की प्रामाणिकता पर अंतिम मोहर लगा दी थी। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है।
 
1. पाणिनी को उनके भाषा-व्याकारण के लिए जाना जाता है। संस्कृत‍ का व्याकरण उन्होंने ही लिखा था। उनका अनुसरण करके ही दुनिया की सभी भाषाओं का व्याकरण निर्मित हुआ है। पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया। उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा का व्याकरणबद्ध किया। हालांकि पाणिनी के पूर्व भी विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने का प्रयास किया लेकिन पाणिनी का शास्त्र सबसे प्रसिद्ध हुआ।
 
2. 19वीं सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रेंज बॉप (14 सितंबर 1791- 23 अक्टूबर 1867) ने पाणिनी के कार्यों पर शोध किया। उन्हें पाणिनी के लिखे हुए ग्रंथों तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के सूत्र मिले। आधुनिक भाषा विज्ञान को पाणिनी के लिखे ग्रंथ से बहुत मदद मिली। दुनिया की सभी भाषाओं के विकास में पाणिनी के ग्रंथ का योगदान है।
 
3. उन्होंने व्याकरण का एक ग्रंथ लिखा है जिसका नाम अष्टाध्यायी है। 550 ईपू रचित 8 अध्यायों में फैले 32 पदों के तहत पिरोए गए 3,996 सूत्रों वाले इस ग्रंथ ने दुनिया की सभी भाषाओं को समृद्ध ही नहीं किया बल्कि ज्ञान की कई और बातों का भी खुलासा किया है। अष्टाध्यायी जिसमें 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं। व्याकरण के इस महनीय ग्रंथ में पाणिनी ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं।
 
4. पाणिनी ने अष्टाध्यायी ग्रंथ की रचना के दौरान उन सभी तकनीकों का समावेश किया, जो ग्रंथ को स्मृतिगम्य यानी याद करने में आसान बना सकती थी। आचार्य पाणिनी ने शब्द बनाए नहीं हैं, बल्कि उनके बनने की विधि व प्रक्रिया को सिखाया है।
 
5. पाणिनी के 'अष्‍टाध्‍यायी' में भाषा-व्‍याकरण के साथ ही तत्‍कालीन लोकाचार का भी संक्षिप्त वर्णन मिलता है। इसके अलावा उसमें विभिन्‍न पकवानों का भी जिक्र है।
 
6. पाणिनी के काल में 25 मन का बोझ 'आचित' कहलाता था और जो रसोइया इतने अन्‍न का प्रबंध संभाल सके, उसे 'आचितक' कहते थे। पाणिनी ने 'अष्‍टाध्‍यायी' में 6 प्रकार के धान का भी उल्‍लेख किया है- ब्रीहि, शालि, महाब्रीहि, हायन, षष्टिका और नीवार। पाणिनी के काल में मैरेय, कापिशायन, अवदातिका कषाय, कालिका नामक मादक पदार्थों का प्रचलन था।
  
7. अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

18 फरवरी 2021 : आज इन राशियों के लिए व्यापार रहेगा लाभदायक, पढ़ें 12 राशियां