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गणतंत्र दिवस पर कविता : इतने वर्षों में, क्या खोया क्या पाया है

ज्योति जैन
गणतंत्र के इतने वर्षों में, क्या खोया क्या पाया है....
खोने की तो फिक्र नहीं, पाने की चाह सब रखते हैं...
 
सदियों के तप के बाद मिली, आज़ादी की नेमत हमको...
पर देश के ही इक हिस्से में, फहरा न तिरंगा सकते हैं...
 
जिस वंदे मातरम को गाकर, फांसी पर लटके देशभक्त...
वही वंदे मातरम बंद करें, अब इसकी जुगत लगाते हैं...
 
बापू के सपनों का भारत हो, नारा खूब लगाया है...
पर नशाबंदी को कहे कोर्ट, तो उसको आंख दिखाते हैं...
 
सात दशक से देते आए, सर्वधर्म समभाव का नारा...
धर्म आधारित आरक्षण की आग को भी सुलगाते हैं...
 
देश उलझ रहा आज है मित्रों, राजनीति के वादों में...
आओ हम ही मिलजुल कर के, ये उलझन सुलझाते हैं...।

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