क्लास रूम नहीं कब्रिस्तान में पढ़ रहे हैं मासूम...
बच्चों को पढ़ता देख आप शायद समझ रहे होंगे कि ये स्कूल के परिसर में पढ़ रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है.... ध्यान से देखिए ये कब्रिस्तान है। झारखंड के एक गांव की यह तस्वीरें खुद-ब-खुद बयां कर रही है हमारे देश की असली हकीकत।
स्कूल की इमारत कभी भी गिर सकती है...
झारखंड के लोहरदगा जिले के कोचा गांव में यह प्राथमिक विद्यालय है जो एक कब्रिस्तान से बिल्कुल सटा हुआ है। एक ही कमरे में विद्यालय का कार्यालय और क्लास रूम दोनों चलता है स्कूल में दो कमरे और भी है लेकिन उनकी खस्ता हालत के चलते बच्चे डर के मारे नहीं बैठते।
गर्मी और बारिश में सबसे ज्यादा परेशानी...
इस विद्यालय में कुल 103 बच्चे हैं लेकिन लगभग 75 बच्चे ही पढ़ने आते हैं। स्कूल में जगह नहीं होने की वजह से बच्चे कब्रिस्तान में कब्रों के उपर बैठ कर पढ़ते हैं। गर्मी और बारिश के दिनों में हालत और भी खराब होते हैं, बच्चे बाहर नहीं जा पाते और एक कमरे में इतने सारे बच्चों के बैठने से जगह कम पड़ती है। इसका सीधा असर बच्चों की पढाई पर पड़ रहा है।
अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोग ...
इस गांव में अधिकांश लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हैं। महज 120 परिवारों के इस छोटे से गांव में लगभग 935 लोग ही रहते हैं।
खेती और बांस के रोजगार पर निर्भर है इनकी आजीविका
यह गांव घने जंगलों और पहाड़ो से घिरा हुआ है। गांव तक जाने के लिए एक कच्ची सड़क है। जीवनयापन के लिए यहां के लोग खेती करतें हैं। ये लोग बांस से झाड़ू, टोकरी और सजावट के सामान बनाकर बाजारों मे बेचते हैं। रोजगार और संसाधनों की कमी के चलते ये शहरों का रुख कर रहे हैं।
गांव की दशा बदलने के लिए एक जुट हुए लोग
स्थानीय लोग अपने गांव की स्थिति सुधारना तो चाहते हैं लेकिन पेट का सवाल उन्हें कुछ और सोचने नहीं देता है। उनकी इस हिम्मत को हवा दी सामाजिक संस्था 'गूंज' ने। संस्था ने अपनी सहयोगी संस्था एल. जी. एस. एस. के साथ गांव का दौरा किया। स्कूल की खराब स्थिति को देखने के बाद लोगों ने सबसे पहले स्कूल के लिए कमरे बनाने की जिम्मेदारी ली।
काम के बदले कपड़े ने दी हिम्मत ...
कहते है ना जहां चाह है वहां राह है। गूंज संस्था की अनोखी पहल काम के बदले कपड़े के तहत सरकारी उपेक्षा की मार झेल रहे इस स्कूल के परिसर में गां व के ही लोगों ने केवल 4 दिन में ही एक और कमरा बनाकर बच्चों की इस समस्या को हल किया। जिसके बदले में संस्था ने पुरस्कार स्वरूप गांव वालों को कपड़े और जरुरी सामान दिए।
मेहनत की बदौलत बदली तस्वीर...
क्लास रूम बन जाने से स्कूल के बच्चे बेहद खुश हैं। अब बच्चे कब्रिस्तान के बजाय रूम में बैठ कर पढाई कर रहें हैं। शिक्षकों को भी अब बच्चों को बैठाने एवं पढ़ाने में सुविधा होने लगी है।