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आसमान में हवाई जहाज देखकर जागा इस ‘सिल्‍वर ब्‍वॉय’ का सपना, पार्ट टाइम पढ़ाई कर के ही बन गए ‘आईएएस’

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मंगलवार, 14 सितम्बर 2021 (15:13 IST)
जब मैं बचपन में आसमान में हवाई जहाज को उड़ते हुए देखता था तो सोचता था वो दिन कब आएगा जब मैं इसमें बैठ सकूंगा।

यह कहना है सुहास एल यथि‍राज का जिनकी सक्‍सेस स्‍टोरी का आज हर कोई कह और सुन रहा है।
सुहास की कहानी किसी फि‍ल्‍म की कहानी की तरह है। स्‍ट्रगल, आइएएस, पिता की मौत, प्‍यार, शादी और फि‍र पैरांलपिक में सिल्‍वर मेडल।  

उन्‍होंने पार्ट टाइम जॉब किया और पार्ट टाइम ही पढाई की। नतीजा यह था कि उनका यूपीएससी में सिलेक्‍शन हुआ और अब वे टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल अपने नाम करने की उपलब्‍धि‍ को लेकर सुर्खि‍यों में हैं।
सुहास एल यथि‍राज की जिंदगी का संघर्ष जितना बड़ा है उतनी ही उनकी उपलब्‍धि‍ भी है।

आइए जानते हैं कि कौन है सुहास एल यथि‍राज और कैसे उन्‍होंने पार्ट टाइम नौकरी से लेकर पैरांलपिक में सिल्‍वर मेडल तक का सफर तय किया।

बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास अभी गौतम बुद्ध नगर के जिलाधिकारी भी हैं। उन्‍होंने टोक्यो पैरालंपिक में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है। उन्‍होंने बेहद रोमांचक मैच खेला और इतिहास रचा। वे ओलंपिक में पदक जीतने वाले देश के पहले डीएम हैं।

सुहास एलवाई का जन्म कर्नाटक के शिमोगा में हुआ। जन्म से ही दिव्यांग (पैरों में तकलीफ) सुहास शुरुआत से आईएएस नहीं बनना चाहते थे। उनकी रुचि खेल में थी। उन्‍हें क्रिकेट से प्‍यार है।

पिता ने कभी उन्‍हें किसी काम के लिए रोका नहीं। इसलिए सुहास कई तरह के गेम्‍स खेलते थे, उन्‍होंने बैडमिंटन भी खेला।

उनके पिता की नौकरी ट्रांसफर वाली थी, ऐसे में सुहास की पढ़ाई शहर-शहर घूमकर होती रही। सुहास की शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई। इसके बाद उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की। 2005 में पिता की मृत्यु के बाद सुहास टूट गए थे। सुहास अपने पिता से बेहद प्‍यार करते थे। लेकिन पिता की अचानक मौत के बाद वे टूट गए।  

पिता की मौत के बाद सुहास ने ठान लिया था कि अब उन्हें सिविल सेवा में जाना है। ऐसे में उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। यूपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद उनकी पोस्टिंग आगरा में हुई। फिर जौनपुर, सोनभद्र, आजमगढ़, हाथरस, महाराजगंज, प्रयागराज और गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी बने।

2007 बैच के आईएएस अधिकारी सुहास इस समय गौतम बुद्ध नगर के जिलाधिकारी हैं। पिछले साल मार्च में महामारी के दौरान सुहास को नोएडा का जिलाधिकारी बनाया गया था।

आजमगढ़ में डीएम रहते सुहास का बैडमिंटन प्रेम शुरू हुआ। हालांकि वे प्रोफेशनल रूप में बैडमिंटन नहीं खेल रहे थे। आजमगढ़ में वे एक बैडमिंटन टूर्नामेंट में उद्घाटन करने गए थे। यहीं से उनकी किस्मत ने मोड़ लिया। उन्होंने आयोजनकर्ताओं से अपील की कि क्या वे इस टूर्नामेंट में हिस्सा ले सकते हैं।

आयोजनकर्ताओं ने उन्हें तुरंत इजाजत दे दी। इस टूर्नामेंट में डीएम सुहास के अंदर छिपा खिलाड़ी निखरकर सामने आया। इस मैच में उन्होंने राज्य स्तर के कई खिलाड़ियों को मात दी। और उनकी खूब चर्चा हुई। तभी देश की पैरा-बैडमिंटन टीम के वर्तमान कोच गौरव खन्ना ने उन्हें देखा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए प्रेरित किया।

2016 में चीन में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में पुरुषों के एकल स्पर्धा में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। इस टूर्नामेंट में वे पहले गोल्ड जीतने वाले नॉन रैंक्ड खिलाड़ी थे। सुहास 2017 में तुर्की में आयोजित पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप में भी पदक जीत चुके हैं। उन्होंने कोरोना से पहले 2020 में ब्राजील में गोल्ड जीता था।

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