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चमकी बुखार : क्यों रोकथाम में असफल हो रही है सरकार?

चमकी बुखार : क्यों रोकथाम में असफल हो रही है सरकार?
, सोमवार, 24 जून 2019 (13:42 IST)
बिहार में ‘चमकी बुखार’ का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। बिहार में मासूमों की मौत का आंकड़ा 152 तक पहुंच चुका है। बुखार से मचे हाहाकार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार और बिहार सरकार से मामले पर हलफनामा दायर करने को कहा है। बढ़ती मौतों के आंकड़ों के बीच बिहार सरकार के प्रयास इस बीमारी को रोकने में असफल हो रहे हैं। यह बीमारी 5 से 7 साल के बच्चों में होती है।
 
बिहार में बीते एक महीने से चमकी बुखार को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। इसका सबसे ज्यादा असर मुजफ्फरपुर में दिखा है। यहां के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में अब तक 128 बच्चों की मौत हो चुकी है।
 
क्या है चमकी बुखार : चमकी बुखार को एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) को दिमागी बुखार कहा जाता है। यह तंत्रिका तंत्र यानी नर्व सिस्टम संबंधी गंभीर बीमारी है जो मस्तिष्क में सूजन पैदा करती है।
 
क्या हैं लक्षण : चमकी बुखार के लक्षणों में सिरदर्द, तेज बुखार, भ्रम की स्थिति, गर्दन में अकड़न और उल्टी शामिल है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल के मुताबिक यह बीमारी विषाणुओं के साथ-साथ जीवाणुओं, फंफूदी रसायनों, परजीवियों, विषैले तत्वों और गैर संक्रामक एजेंटों से हो सकती है। 
 
क्यों फैल रही है बीमारी : जानकारों की मानें तो इस बीमारी की मुख्‍य कारण मौसम है। 38 डिग्री से ऊपर तापमान और आर्द्रता 60-65 होती है तो इस बीमारी मामले सामने आने लगते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जैसे ही बारिश होगी और तापमान में गिरावट होगी तो इस बीमारी के मामले थम जाएंगे।
 
लीची से चमकी फैलने की अफवाह : इस तरह की अफवाह फैली थी कि इस बुखार का कारण लीची है और इस फल में ही एक प्रकार का वायरस आ रहा है। हालांकि विशेषज्ञों ने इससे इंकार किया। अफवाह फैलने के बाद लीची के कारोबार पर भी काफी असर पड़ा है।
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सरकार के प्रयास क्यों हो रहे हैं नाकाम : बिहार में बच्चों में चमकी बुखार के मामले सामने आने के बाद प्रशासन और सरकार इसकी रोकथाम के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। 1995 में बिहार के मुज्जफरपुर में यह एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम का पहला मामला सामने आने के बाद 25 साल गुज़र गए, इसके बाद भी इस बीमारी के सही कारणों और निदान का पता नहीं चल पाया है। बढ़ते मरीजों के आगे सरकारी तंत्र पूरी तरह से फेल साबित हो रहा है।

दवाएं बच्चों में जिंदगी से जंग लड़ने में बेअसर साबित हो रही हैं। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के साथ ही इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी जनता के विरोध का सामना करना पड़ा। मामले सामने आने के बाद न सरकार और न डॉक्टर ये तय कर पाए हैं कि यह बीमारी कौन-सी है। कई अस्पतालों में तो हालात ये हैं कि एक ही बिस्तर पर दो अधिक बच्चों का इलाज हो रहा है।

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