पूरे देश में गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस दिन देशभर में गरिमामय आयोजन होते हैं, लेकिन गणतंत्र दिवस को लेकर कुछ बेहद ही दिलचस्प तथ्य हैं जो शायद ही आप जानते होंगे, आईये जानते हैं 26 जनवरी को लेकर कुछ दिलचस्प फैक्ट्स।
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गणतंत्र दिवस की भव्य परेड देखने के लिए 26 जनवरी पर राजपथ से लेकर लालकिले तक परेड मार्ग पर हर साल 2 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जुटती है।
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परेड में राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से लेकर आम और खास सभी शामिल होते हैं।
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सरकार द्वारा भारत समेत कई राष्ट्रों से अतिथियों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया जाता है।
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साल 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी गणतंत्र दिवस परेड में शामिल हो चुके हैं।
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26 जनवरी पर गणतंत्र दिवस परेड की शुरूआत 1950 में आजाद भारत का संविधान लागू होने के साथ हुई थी।
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1950 से 1954 तक गणतंत्र दिवस की परेड राजपथ पर न होकर, चार अलग-अलग जगहों पर हुई थीं। 1950 से 1954 तक गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन क्रमशः इरविन स्टेडियम (नेशनल स्टेडियम), किंग्सवे, लाल किला और रामलीला मैदान में हुआ था।
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साल 1955 से गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन राजपथ पर शुरू किया गया। तब राजपथ को ‘किंग्सवे’ के नाम से जाना जाता था। तब से ही राजपथ इस आयोजन की स्थाई जगह बन चुका है
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26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो विशेष अतिथि बने थे।
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1955 में राजपथ पर आयोजित समारोह में पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया गया था।
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समारोह की शुरूआत राष्ट्रपति के आगमन के साथ होती है। राष्ट्रपति अपनी विशेष कार से, विशेष घुड़सवार अंगरक्षकों के साथ आते हैं।
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विशेष घुड़सवार अंगरक्षक समेत वहां मौजूद सभी लोग तिरंगे को सलामी देते हैं। फिर राष्ट्रगान की शुरूआत होती है।
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राष्ट्रगान के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाती है। यह सलामी 52 सेकेंड के राष्ट्रगान के खत्म होने के साथ पूरी होती है।
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तोपों की यह सलामी भारतीय सेना की 7 तोपों द्वारा दी जाती है, जिन्हें पौन्डर्स कहा जाता है। प्रत्येक तोप से तीन राउंड फायरिंग होती है।
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ये तोपें 1941 में बनी थीं और सेना के सभी आयोजनों में इन्हें शामिल करने की परंपरा है।
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26 जनवरी की परेड में शामिल होने वाले सभी दल तकरीबन 600 घंटे तक अभ्यास करते हैं। परेड में शामिल सभी दल करीब 6 महीने पहले ही तैयारी में जुट जाते हैं।
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परेड में शक्ति प्रदर्शन के लिए शामिल होने वाले टैंकों, हथियार, बख्तरबंद गाड़ियों और अन्य अत्याधुनिक उपकरणों आदि के लिए इंडिया गेट परिसर में एक विशेष शिविर बनाया जाता है।
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इन सभी टैंकों, हथियार, बख्तरबंद गाड़ियों और अन्य अत्याधुनिक उपकरणों की जांच और रंग-रोगन आदि का कार्य 10 चरण में पूरा किया जाता है।
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26 जनवरी से पहले फुल ड्रेस रिहर्सल और समारोह के दौरान होने वाली परेड राजपथ से लाल किले तक मार्च करते हुए जाती है।
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सर्वश्रेष्ठ परेड की ट्रॉफी देने के लिए कई जगहों पर जज उपस्थित होते हैं, ये जज प्रत्येक दल को 200 मापदंडों पर नंबर देते हैं। इसके आधार पर सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग दल का चुनाव होता है। इसमें जीतना बड़े गौरव की बात है।
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परेड में भाग लेने वाले सेना के जवान भारत में बनी इंसास (INSAS) राइफल लेकर चलते हैं। विशेष सुरक्षा बल के जवान इजरायल में बनी तवोर (TAVOR) राइफल लेकर चलते हैं।
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राजपथ पर मार्च पास्ट खत्म होने का बाद परेड का सबसे रोचक हिस्सा शुरू होता है, जिसे ‘फ्लाई पास्ट’ कहते हैं।
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‘फ्लाई पास्ट’ में 41 फाइटर प्लेन और हेलिकॉप्टर शामिल होते हैं, जो वायुसेना के अलग-अलग केंद्रों से उड़ान भरते हैं।
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सरकार ने वर्ष 2001 में गणतंत्र दिवस समारोह पर करीब 145 करोड़ रुपए खर्च किए थे। वर्ष 2014 में ये खर्च बढ़कर 320 करोड़ रुपए पहुंच गया था। मतलब 2001 से 2014 के बीच 26 जनवरी समारोह के आयोजन में लगभग 54.51 फीसद की दर से खर्च में इजाफा हुआ है।