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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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डॉ. मनमोहनसिंह : देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकाला

डॉ. मनमोहनसिंह : देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकाला
भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह देश के पहले ऐसे नेता थे जो प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते समय संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. सिंह अपनी नम्रता, कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
 
प्रारंभिक जीवन : डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) के एक गांव में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की शिक्षा पास की तथा आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से हासिल की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नूफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी. फिल किया। उन्हें जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। 1971 में डॉ. सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार व 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे।
 
उन्होंने अपनी एक पुस्तक 'भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं' में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की निंदा की थी। पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने शिक्षक के रूप में कार्य किया, जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता को दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी कार्य किया।
 
राजनीतिक जीवन : 1991 से 1996 तक डॉ. सिंह ने भारत के वित्तमंत्री के रूप में कार्य किया, जो भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय के रूप में याद किया जाता है। जिस समय सिंह को वित्तमंत्री बनाया गया वे संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। आर्थिक सुधारों को लागू करने की उनकी भूमिका की सभी ने सराहना की थी।
 
उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलनों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है। राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में 1993 में साइप्रस में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का आपने नेतृत्व किया था। 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे।
 
2004 में पहली बार प्रधानमंत्री बने : वे 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। इन्होंने प्रधानमंत्री पद के रूप में लगातार दो कार्यकाल पूरे किए। इन्होंने स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं की थी कि वे देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। दरअसल, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष के विरोध को देखते हुए स्वयं प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया और यह पद मनमोहनसिंह की झोली में आ गिरा। 
 
पुरस्कार और सम्मान : डॉ. सिंह को मिले कई पुरस्कारों और सम्मानों में से सबसे प्रमुख सम्मान हैं- भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण (1987), भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995), वर्ष के वित्तमंत्री के लिए एशिया मनी अवॉर्ड (1993 और 1994), वर्ष के वित्तमंत्री के लिए यूरो मनी अवॉर्ड (1993), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1956) का एडम स्मिथ पुरस्कार, कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार (1955)। डॉ. सिंह को जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य संघों द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें कैंब्रिज एवं ऑक्सफोर्ड तथा अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियां प्रदान की गई हैं।
 
विशेष : जब पीवी न‍रसिंहराव देश के प्रधानमंत्री थे, तब देश का विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक गिर गया था। तब न‍रसिंहराव ने डॉ. सिंह को वित्तमंत्री बनाकर उनकी काबिलियत का भरपूर उपयोग किया था। उन्हें तब एशिया का सर्वश्रेष्ठ वित्तमंत्री घोषित किया गया था। सिंह के कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला काफी सुर्खियों में रहा था।

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